मुहब्ब्त – आरती झा”आद्या”

हैलो.. मोबाइल पर पापा फ्लैश होता देख अभिनव बोलता है।

क्या.. कब.. कैसे.. अभी आता हूँ मैं.. किस हॉस्पिटल में हैं.. अभिनव बोलता हुआ लगभग दौड़ता हुआ अपने बॉस की कैबिन में पहुँचता है।

सर मेरी माँ का एक्सीडेंट हो गया है.. मैं हॉस्पिटल के निकल रहा हूँ… बदहवास सा अभिनव बॉस को सूचित करता है।

ठीक है.. पहुँचो तुम.. परेशान मत होना.. किसी चीज़ की जरूरत हो तो तुरंत कॉल करना… बॉस अभिनव को सांत्वना देते हुए कहते हैं।

कैसे हुआ.. क्या हुआ.. आप तो ठीक हैं ना पापा.. हॉस्पिटल पहुंचते ही रिसेप्शन पर अभिनव के पापा सदानंद जी मिल गए.. उन्हें देखते ही लिपट कर रोता अभिनव बोला।

मैं ठीक हूँ.. तुम्हारी माँ की ही हालत ठीक नहीं है..अभिनव के साथ खुद भी रो पड़े सदानंद जी। एकलौता और लाडला होने के कारण अपने माता पिता से काफी जुड़ाव रखता था अभिनव।

क्या कह रहे हैं डॉक्टर.. आई सी यू की ओर जाते हुए अभिनव सदानंद जी से पूछता है।

डॉक्टर कह रहे हैं अगर जीवन बचा भी तो चल फिर नहीं सकेगी… पैर शायद काम ना करे… बहुत ही अफसोस से सदानंद जी बोलते हैं।

मेरी ही गलती थी.. मैंने ही कहा था आज लंच बाहर किया जाए और ये सब हो गया.. सदानन्द जी के आँखों में नीर की बदली छा जाती है।




नहीं पापा.. इसमें किसी की गलती नहीं है.. माँ कहती है ना होनी किसी ना किसी रूप में आती ही है। आप स्वयं को दोष ना दें.. बस प्रार्थना करें कि माँ को जीवनदान मिले और वो घर आ जाए.. देखभाल तो हम कर ही लेंगे… हम तीनों है ना एक दूसरे का सहारा.. अभिनव अपने पापा को बाँहों में जकड़ कर कहता है।

तुमने रीमा से बात की या नहीं.. रीमा अनुभव की होने वाली दुल्हन… अलग अलग दफ्तर में काम करने वाले एक सेमिनार में मिले और एक दूसरे को दिल दे बैठे। रीमा और अनुभव का सामाजिक रहन सहन भी बराबर था लेकिन परिवेश में जमीन आसमान का अन्तर था। जहाँ अनुभव के यहाँ भावनाओं का ज्यादा महत्व था वही रीमा के यहाँ दिखावे का ज्यादा महत्व था। अनुभव के माता पिता के लिए बेटे की खुशी महत्वपूर्ण थी.. सो उन्हें रीमा को अपनाने में समय नहीं लगा और रीमा के माता पिता से जब भी अनुभव मिला “कैसे हो बेटा”से ज्यादा बात नहीं हुई। खैर अनुभव ने ये सोच कर कि सबका अपना अपना स्वभाव होता है.. उनके व्यवहार को अनदेखा कर दिया।

क्या सोचने लगे बेटा.. सदानंद जी अनुभव से पूछते हैं।

कुछ नहीं पापा.. रीमा के माता पिता के व्यवहार के बारे में सोचने लगा था।

अनुभव कुछ कहता..उससे पहले ही डॉक्टर आते दिखे।

सदानन्द जी और अनुभव आगे बढ़कर डाक्टर के पास चले गए।

सदानन्द जी आपकी पत्नी की जान तो बच गई। लेकिन अब वो व्हीलचेयर के सहारे ही रह सकेंगी.. डॉक्टर सांत्वना देते शब्दों में अनुभव की ओर देखता हुआ बोलता है।

ये मेरा बेटा अनुभव.. सदानंद जी कहते हैं।

अनुभव और डॉक्टर मुस्कुरा कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं।

दो तीन दिन आपकी माँ को आई सी यू में ही रखेंगे यंग मैन…उनके स्वास्थ्य के उतार चढ़ाव देखने के बाद कमरे में शिफ्ट किया जाएगा… डॉक्टर बोलते हैं।




हम आशा से कब मिल सकते हैं.. सदानंद जी पूछते हैं।

अभी उनको होश नहीं आया है.. एक दो घंटे बाद होश में आते ही नर्स एक एक कर आप दोनों को मिलवा देगी.. कहकर सदानंद जी का कंधा थपथपाते हुए डॉक्टर आगे बढ़ जाते हैं।

भगवान का शुक्र है कि उन्होंने माँ का जीवन बख्श दिया.. हाथ जोड़ता हुआ अभिनव कहता है।

पापा आपने कुछ खाया नहीं होगा.. चलिए कैन्टीन में कुछ खा लीजिए.. अभिनव पापा की हथेली अपने हाथों में लेता हुआ कहता है।

नहीं बेटा.. कुछ नहीं खाना। जब तक तुम्हारी माँ को देख ना लूँ.. कुछ खाया नहीं जाएगा… आँखों के नीर को आजाद करते हुए सदानंद जी बैठते बोलते हैं।

पापा आप कमजोर पड़ेंगे तो मेरा क्या होगा.. अभिनव भी पापा के बग़ल में बैठता उनके कंधों पर सर रख हिचकियाँ लेने लगता है।

दोनों एक दूसरे का हाथ थामे मूक सांत्वना देते बैठे रहे।

आपकी मरीज़ को होश आ गया है.. एक एक कर मिल सकते हैं…नर्स कहकर मुड़ जाती है और उसके पीछे सदानंद जी चल पड़ते हैं।

पापा प्लीज माँ के सामने हौसला रखिएगा.. अंदर जाते सदानन्द जी अभिनव कहता है।

आँखों से ही हामी भरते सदानन्द जी पत्नी से मिलने चले जाते हैं।

फिर अभिनव भी माँ से मिल आता है और पापा को लेकर कैन्टीन चला जाता है।




रीमा से बात कर लो बेटा.. अब वो हमारे परिवार का हिस्सा है बेटा.. सदानन्द जी अभिनव से कहते हैं।

पर पापा पता नहीं क्यूँ लग रहा है जाने वो कैसी प्रतिक्रिया देगी.. अभिनव चिंतित स्वर में कहता है।

रीमा माँ का एक्सीडेंट हो गया है. हम लोग हॉस्पिटल में हैं.. पापा के कहने पर अभिनव रीमा से बात करता है। नहीं होश में हैं अब.. डॉक्टर कह रहे हैं अब चल नहीं सकेगी…हमारे साथ हैं माँ यही बहुत है हमारे लिए रीमा.. अभिनव कहता है।

मैं आती हूँ थोड़ी देर में.. रीमा कहती है।

नहीं.. शाम हो चली है.. वैसे भी अब मिलने तो दिया नहीं जाएगा.. कल आना रीमा.. अभिनव कहकर बात खत्म कर देता है।

अभिनव शादी के बाद ऐसे कैसे चलेगा फिर.. दूसरे दिन आशा जी से मिलने हॉस्पिटल आई रीमा कहती है।

कैसे चलेगा का क्या मतलब रीमा.. अभिनव बात नहीं समझता हुआ कहता है।

अभिनव माँ की सेवा.. दिनभर उनके पीछे कौन लगा रहेगा.. शादी के बाद हम अलग घर ले लेंगे.. पूरे विश्वास के साथ अभिनव के आँखों में आँख डाल कर रीमा कहती है।

क्या कह रही हो तुम.. घर के कामों के लिए नौकर तो हैं ही और माँ के देखभाल के लिए अलग से नर्स रखने के साथ साथ मैं और पापा हैं… अभिनव आश्चर्य से रीमा को देखता हुआ कहता है।

और हमारी निजी जिंदगी अभिनव.. तुम्हें अलग मकान तो लेना ही होगा अभिनव.. रीमा कहती है।

देखो रीमा मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूँगा। मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम इतनी स्वार्थी होगी। लेकिन मैं स्वार्थी नहीं हूँ। ना ही मैंने मुसीबत में किसी को छोड़ना सीखा है। मेरे माता पिता मेरी पहली मुहब्बत हैं और अगर मैंने मेरी दूसरी मुहब्बत के लिए उनसे बेवफाई की तो क्या मैं मेरी दूसरी मुहब्बत के साथ दगा नहीं कर सकता? क्या फिर किसी और के लिए मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा.. इसकी कोई गारंटी होगी। इसीलिए तुम अब तुम्हारे लायक किसी को खोज लेना। मैं तुम्हारे जीवन के सपने पूरे नहीं कर सकता और मुझे इसका कभी कोई अफसोस नहीं होगा.. बोल अभिनव कैन्टीन से उठकर अपनी माँ के पास चला आता है।

 

आरती झा”आद्या” (स्वरचित व मौलिक)

दिल्ली

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