मेरी बिट्टो – करूणा मलिक  : Moral stories in hindi

 अरे  बिट्टो ! बुढ़ापे का शरीर है । थोड़ी खाँसी- जुकाम तो लगा ही रहता है । तू चिंता ना कर । गीता है ना मेरे पास , सँभाल लेती है । कैसी बात करती हो अम्मा , बासठ साल में भी कोई इतना बूढ़ा होता है ? आपने देखा था ना यहाँ अस्सी साल की उम्र में भी कैसे जीते हैं । एक बार डॉक्टर को दिखा आना ।

चल , दिखा आऊँगी । अब तू भी सो जा । थक गई होगी, कुछ खाया या बस ऐसे ही चुटर-पुटर खाती है । ठीक से खाया कर बेटा । हाँ-हाँ दाल-चावल बनाया था । ठीक है अम्मा , फ़ोन रखती हूँ । कल देर तक मीटिंग है । हो सकता है फ़ोन ना कर पाऊँ । डॉक्टर को दिखा आना ।

माँ को हिदायत देकर बिट्टू ने फ़ोन बंद कर दिया पर मीना का मन बुझ गया । एक फ़ोन ही का तो इंतज़ार करती हैं वो , जिसके सहारे पहाड़ सा दिन कटता है । अमेरिका में रहने वाली उनकी इकलौती संतान का सुबह फ़ोन आता है ।वे पूरे दिन की बातें बताती , वहाँ की पूछती , आस- पड़ोस की बुराइयाँ करती , बस ज़िंदगी गुज़र रही थी ।

मीना जानती थी कि बिटिया के पास समय नहीं है यहाँ आकर उनके पास रहने का और वे वहाँ जाकर हमेशा के लिए रह नहीं सकती । यहाँ कम से कम सड़क पर चलने वालों की बातें सुनकर ही अपनेपन का अहसास तो होता है । अब केवल गीता ही उनका असली सहारा थी ।

पर बेटी उन्हें हमेशा उससे सावधान रहने की सलाह देती – अम्मा , बस उसके साथ काम की बातें किया करो । इन लोगों से थोड़ी दूरी बनाकर रखनी चाहिए । कहने को तो अम्मा बेटी को आश्वासन देती पर खुद सोचती कि आख़िर इंसान कितनी देर चुप रहेगा , कहीं तो अपने मन की बात करेगा ही ।

फ़ोन पर एक- दो घंटे में , क्या इंसान की पूर्ति हो सकती है । जब तक पति थे । स्त्री के पास हज़ारों काम होते हैं पर अकेली जान क्या पकाए और क्या खाए ? बेटी को तो यह बात भी हज़म नहीं होती कि अकेला आदमी भला क्या बनाए ? मीना का पूरा जीवन पुरूष प्रधान समाज के ताने-बाने में गुजरा था और ऐसे समाज में स्त्रियाँ बचा कुचा खाने में ही बड़प्पन समझती है ।

वैसे वे अध्यापिका के पद से रिटायर हुई थी पर अपनी मानसिकता को बदल नहीं पाई । आज मीना देर तक बिस्तर पर पड़ी रही क्योंकि बिट्टू ने तो आज फ़ोन के लिए मना किया था । तभी रिंगटोन सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ गई – बिट्टू का फ़ोन आ गया । अम्मा , अभी तक नहीं उठी ? मीटिंग के बाद दस मिनट का समय मिला है । अभी फॉरमल डिनर के लिए निकलना है । उठ जाओ , गीता आई या नहीं ? आ जाएगी ।

मैंने थोड़ा देर से आने के लिए कहा था । तबियत तो ठीक है ? हाँ , ठीक है । चलो , मैं निकलती हूँ । फ़ोन अपने पास रखना , सोने से पहले फ़ोन करूँगी । मीना सोचने लगी – मेरी छोटी सी बच्ची, कितना ख़्याल रखती है । हमेशा मुझे जमाने के साथ चलाने की कोशिश में लगी रहती है ।

मैं ही न जाने क्या चाहती हूँ ? मुझे ही समझना चाहिए । ऐसे पास रहने का क्या फ़ायदा अगर बच्चे माँ- बाप की खोज खबर ही न लें । कितनी मेहनत के बाद बिट्टू ने अपनी मंज़िल पाई है वे उसकी राह में रोड़ा नहीं अटकाएँगी । जिसने जन्म लिया है उसे जाना तो अवश्य है । जाने वाले के साथ कोई नहीं जा सकता ।

इसलिए अच्छा बनाऊँगी, अच्छा खाऊँगी । गीता भी तो है, मैं उसे कह दूँगी कि सुबह का नाश्ता मेरे साथ ही कर लिया करे । अपने आप से वादा करके मीना उठी , चाय बनाई और कप लेकर बरामदे में आकर बैठने ही लगी थी कि वापस मुड़ी और अपने मनपसंद गाने लगाकर गीता के आने का इंतज़ार करने लगीं ।

करूणा मलिक 

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