टैक्स वाली अंतिम यात्रा – संजय मृदुल

अर्थी उठने ही वाली थी कि एक गाड़ी दरवाजे पर आकर रुकी। चार कद्दावर आदमी सफारी पहने हुए उतरे और घर का गेट बंद कर दिया।

“किसकी डेथ हुई है यहां।” एक ने कड़कती हुई आवाज में पूछा।

जो रोना गाना मचा हुआ था वो तो उनके आते ही सन्नाटे में तब्दील हो चुका था। सिसकती हुई एक आवाज आई – “मेरे पिताजी हैं सर। क्या हुआ?”

जितने भी लोग वहां इकट्ठे थे सबके चेहरों पर प्रश्नचिन्ह था। कौन हैं, क्यों आये हैं? कोई सुसाइड वाला मामला तो नहीं है। आखिर सरकारी अधिकारी था मरने वाला। कोई गबन वबन वाला या रिश्वत का चक्कर तो नहीं?

कोई पीछे फुसफुसा रहा था पड़ोसी से “पक्का इनकम टैक्स वाले होंगे या आर्थिक अपराध वाले। खूब कमाई थी ऊपर की इनकी। मरते ही कलई खुल गयी।”

बेटा सामने आया, सफारी वाले ने फरमाया “हम टैक्स डिपार्टमेंट से आये हैं। कल से मरने के बाद क्रियाकर्म पर टैक्स लागू किया गया है, हम देखने आए हैं कि आपने सब तैयारी पर टैक्स पटाया है या नहीं? जितना भी सामान आया है सब का बिल दिखाइये, अस्पताल का बिल भी, और हाँ जितने लोग शव यात्रा में जाएंगे उन पर भी टैक्स देना होगा। और हाँ! ये जो आप सब रोना मचाये हुए हैं उसपर ध्वनि प्रदूषण का केस बनेगा।”


सब के मुंह खुले के खुले रह गए।

मृतक की पत्नी ने रुलाई को गले में घोंटकर पूछा “ये क्या तमाशा है अब आदमी मर भी नहीं सकता सुकून से? मरने पर भी टैक्स?”

जी! एक बात बताइये, क्या आपके पति ने मरने के पहले आवेदन दिया था अपने विभाग में, तबियत खराब होने की कोई रिपोर्ट दाखिल की थी? इलाज के लिए पैसे कहाँ से आएंगे ये अस्पताल में लिखित में बताया था?

नहीं सर! अबकी बेटे ने जवाब दिया। “कल रात अचानक तबियत बिगड़ी और सुबह चल बसे। अस्पताल जाने का मौका ही नहीं लगा।”

कैसे मान लें? आत्महत्या तो नहीं है?

जूनियर! उन्होंने दूसरे सफारी वाले को आवाज दी।

जी सर! पोलिस को बुलाओ।  पंचनामा करवाओ बॉडी का।

अब सब घबराए। बेवजह पोलिस कोर्ट का चक्कर हो जाएगा। बेटे ने हाथ जोड़कर समर्पण कर दिया।

“सर! ये सब क्या है? हमने तो कभी नहीं सुना मरने पर भी टैक्स लगता है।”

मिडिल क्लास हो ना! कहाँ से पता होगा? न अखबार खरीदने की औकात ना ही टीवी। कल रात प्रधानमंत्री ने घोषणा की है। तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है।


अब जरा मुद्दे की बात करो। अधिकारी ने आदेश दिया।

जूनियर, लिखो।

अर्थी का बांस, रस्सी, मटकी

कफ़न का कपड़ा, नाई, पण्डित, शव वाहन, श्मशान की लकड़ी, कंडा, चिल्हर सामान, सब का टोटल करो और चालीस परसेंट की रसीद काटो। और हाँ! जितने लोग यहां इकट्ठे हैं फी बन्दा पांच सौ रुपए जोड़ लो। और पोलिस की कार्यवाही के खर्च पर भी तीस परसेंट मत भूलना।

इतना सुनते ही लोग इधर उधर खिसकने लगे। और मृतक की पत्नी ने अधिकारी के पैर पकड़ लिए। “साहब!अन्याय मत कीजिये। मरे इंसान पर तो रहम कीजिये।चैन से स्वर्ग जाने दीजिए उसे।”

“अच्छा! बिना सरकार को टैक्स दिए कैसे स्वर्ग जाएंगे। वहां भी दरवाजे पर यमराज के अधिकारी होते हैं। उनके लिए भी तो पिंडदान करते हो ना। तो यहां क्यों नखरे?” वो गुर्राए।

एक बुजुर्ग आगे आये, बोले- “सर! ज़रा किनारे आइए ना। यहां तैयारी करने दीजिए, हम अलग होकर बात कर लेते हैं।”


गमगीन माहौल में अधिकारी के चेहरे पर चमक आई। छोटे से घर के आंगन में, रोते बिलखते लोगों की भीड़ में, जन्म से लेकर मृत्यु तक के जीवन को याद करते हुए रिश्तेदारों को, तीस परसेंट फेमिली पेंशन में घर खर्च का हिसाब करते बेटे को, मरने वाले की तारीफ करने की प्रथा का निर्वहन करते पड़ोसियों, रिश्तेदारों को वहीं छोड़ दोनों एक कोना पकड़ जम गए।

थोड़ी देर बाद ग़मगीन मुखमुद्रा बनाये सफारी ने बेटे से कहा-” तुम्हारे दुःख में सरकार भी शामिल है, ईश्वर तुम्हें ये सब सहन करने की शक्ति दे। अंकल जी को सब समझा दिया है वैसा ही करना।” इतना कहकर वे विदा हो गए।

कुल खर्च के टैक्स का आधा पक्का विभाग के खाते में डालने की हिदायत देकर और आधा कच्चा अपनी जेब में लेकर संवेदना प्रकट करती सरकार अगली अंतिम यात्रा की तलाश में निकल पड़ी।

©संजय मृदुल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!