मायका..अपना या पराया – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

ट्रेन अपनी रफ्तार में तेजी से भागे जा रही थी,नीलू एकटक खिड़की में मौन साधे गुमसुम सी अपनी दुनिया मे मग्न थी। पुरानी बातें जेहन में बार बार घूम रही थी। माँ हमेशा कहती थीं-“ऐसे मत करो, वैसे मत रहो, ऐसे पहनो,वैसे न पहनो। तरीके से रहना चाहिए, क्योंकि बेटियों को पराये घर जाना है, एक न एक दिन सबको मायके छोड़ कर जाना है।

दादी तो एक ही नसीहत देतीं” भाई के बिना मायके की कोई रौनक नही, माँ से मायका है और भाई से मायके का मान।कब से उसके दिमाग मे यही सब बातें घूम रहीं थीं, ट्रेन से मायके के लिए सुबह ही नीलू रवाना हुई थी। कितनी तकलीफ हुई थी उसे कल रात जब पति सौरभ ने माँ की ज़िद के कारण तबियत खराब होने पर भी उससे काम करवाया और जब वो उठ नहीं पाई तो उस पर हाथ भी उठाया ।

अचानक तेज झटके के साथ ट्रेन रुकी । नीलू की मंजिल अब यहां से ज्यादा दूर नही थी। टैक्सी बुक किया और चल दी बनारस स्टेशन से लंका की गलियों में। मन भी वहां के कालोनी की गलियों में घूमने सा लगा। दीदी आ गईं, बुआ आ गयीं, नीलू आयी है, अरे- शर्मा जी की लड़की आयी है। कालोनी का माहौल तो आज भी वही- ताका झांकी।

शायद उसके पति नही हैं, अकेले है कोई और तो दिख नही रहा। एक साथ घर वाले लोगों और पड़ोसियों की आवाज सुनकर बिना नज़र मिलाये वह सबसे आगे बढ़ी जा रही थी। घरवाले तो घरवाले पड़ोसी भी चेहरे पढ़ने की कोशिश में जुटे हुए थे। कहने को कहते हैं सब की सबकी बेटियां तो एक जैसी हैं पर जरा भी किसी की बेटी को तकलीफ हो तो कोई कसर नही छोड़ते जख्म कुरेदने में, ऊपर भले ही मक्खन लगाएं। 

घर के नज़दीक आयी तो माँ  आगे बढ़ के नीलू का हाथ थामे उसे अंदर लाने लगी और उसकी नज़रों को पढ़ने की कोशिश करने लगी। पर माँ की नजरों से छुप पाना कुछ भी आसान नही। ध्यान से उसके बिखरे बाल व सिलवट पड़ी साड़ी सब देख रही थी। उसे रसोई में लाकर प्यार से पूछा- क्या हुआ सच सच बता दे, तू तो अपने पापा को जानती ही है, जरा भी ऊंच नीच बर्दाश्त नही करेंगे। 

न तो तूने कोई फोन किया न खबर, न संदेश ओर अचानक ??? बिना सौरभ जी को लिए आ गयी। सब क्या सोचेंगे, कितनी  बातें बनाएंगे। नीलू ने जोर से मम्मी को गले लगाया और फुट पड़ी- क्यों माँ, क्या मैं पराई हो गयी, ये मेरा घर नही? इसपे मेरा कोई अधिकार नही?  आज दूसरी बार सौरभ ने छोटी सी बात पर मुझ पर हाथ उठाया । नहीं बर्दाश्त कर पाई मैं । पहली बार तो झेल ली थी ।

माँ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा.. “तेरा ही घर है, पर ये भी तो सोच हमारी इज्जत क्या होगी जब लोग समझेगें की तू सौरभ जी के साथ नही आई है।” सब ठीक तो है, यही चिंता हो रही थी। पिंकी ने आंसू पोछते हुए कहा- माँ बहुत कुछ होता है पति पत्नी के बीच, साथ रहना, रूठना, मनाना, हँसना- रोना पर कभी कभी ऐसा हो जाता है कि मुश्किल हो जाता है उसे झेलना, और वही मैं झेल नही पाई,

परेशान मत हो माँ, मैं चली जाऊंगी नही रहूंगी ज्यादा दिन। छोटी बहन संध्या जो स्कूल से अभी आयी थी मार की नाम से सुबकने लगी । माँ ने गुस्से में संध्या को देखा और नीलू को पानी का गिलास थमाते हुए कहा..” इतनी छोटी बातें घर मे ही सुलझाया करो, इसके लिए दौड़ के मायके मत आया करो ।

नीलू को मानो काटो तो खून नहीं जैसा एहसास हो रहा था माँ की बात सुनकर । नीलू चप्पल पहनते हुए माँ से बोलने लगी ..” समझ गयी माँ ! जान पर बनेगी तब आपलोग को बताना है । मेरी जान से ज्यादा आपलोग को अपनी इज्जत की परवाह है । 

 आज भी वो दिन याद है, जब बुआ दुखी होकर आती थी और पापा, दादाजी के पास समय नही होता था उन्हें तसल्ली देने के लिए। तुरंत ही पापा दादा उन्हें उनके घर छोड़ने के लिए तैयार रहते थे सिर्फ इस सोच में की लोग क्या कहेंगे, कोई दुख नही समझता। खाने के बाद उसकी भी जाने की तैयारी हो गयी।

पापा और भैया साथ आये थे स्टेशन तक, फिर देखा भैया ससुराल तक छोड़ने जा रहे। सही तो कहती थीं दादी..”माँ से मायके होता है और भाई से मायके का मान । मेरे दर्द के लिए कोई जगह नहीं किसी के अंदर ।  अगर लड़कियाँ खुद का नुकसान करती हैं तो ऐसे ही मायके वाले लोगों की वजह से ।बुदबुदा रही थी नीलू ।उसे महसूस हो रहा था कहीं- ससुराल से ज्यादा मायका पराया है।जो अपने थे उन्होंने भी पराया समझा और आज पराया कर भी दिया…., अब नए घर नए रिश्तों से क्या उम्मीद करना।

मौलिक , स्वरचित

(अर्चना सिंह)

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