मां के संस्कार ने बेटी को बेहतर बनाया, – सुषमा यादव

 बच्चों को शिष्टाचार, तहज़ीब और संस्कार बहुत छोटी सी अवस्था में ही सिखाया जाये,, उन्हें भले बुरे की पहचान कराई जाये,, और किसी भी चीज़ के लिए ज़िद करने की आदत को सुधारा जाए, उन्हें प्यार से, तथा मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाया जाये,,तो बच्चे बाद में सिरदर्द नहीं बनते, उनके कारण हमें किसी के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ता,,हम सबने कई बच्चों को दुकान में या किसी के घर में या अपने घर में मेहमानों के सामने किसी भी बात के लिए ज़िद करते और जमीन पर लोटते चीखते चिल्लाते देखा होगा,, ऐसे में हमें बहुत अपमानित महसूस होता है,

 

,, मैं यहां एक तीन साल की बच्ची आर्या के बारे में बताने जा रही हूं,,जिसकी मां रीना ने उसे इतने बढ़िया संस्कार और शिष्टाचार सिखायें हैं कि जहां भी जाती है,लोग उसकी तारीफ करते नहीं थकते,,सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है,, पेरिस में 

एक रेस्टोरेंट में अपने मम्मी पापा के साथ डिनर पर गई थी,, आर्या के लिए वेटर ने बच्चों वाली कुर्सी लाकर उसमें उसे बिठा दिया,, साथ ही बेल्ट भी लगा दिया , तुरंत ही आर्या ने मुस्कुराते हुए कहा,,  बाॅनजूर  मर्सी, अर्थात

, फ्रेंच में, नमस्ते, धन्यवाद को कहते हैं,,जब भी वेटर, उसके लिए प्लेट, पानी,या खाने की कोई

चीज रखता,हर बार वो उसे मर्सी यानि थैंक्यू कहती,ये सुनकर वेटर तो गदगद हो रहा था,, उसके साथ रेस्टोरेंट में बैठे हुए आश्चर्य चकित हो कर सभी लोग बड़े प्यार से उसे देख रहे थे,ओह, बहुत ही संस्कारी बच्ची है, कितनी शालीनता से थैंक्यू बोलती है, और अपने हाथों से चम्मच, कांटे, और छूरी की सहायता से खाना खा रही है,,जो सामने परोसा जा रहा है, बिना किसी नानुकुर के बिना किसी जिद के चुपचाप खा रही है, मैं भी देखकर हैरान थी,, ज़रा सा भी कहीं गिर जाता या मुंह में लग जाता, फौरन नैपकिन से साफ़ कर लेती,,




,, एक बार हम सब एक दुकान पर गए,, वहां आर्या ने पापा से कहा,, पापा, चाकलेट,,नो , थोड़ा सा रोने का मुंह बनाया,पलट पलट कर ललचाई नजरों से देखा और वापस चल पड़ी,, मुझे बहुत दया आई, मैंने रीना से कहा कि चाकलेट ही तो मांग रही है, दिला दो, बोली, नहीं, घर में जाकर दे देंगे,अभी उसके कहने पर दिलाया तो हर बार ज़िद करने लगेगी,,इसी तरह एक पार्क में आइसक्रीम मांगने लगी, सभी बड़े छोटे खा रहे थे,, पापा ने मना कर दिया,, उसने रुआंसे होकर मां और मुझे देखा, मुझे गुस्सा आ गया और मैं बोली कि इतना भी क्या कंट्रोल करना,, उसे आइसक्रीम दिला दो, आर्या ने कहा तो कुछ नहीं पर उसकी आंखों से आंसूओं की बरसात होने लगी,, सुबकने लगी, पापा बोले, अच्छा चलो, और हम सबको आइसक्रीम पकड़ाया, बड़े बड़े आंसू बहाते हुए भी वो आइसक्रीम वाले को थैंक्यू कहना नहीं भूली,,उस भैया ने कहा, तुम तो बहुत प्यारी बच्ची हो, मुझे थैंक्यू कहा,इस पर मेरी तरफ से

एक और आइसक्रीम मुफ्त में,, उसने ना में सिर हिला कर फिर मर्सी कहा,,जब पापा ने कहा,ले लो, तब जाकर लिया,,

 

हम सब पैदल ही घूमने निकले, रास्ते में कार आई, इसके पहले कि मैं उसे किनारे करती, मैंने पीछे पलटकर देखा तो वो अपनी मौसी का हाथ पकड़ कर किनारे खींच रही थी,, गाड़ी,, मौसी, किनारे,, पूरी तरह से तो अभी बोल पाती नहीं थी,टूटे फूटे शब्दों में समझा रही थी कि जब गाड़ी आये तो हमें किनारे हो जाना चाहिए,,हम सब रीना को कहते, तुमने अपनी नन्हीं सी बच्ची को बहुत समझदार और बेहतरीन संस्कार सिखाये हैं, इसीलिए हम देखते हैं कि तुम लोगों को ये बिल्कुल परेशान नहीं करती,

रीना बोली,, आपसे ही सीखा है,याद है आपको, बचपन में जब मैंने एक आंटी के घर से एक गुलाब का फूल तोड़ लिया था, तो आपने मुझे डांटा था और समझाया था कि किसी के घर का सामान नहीं छूना चाहिए,, और छोटी बेटी बोली,कि कई बातों के लिए आपने भी मुझे मारा और समझाया था,,हम दोनों ने कभी भी आपको शिकायत का मौका नहीं दिया, आपने भी तो हमें बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं,,, मैं मुस्कुरा कर रह गई,




 

घर में मेहमानों के आने पर वो इतनी खुश होती कि मां के साथ साथ उनके आवाभगत में लगी रहती है,,

हमेशा मां का कहना मानती है, अपनी मां से चिपकी रहती है,

कोई ग़लती हो जाने पर तुरंत,साॅरी बोलती है, 

 

मुझे याद आ रहा है जब वो डेढ़ साल की थी, ठीक से बोल नहीं पाती थी, दिल्ली आई थी,हम सब एक माल में घूम रहे थे, रीना आर्या की ऊंगली पकड़े आगे आगे जा रही थी, मैं पीछे थी उसने मुड़ कर देखा और अपनी मां का हाथ छोड़ कर मेरे पास दौड़ती हुई आई और मेरी उंगली पकड़कर अपने साथ ले जाने लगी, मेरी आंखों में आसूं आ गये, बेटियां आगे निकल गई और उसे मेरा कितना ख्याल था,कई बार उसने ऐसा किया,,

, आज जब रीना ने कहा,,कि सब कोई आर्या की बहुत प्रशंसा करते हैं,उसकी झूला घर की टीचर और मेरी सहेलियां उसके दादा दादी, सभी परिवार वाले, बच्ची हो तो आर्या जैसे,, और इन्होंने भी कहा कि रीना तुमने हमारी बेटी की बहुत अच्छे से परवरिश की है, मेरी नन्हीं सी बेटी सबके सामने मेरा सिर गौरव से ऊंचा कर देती है , तो बहुत अच्छा लगता है,

 

, मैंने कहा, हां मेरी बेटी, तुमने अपने मां का कर्तव्य बहुत अच्छी तरह से निभाया,, अपने आफिस, और घर की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए तुमने एक सर्व गुण संपन्न मां का भी रोल निभाया,, उसे बहुत अच्छे संस्कार और तहज़ीब से पाला है।

सच में तुम एक सफल मां हो, तुमने अपने बेटी को संस्कारवान बनाया है।।

 

#संस्कार # 

 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित मौलिक,

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