मतलबी रिश्तों की डोर – मंगला श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बाहर शादी की गहमा गहमी चल रही थी ,चारो और हर्ष उल्लास का वातावरण बना हुआ था मेहमानों से भरे हुए घर में ढोलक की थाप पर नाचने गाने की आवाज आ रही थी ,पर सरला जी और कमलनाथ जी आज इतने बड़े परिवार मे होकर भी अकेले पड़ गए थे।

आज उनको अपने खुद के बच्चे न होने का भी बहुत अफसोस और दुख हो रहा था।

उनको समझ आ गया था की आज रिश्ते कितने मतलबी हो गए हैं।

उन दोनो ने अपनी हर खुशी और सुख को जिन पर न्योछावर कर दिया और अपने जी जान से ज्यादा अपना मान कर पाला था आज उन्ही रिश्ता ने उनको सबसे अलग कर दिया था ।

सीधी और सरल स्वभाव वाली सरलाजी ने इस परिवार में हर रिश्ते को निभाते निभाते ही अपनी सारी उम्र खत्म कर दी थी।

उनके दोनो देवर और दोनो ननद जो की जब वह शादी होकर आई थी बहुत ही छोटे थे ,उनकी सास थोड़ी सी बीमारी में ही चल बसी थी । उनके पति कमलनाथ उस समय बस अठारह साल के थे ,उनके पिता ने उनकी शादी सरलाजी से कर दी जो उस वक्त सोलह साल की थी वह जमाना ही ऐसा था काम उम्र में ही शादी हो जाती थी।

शादी के बाद ही कमलनाथ जी ने पढ़ाई पूरी की और एक स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी कर ली थी।

शादी के बाद उन दोनो ने ही निर्णय लिया की वह अपने खुद के बच्चें पैदा नही करेगे और दोनो छोटे भाइयों और बहनों को ही अपने बच्चो के समान पालकर बड़ा करेगे और यही किया भी ।

पिताजी के गुजर जाने के बाद उनके पति कमलनाथ और उन्होंने ही सारे बच्चों को संभाला था।

आज उनके देवर किशन के बेटे की शादी थी और घर मेहमानों से भरा हुआ था ।

कमलनाथ जी को अचानक से खून की उल्टियां होने लगी थी, उनको डॉ को दिखाया गया जब सारी जांच करवाई तो उनको पता चला की उनको टीबी की बीमारी हो गई है।

बस उस दिन से ही उनको घर में एक अलग कमरा दे दिया गया था और छूत की बीमारी मान कर उनके भाइयों और उनके परिवार ने

उनसे दूरी सी बना ली थी।

सरलाजी ही पति की पूरी देखभाल करती थी ।

अब दवाइयों से वह ठीक भी हो गए थे परंतु इसके बाद भी भाइयों और बहनों ने उनको अलग थलग कर दिया था ।वह भूल गए थे की आज वह जिस मुकाम पर भी है वह अपने देवता जैसे भाई भाभी के कारण ही है।उनका त्याग और तपस्या दोनो ही आज व्यर्थ हो गई थी ।

शादी के थोड़े दिन पहले ही सरलाजी को उनकी देवरानी शालू ने अलग बुलाकर कहा की

दीदी शादी वाला घर है भाई साहब की बीमारी का बहुत से लोगो को पता नही है आप दोनो कृपा करके

अपने कमरे में ही रहिएगा आपका खाना पानी की सारी व्यवस्था वही पर करवा देगे ।

सरलाजी की आंखो में यह सुनकर आंसू भर आए थे ,वह अपनी रुलाई रोक कर बोली ठीक है बहु जैसा तुम कहो ,जब तक शादी है हम लोग अपने कमरे में ही रह लेगे बाहर नही आयेंगे।

कहकर अपने कमरे में जाकर फूट फूट कर रो पड़ी थी।

उनको याद आया की उनके ससुर जी ने कितना समझाया था एक दिन दोनो को की अपना खुद का एक ही बच्चा कर लो मैं अपने पोते पोती का मुख देख लूंगा आगे पता नही कैसा समय आयेगा,अगर इन लोगो ने तुम दोनो को ठुकरा दिया तो क्या करोगे कहां जाओगे ।

परंतु कमलनाथ जी गर्व से बोले नही पिताजी आप देखना मेरे यह दोनो बेटे मेरा और सरला का कितना मान सम्मान करेगे प्यार करेगे हम दोनो को कभी यह महसूस नही होने देगे की हमारे अपने बच्चे नही है।

उनको रोता देखकर कमलनाथ जी

भी रोने लगे और सरलजी का हाथ पकड़कर माफी मांगने लगे ।

सरला आज मुझको अपने निर्णय पर बहुत अफसोस हो रहा है,काश की मैं इस भ्रम में नही रहता की भाइयों व बहनों को बेटा बेटी मान कर रह सकते हैं, आज मेरे एक गलत निर्णय के कारण मेरे साथ तुम भी अकेली पड़ गई हो।

भगवान न करे मुझको कल को अगर कुछ हो गया तो तुम किसके सहारे रहोगीं ।

हे भगवान आज आपसे प्रार्थना करता हूं मेरे साथ ही मेरी सरला को भी मुक्ति दे देना ताकि वह इन मतलबी रिश्तो की डोर में बंधकर नही रहे ।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक कहानी ।

V M

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