
बेबी केसर – विजय शर्मा “विजयेश”
- Betiyan Team
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- on Jul 25, 2022
मेजर लक्ष्मण सिंह आज बहुत खुश थे। दस दिनों की छुट्टियाँ जो मंजूर हो गई थी। कश्मीर की हरी भरी बर्फीली वादियों मे दो साल की कठोर ड्यूटी के बाद अपने घर सवाई माधोपुर जा रहे थे।
कुछ देर में ड्राइवर ने उन्हें एयरपोर्ट पर छोड़ दिया। दिल्ली की फ्लाइट रेडी थी। कुछ ही देर मे विमान बादलों के पार गुजर रहा था । मेजर साहब भी झपकी लेने लगे। एयर होस्टेस के अनाउन्स्मेन्ट की आवाज से उनकी नींद खुली । कुछ ही देर मे विमान दिल्ली एयरपोर्ट पर था।
जब वह एयरपोर्ट के बाहर आए उनके जूनियर ने गरम जोशी के साथ उनका स्वागत किया । दोनों आर्मी की जीप में आर्मी के गेस्ट हाउस में आ गए । लंच कर थोड़ा विश्राम कर शाम की चाय पर साथियों से मिल मेवाड़ एक्स्प्रेस ट्रेन पकड़ चुके थे । दिल्ली से सवाई माधोपुर का सफर उन्हे पहाड़ लग रहा था ।
वह विचारों के भंवर मे गोते लगाते बहुत खुश थे। उनके मन में चुभी फांस जो निकलने वाली थी । थकान की वजह से कुछ ही देर मे गहरी नींद में सो गए । सवाई माधोपुर स्टेशन आते ही सहयात्री ने उन्हें जगाया।
स्टेशन पर परिवारजन सहित सेकड़ों की भीड़ उनके स्वागत के लिए आतुर थी। उनके शानदार स्वागत के बाद सब उन्हे ससम्मान घर छोड़ जा चुके थे । दो दिन मिलने वालों का ताँता लगा रहा ।
दो तीन दिन बाद उन्होंने माँ से आग्रह किया की सभी ननिहाल चले। ननिहाल के नाम से माँ बहुत खुश हो गई। बाबूजी ने खेती की व्यस्तता को लेकर नानुकुर की पर माँ बेटे के आग्रह को ठुकरा न सके ।
बरसों बाद बेटी – दामाद और नाती को देख नानी तो खुशी के मारे बौरा गई थी। नाना, मामा -मामी, और उनके बेटे और बेटियाँ सब आनंद से भाव विभोर हो गए।
चाय नाश्ते के बाद मेजर लक्ष्मण भी अपना बड़ा सा सूटकेस खोल सब को एक एक कर गिफ्ट देने लगे। सभी बहुत खुश हो रहे थे । फिर अंत मे रंग बिरंगा पैकेट नानी को देते हुए सभी से बोले, “गेस करो इसमे क्या है”!
कोई चूड़ी तो कोई कंगन या मिठाई बता रहा था। मेजर ना में सिर हिलाते मुस्कुरा रहे थे । नानी से बोले, “सब हार गए अब आप खोलो।“ रंगीन कागज हटाते ही एक बड़ा सा डब्बा और छोटी-छोटी पाँच ट्रांसपरेन्ट बेबी केसर की डिब्बी देख सब आश्चर्य से भर गए । नानी बोली ये सब किसलिए, मेजर साहब बोले, “ये मेरे बचपन का प्रायश्चित और नानी तेरे प्यार का प्रतिदान है”। मामीजी बोली, “पहेलिया मत बूझाओ, साफ साफ बताओ क्या बात है”।
तब मेजर साहब बोले, “आज से 30 साल पहले गर्मी की छुट्टियों मे जब माँ के साथ आया था । बहुत आनंद से छुट्टी के दिन बीत रहे थे। लोटने से पहले ही नानी ने आचार पापड़ मँगोड़ी, सेवइयाँ, पैक करना शुरू कर दिया, नानाजी को बोल कर पाँच किलो केसर आम, पाँच डिब्बी बेबी केसर और खिलौने मंगवा लिए। नानाजी ने सब सामान लाकर नानी को दे दिया, नानी तो काम में व्यस्त थी। मेरी नजर जब बेबी केसर की बादाम शेप ट्रांसपरेन्ट सी डिब्बियों पर पड़ी तो मुझे बहुत लुभावनी लगी । मैं तो नजरे ही नहीं हटा पा रहा था।
वो आकर्षक और लुभावनी डिब्बियाँ बार बार आँखों के सामने आ जाती । मै बेचेन हो उठा था ।
अगले दिन सुबह जब सब अपने दैनिक कार्यों मे व्यस्त थे, मैं स्टोर रूम में गया और पांचों डिब्बियाँ जेब के हवाले कर पार्क मे खेलने चला गया । खेल कर लोटते समय वो डिब्बियाँ एक -एक कर खोली और उसमे रखी केसर जिसे मैं नारंगी घाँस समझ बैठा था, डस्ट्बिन मे फेंक दी । रास्ते मे पंसारी की दुकान से रंग बिरंगी सौंफ खरीद कर उन डिब्बियों में भर घर ले आया ।
चुपचाप अपने बेग की अंदर की जेब मे रख निश्चिंत हो गया । रात को नानी जब पैकिंग के लिए स्टोर से सामान निकालने लगी तो घर मे हड़कंप मंच गया। कारण – बेबी केसर की वो पाँच डिब्बियाँ नहीं मिल रही थी । स्टोर रूम पूरा खंगाल देने के बाद जब निराशा हाथ लगी तो शक की सुई नौकरों से ले कर चूहे तक घूम गई , सख्त मिजाज नानाजी जब नौकरों को हड़का रहे थे तब मेरे तो प्राण गले मे आ रहे थे । मै पसीने से लथपथ डर के मारे चुपचाप मुह तक चादर डाल तमाशा देखता रहा।
एक बार तो दिल मे आया की सब सच बोल दू , पर नौकरों का हाल देख कर मेरी हिम्मत जवाब दे गई। सुबह जल्दी की ट्रेन होने से अब बाजार का विकल्प भी खत्म था । नानाजी, नानी और माँ को लापरवाह और गैर जिम्मेदार कह रहे थे, माँ और नानी बहुत दुखी थी । मैं भी आत्मग्लानि से भर उठा । दिल मे एक फाँस सी लिए मैं सो गया।
अगले दिन भारी मन से दिल पर बोझ लिए अपने घर आगया । पढ़ाई और नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद ये फाँस बार बार मन में चुभती रही। कश्मीर पोस्टिंग होते ही एक शॉप पर शुद्ध केसर देखते ही यह गिफ्ट नानी के लिए पैक करवा लिया।”
नानी ने अपने लक्ष्मण को गले से लगा आँसुओ की झड़ी लगा दी । सभी की आँखों से आँसुओ की गंगा जमुना बह रही थी। और ये खुशी के आँसू थे । मेजर साहब का दिल भी हल्का हो चला था।
विजय शर्मा “विजयेश”
कोटा, राजस्थान
स्वरचित, अप्रकाशित
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