मुझे हिन्दी बोलने पर गर्व महसूस होता है।- अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “अरे! वाह सलोनी भाभी आ गई, आइये भाभी आपका ही इंतजार हो रहा था, आप जल्दी से रसोई में जाइये और हम सबके लिए चाय बना दीजिए।”

सलोनी अपनी ननद मीनू की सहेलियों को देखकर बड़ी खुश हो गई, और प्यार से बोली,” दीदी आप सबको मेरा प्रणाम!

“सदा सुहागन रहो, तथास्तु!! कहकर मीनू हंसने लगी।

मीनू आगे कहने लगी,” ये हमारी हिन्दी वाली भाभी है, जो सदैव हिन्दी में ही बात करती है, इनके मुंह से एक शब्द भी अंग्रेजी का निकलना मतलब बहुत बड़ा पाप हो गया, इनके सामने अंग्रेजी का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित है।”

“ओह!! माय गॉड इनका हिन्दी में परिचय क्या करवाया, मेरी तो सांस ही फूलने लगी।” मीनू ने फिर से कटाक्ष किया।

सलोनी हल्की सी मुस्कराई और रसोई में जाकर उसने चाय चढ़ा दी, साथ में नाश्ता लगाकर वो मीनू की सहेलियों को देकर आ गई, और सब्जियों का थैला खाली करने लगी, जो वो बाजार से लेकर आई थी।

सलोनी अपने नाम के अनुरूप शांत स्वभाव की और सलोनी थी, उसकी शादी को अभी एक साल ही हुआ था, उसने छोटे शहर से हिन्दी माध्यम में पढ़ाई की थी,और हिन्दी साहित्य में एमए किया था।

सलोनी की हिन्दी भाषा में बहुत अच्छी पकड़ थी, साथ ही वो बहुत अच्छी हिन्दी भी बोलती थी।

उसका पति वैभव घर की ही दुकान संभालता था, वो सुबह जाकर रात तक ही घर आता था, उसे सलोनी जैसी कुशल और मधुर व्यवहार वाली पत्नी चाहिए थी, घर में सास-ससुर, वैभव सब सलोनी से बहुत खुश थे, पर सलोनी की हमउम्र ननद मीनू उससे चिढ़ी हुई सी रहती थी। 

मीनू अंग्रेजी माध्यम से पढ़ी-लिखी थी और उसे लगता था कि हिन्दी बोलने वाले कम पढ़े-लिखे और सामान्य बुद्धि के होते हैं, इसलिए वो जब चाहें सलोनी का अपमान कर देती थी,  सलोनी उसका बचपना समझकर सब सहन कर लेती थी और उसे माफ कर देती थी।

वो मीनू से कोई बहस नहीं करती थी क्योंकि वो घर का माहौल खराब नहीं करना चाहती थी, वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और मीनू को अपनी छोटी बहन समझती थी, पर मीनू को अपनी अंग्रेजी की पढ़ाई का बड़ा अहंकार था।

सलोनी को लिखने और पढ़ने का बहुत शौक था, उसके ससुराल में अंग्रेजी और हिन्दी दोनो भाषा का

 अखबार आता था, वो हिन्दी के अखबार में कविताएं और कहानियां दोनो भेजा करती थी,उसकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी थी और उसका बड़ा नाम होने लगा था।

सोसायटी में अब सलोनी को काफी लोग जानने लगे थे, वो उसकी रचनाओं की प्रशंसा भी करते थे, मीनू ये सब देखकर अपनी ही भाभी से चिढ़ने लगी थी।

एक दिन मीनू ने अपनी मम्मी से कहा,” मम्मी भाभी घर के काम से ज्यादा अपने लेखन पर ध्यान देती है,आप उनका ये फालतू का लिखना छुड़वा क्यों नहीं देती है? इन सबसे आखिर मिलता क्या है??

“मीनू, ऐसा कुछ भी नहीं है, सलोनी अपनी घर की जिम्मेदारी निभाने के बाद ही अपना शौक पूरा करती है, और इसमें बुराई क्या है? तूने अपनी भाभी की रचनाएं पढ़ी नहीं होगी तभी तू उसे फालतू काम कह रही है।” सलोनी की सास ने कहा।

“मीनू, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें, घर और भाभी को मै देख रही हूं, मीनू की बोलती बंद हो गई।

एक दिन मीनू सुबह जल्दी उठी और जलन के मारे उसने हिन्दी का अखबार छुपा दिया, हर सोमवार को अखबार में कहानी प्रतियोगिता का विषय आता था, जिस पर सलोनी कहानी लिखकर भेजती थी,  आज वो अखबार ढूंढकर थक गई, तो उसे बहुत ही निराशा हुई, आस-पास कहीं भी उसे हिन्दी का अखबार नहीं मिला।

सलोनी ने वैभव को बताया तो उसने मालूम किया, पता चला कि रोज अखबार तो घर में आता ही है,  वो मन मारके रह गई, पर किसी के दिमाग में ये नहीं आया कि अखबार मीनू ने छुपाया होगा।

अगले दिन उसने अखबार वाले से कहा कि रोज घंटी बजाकर अखबार उसके हाथ में दिया करें, अखबार वाला ये करने लगा तो मीनू की ये चाल भी असफल हो गई,  इस बार लगातार सलोनी हिन्दी कहानी प्रतियोगिता जीती और उसे नकद राशि पुरस्कार में भी मिली।

उसकी सफलता से परिवार वाले भी खुश थे, सलोनी के हिन्दी प्रेम और भाषा पर अच्छी पकड़ देखकर आस-पास से हिन्दी ट्यूशन के लिए लोग अपने बच्चों को भेजने लगे।

“हां, शाम को दो -तीन घंटे सलोनी फ्री रहती है, हम रात का खाना भी देर से ही खाते हैं, तो वो बच्चों को पढ़ा लेगी, सास ने हां कही तो सलोनी ने भी हां कह दी, अब काफी बच्चे आने लगे, अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले बच्चों की हिन्दी बड़ी ही कमजोर होती है, इसलिए सलोनी अच्छे से पढ़ानें लगी और उसकी आय भी होने लगी।

वो बहुत अच्छे तरीके से हिन्दी विषय पढ़ाती और समझाती थी, एक -दो कोचिंग इंस्टीट्यूट से भी हिन्दी की क्लासेस के लिए बात चलने लगी, और उन लोगों ने अच्छा पैसा देना भी मंजूर कर लिया।

ये सुनकर मीनू को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, उसे लग रहा था, भला हिन्दी बोलने वाली भाभी कैसे इतना पैसा कमा सकती है? और सबकी चहेती बन सकती है!!

“क्या कहा ! भाभी शाम को पढ़ाने जायेगी तो फिर खाना कौन बनायेगा? मीनू ने साफ विरोध किया।

 “मीनू, हम खाना बनाने वाली रख लेंगे, अब सलोनी को इतना अच्छा ऑफर मिला है, उसे ना तो नहीं करेंगे, वैभव के मम्मी -पापा ने भी अपने बेटे की बात का समर्थन किया।

“वैभव, इंस्टीट्यूट इतना दूर है, मुझसे बस के धक्के नहीं खाये जायेंगे!! सलोनी ने कहा।

“हां, तो ठीक है, तुम मेरी कार ले जाया करो, अब वैसे भी मै रिटायर हो गया हूं, वो पड़े- पड़े  धूल ही खा रही है, अपने ससुर जी के मुंह से ये बात सुनकर सलोनी 

काफी खुश हो गई, लेकिन मीनू अपने पापा से नाराज हो गई कि उन्होंने सलोनी को अपनी कार क्यों दे दी ?

उसने कुछ ही दिनों में कार चलाना सीख लिया, और वो मीनू को भी आते-जाते समय कॉलेज छोड़ने लगी।

मीनू के ये बात गले नहीं उतर रही थी कि उसकी भाभी हिन्दी की अच्छी लेखिका होने के साथ ही नाम और दाम दोनों कमा रही है, जिस हिन्दी भाषा को मीनू गंवारों की भाषा समझती थी, उसी में सलोनी सफलता के झंडे गाड़ रही थी।

एक दिन कोचिंग इंस्टीट्यूट वालों से ही प्रेरित होकर उसने नेट की परीक्षा के लिए आवेदन कर दिया और उसकी तैयारी करने लगी, पहली ही कोशिश में सलोनी का चयन हो गया, और मीनू के कॉलेज में ही उसकी नियुक्ति हिन्दी प्रोफेसर की जगह हो गई।

कॉलेज के वार्षिकोत्सव में सलोनी को अदम्य सफलता और लेखन के लिए सम्मानित किया गया।

 “मुझे बहुत गर्व है कि मै हिन्दी भाषा बोलती हूं, और हिन्दी में ही लिखती हूं, मुझे अपनी मातृभाषा पर बहुत गर्व है और इसे बोलने, लिखने और इसे अपनाने पर मुझे हमेशा गर्व की ही अनुभूति होती है, मै आप सबसे भी यही कहना चाहुंगी कि केवल हिन्दी दिवस पर ही हिन्दी का सम्मान नहीं करें, बल्कि हर दिन, हर क्षण हमें अपनी मातृभाषा में ही बात करनी चाहिए।” चारों ओर सलोनी के लिए तालियां बजने लगी।

आज मीनू को महसूस हुआ कि वो कितनी गलत थी। “भाभी, मुझे माफ कर दो, मैंने हमेशा आपका अपमान किया, आपकी हंसी उड़ाई, आज मेरे ही कॉलेज में आपको पुरस्कृत किया गया है, मैंने हमेशा आपकी राह में रोड़े अटकाए, हिन्दी का अखबार भी मै ही छुपा देती थी, आपके कोचिंग इंस्टीट्यूट जाने का विरोध किया, पापा ने आपको कार दे दी तो मै पापा से नाराज हो गई थी, मै बहुत बुरी हूं, एक भाषा के कारण मै अपने ही अहंकार में चूर हो गई थी, अपनी ही भाभी को नीचा दिखाने में लगी रही।”

अपनी ननद मीनू की हर गलती माफ करने वाली सलोनी उसे गले लगा लेती है, ” सिर्फ मुझे ही नहीं, हर इंसान को हिन्दी बोलने पर हिन्दी में लिखने पर गर्व होना चाहिए ।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

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