मोक्ष – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

सरिता की सास ने अपने जीवन में बहुत दुख सहे थे।मायके में गरीबी से जूझते हुए ,सिलाई करके पिता का सहारा बनी थीं।विवाह से पहले ही होने वाले पति को दुर्घटना में एक पैर गंवाना पड़ा।घर की ग़रीबी को देखकर, और शायद उस पुरुष को मन से अपना पति स्वीकार कर चुकीं सरिता जी ने शादी तय समय पर उन्हीं से की।

शादी के बाद से पति ने उन्हें सारे सुख दिए।ग़रीबी की छाया भी कभी पढ़ने नहीं दी।रानी की तरह राज़ किया था उन्होंने अपने पति की कमाई पर।मायके और ससुराल वाले उलाहना भी देते”कैसा पति को वश में किया है।जो बोलती है,सब चुपचाप सुनता है।सरिता जी कभी जवाब नहीं देतीं किसी को भी।एक दिन ऐसा ही ताना दिया था सरिता जी की जिठानी ने ,तब सरिता के पति पहली बार बोले”इसका सुख सबको चुभता है,पर इसका त्याग किसी को नहीं दिखता।एक पैर के आदमी के साथ हंसकर अपनी जिंदगी स्वाहा कर दी इसने। बच्चों को पढ़ाना,बाजार से सामान लाना,घर के सारे काम करती है अकेली।मैं तो बस अपनी तनख्वाह इसके हांथ में देता हूं।कभी तुम लोगों के पास गई क्या मदद मांगने?”

जिठानी जी मुंह बनाकर चुप हो गईं।अपने कृत्रिम पैर बनवाने कटक(उड़ीसा)जाना पड़ता था उन्हें,साल दो साल में।साथ में‌ जातीं थीं सरिता जी।पुरी घूमने के लिए।एक बार सपरिवार गईं थीं पुरी।पति के राज में कुछ भी असंभव नहीं‌ होता।सरिता जी ने अपने बच्चों की शादी भी अपनी तरह से,अपनी मर्जी से अच्छे खानदानों में करवाई।आखिर में पति के पीछे पड़कर कुंभ नहाने का मन बनाया।सरिता जी की यह मनोकामना भी पति ने पूरी कर दी।

अब धीरे-धीरे सरिता जी के पति की तबियत बिगड़ने लगी।कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई।अपने पति को भगवान मानती थीं वे,पर एक बात हमेशा कहतीं”बनारस जाना था।भोलेनाथ को जल चढ़ाने और गंगा नहाने का बड़ा मन था उनका।बेटा पिता की अस्थियां गंगा में लेकर गया था।

इस कहानी को भी पढ़ें:

अब पछताय क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत – संगीता अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

सरिता जी अब आश्वस्त होकर कहतीं “मेरी हड्डियों को भी गंगा में ही देना।तेरे पिता से मिल जाएंगी।ऐसा कुछ होता ,इससे पहले ही सरिता जी का बेटा लंबी बीमारी से चल बसा।अब उनकी अस्थियों को लेकर पोता और पोती गए।सरिता जी के हिप का ऑपरेशन हुआ था ,तो नहीं जा पाईं।मन में व्याकुलता और संताप तो आजीवन रहने वाला था। इकलौता बेटा खोया था उन्होंने।पहले पति,फिर बेटा।अब गंगा नहाने की बात नहीं करतीं थीं वह।कहीं भी जाना पसंद नहीं आता था।चलने में तकलीफ़ होती थी अभी भी।

सरिता जी से उनकी एक सहेली ने पूछा,”गुरु मंत्र लिया है आपने”,सरिता जी ने कहा “नहीं ,मेरे पति ने आज्ञा नहीं दी।मैं भगवान को ही अपना आराध्य और गुरू मानती हूं।

उनकी उम्र की सारी महिलाएं गंगा स्नान जाने की योजना बना रही थी। सरिता चुप थी तो बहू और पोते ने पूछा जाने को। उन्होंने कहा”इस उम्र में अकेले जाना असंभव है।मेरा पैर भी कमजोर हो गया है। चलने-फिरने में परेशानी होगी।मैंने तो नहा लिया है।तुम और तुम्हारे बेटा -बेटी चले जाना ।मेरे पास श्यामा सो जाएगी।”

उनकी बात उनके पोते को अच्छी नहीं लगी,तुरंत  बोला”नहीं ,तुम्हें अकेले छोड़कर हम सब नहीं‌ जाएंगे।मम्मी तुम्हारे साथ रहेंगी यहीं।

पिता की अस्थियों का विसर्जन करके लौटा बेटा तो बोला”मां,हम दादी को अगले साल ले जाएंगे।थोड़ा और अच्छे से चलने लगे।

दादी पाई-पाई जोड़कर रखती थीं।एक दिन बिस्तर से पोते को बुलाकर बोली”तू कह रहा था ना बनारस जाएगा?कब जाएगा?”

पोता पैसों की वजह से टाल रहा था बनारस जाना। केदारनाथ भ्रमण की भी इच्छा थी  उसकी।कुछ ही देर में अपना पिटारा खोला और बहुत सारा पैसा देकर कहा”जा ,ये मेरे और तेरे दादाजी का पैसा है।मैंने सही काम के लिए बचाकर रखा था।अब तू तो मेरी हड्डियां गंगा में प्रवाहित कर ही देगा।मैं क्यूं‌ अब इस उम्र में चलने में‌ लाचार भटकूं ।”

पोता दादी के पैसे से हरिद्वार,बनारस और केदारनाथ भ्रमण करने गया।सरिता जी की बहू ने नाराजगी जताते हुए कहा “क्या जरूरत थी मां ,उसे अपना पूरा पैसा देने की।तुम्हारी गंगा नहाने की साध  कैसे खत्म कर दी तुमने।”

उन्होंने शायद अपनी उम्र और ऑपरेशन से चलने में लाचारी को स्वीकार कर लिया था,तुरंत बोलीं”गंगा नहाना तो बड़े पुण्य का योग होता है।पर मेरे पोता,पोती और तुमने मेरी जितनी देखभाल की है ,अपनी औलाद भी नहीं करतीं।मेरा पोता गोद में लेकर भागा था हॉस्पिटल।इस सुख का वरदान हर किसी को नहीं मिलता।तुम लोगों ने  ससुर की सेवा की,उनको गंगा में सद्गति दी।मेरा पोता भी ले ही जाएगा मुझे मरने के बाद।पुण्य कब मिलेगा पता नहीं,मुझे तो परिवार में रहकर ही मोक्ष मिला है।मैंने हर दिन गंगा नहाया है।”

शुभ्रा बैनर्जी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!