मेंहदी तेरे कितने रंग – सुषमा यादव

 मुझे बचपन से ही हरी भरी

मेंहदी बहुत आकर्षित करती थी,

पर घर और स्कूल में सख्त मनाही थी,, हाथों को रंग बिरंगे कर के जाना,,जब बड़े हुए तो सहेलियों के संग मेहंदी के पौधे से हरे हरे पत्ते तोड़ कर लाते और मां उन पत्तियों को पीसकर अपने और हमारे हाथों में लगाती,,हम अपने लाल‌ लाल मेहंदी भरे हाथों को देख देख कर खुशियों के सागर में गोते लगाते रहते,, शादी के बाद तो हर छोटे बड़े त्योहारों में या वैसे भी हमारी हथेलियां अब कोन वाली मेहंदी से सजी रहती,

, स्कूल में भी हम सब शिक्षिकाओं के हाथ में हमारी प्यारी छात्राएं हरितालिका तीज और हरछठ में बहुत खूबसूरत डिज़ाइनों से मेंहदी लगा देती,,पर हमारे इस मेहंदी के जूनून पर नजर लग गई,, इनके चले जाने के बाद तो जैसे सब कुछ खत्म हो गया था,

,, मेरी बेटी की शादी हुई,, मेंहदी रस्म में दिल्ली के मेंहदी डिज़ाइनर

आकर सबको मेंहदी लगा रहे थे,,

मेरी आंखें भर भर आ रहीं थीं,

एकांत में आकर आंखें इनको याद करके बरस पड़ी,, कैसे मेरे मेंहदी भरी हथेली को,,,,,,,,


, कुछ सालों बाद इनके आफिस के ड्राइवर के बेटे की शादी में जाना हुआ,, उसे इन्होंने ही नौकरी दिया था,, और नियमित भी करवा दिया था, इसलिए पूरा परिवार इनका अहसान मानकर हम सबकी बहुत देखभाल करते थे,, तो अपने बेटे की शादी में वो हमें हमारे गांव जाकर हमें ले आये,,हम भी खुशी खुशी शामिल हुए, एक दिन दोपहर में हम सो रहे थे कि हमारी हथेली में कुछ ठंडी सी सरसराहट हुई,, हमने अलसाते हुए देखा तो हम झट से उठ बैठे,,, जोर से गुस्सा कर बोले,ये तुम लोग क्या कर रहे हो,

मैं मेंहदी नहीं लगा सकती, और हाथ छुड़ाने की कोशिश करते मैं रो पड़ी,, लड़कियों ने और उसकी पत्नी ने मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया, एक तरफ मेंहदी लगती रही और दूसरे तरफ़ मेरे आंसू पोंछते हुए उसकी पत्नी और अन्य महिलाओं ने कहा, क्यों नहीं लगा सकती दीदी,, आपने शादी के पहले क्या कभी मेंहदी नहीं लगाई थी,,हम कितने महिलाओं को देखते हैं

जो अपने बालों में मेहंदी लगाती हैं तो क्या उनके हाथों में नहीं रचती है,,तो ये फिर दिखावा किसलिए,,ये मेंहदी हमारे सिंदूर की तरह सुहाग चिन्ह होती तो हम शादी से पहले ही क्यों लगाते, और हां बाद में भी इसे‌ छूना नहीं चाहिए,,है कि नहीं,, सबने कहा, हां बिल्कुल सही कह रही हो, मैं उन गांव की अनपढ़ महिलाओं का तर्क सुनकर हैरान रह गई,

अपनी तार्किक बातों में मुझे उलझाए रखा और मेरे दोनों हाथों में खूबसूरत मेंहदी लग चुकी थी,हिना ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था,, मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे ये मुस्करा कर

मेरे हथेली को,,,,,, और मैं शरमा गई,, नहीं जी इतने लोगों के बीच नहीं,, एक आत्मसंतुष्टि सी हो गई,इतने सालों बाद,,, मेंहदी ने अपना एक नया रंग दिखाया,


जो बात मेरी विदेश में रहने वाली और डॉक्टर बेटी नहीं समझ पाईं वो गांव में रहने वाली उन महिलाओं की समझ के आगे मैं नतमस्तक हो गई और उन्होंने मुझे समझा दिया,,उन मेंहदी भरे हाथों को मैंने बहुत दिनों तक सहेजा,,अब शायद ही दुबारा मेंहदी के इस अनूठे रंग को मैं अपने जीवन का हिस्सा बना सकूं,,पर शायद जमाना बदल रहा है,,

क्यों कि बराती घराती सब महिलाओं ने मेरी मेंहदी के रंग और डिजाइन की बहुत प्रशंसा की,, और मैं भी अपने परम्परा वादी खोल से बाहर निकल कर मुस्कुराते हुए पूरी शादी में ख़ुशी ख़ुशी शामिल हुई,,

सुषमा यादव,

, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित मौलिक

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