मासूम रिश्ता – लतिका  श्रीवासत्व

बारिश की भीगी भीगी फुहार….ठंडी हवाओं की शोखियां….नीर भरे सांवरे कजरारे मेघों की मीठी आंख मिचौलियां…… उजली उजली धुली धुली सी फिज़ा…..मोहक  खुशमिजाज अलमस्त मौसम ….मन उत्साह और नई स्फूर्ति से भर गया।पहले तो मन किया आज वॉकिंग पर ना जाऊं …आराम से अदरक तुलसी की चाय और पकोड़े के साथ बरसात का आनंद लूं…..डर था इन काले बादलों का जिनकी अघोषित आकस्मिक ताबड़तोड़ बारिश मुझे आधे रास्ते में भिगोने ना आ जाए..!! पर फिर वही अनजाना अटूट आकर्षण मुझे घर से खींच कर उस रास्ते पर ले ही आया…!

 

जब भी मैं उस रास्ते से गुजरती जाने कहां से उसे पता लग जाता था और वो चुपचाप रास्ते के किनारे बैठ जाता था…..मेरे पास आते ही जल्दी से उठ कर खड़ा हो जाता था….मुस्कुराते हुए चेहरे से हाथ हिला देता था।

 

शुरू शुरू में तो मैने ध्यान ही नहीं दिया था…ध्यान जाने पर महज संयोग और अपने मन का वहम समझ कर टाल दिया था …लेकिन अक्सर उसे देखते देखते जाने कैसे उसे देखने की मेरी आंखों की भी आदत सी पड़ गई थी….एक अबोला सा अनजाना सा दिल का रिश्ता उसके साथ बंध गया था।अब तो मैं अन्य सभी रास्ते भूल कर उसी रास्ते से जाने लगी थी जहां वो खड़ा मिलता था।

 

उसकी मुस्कुराती आंखों में एक अलहदा चमक दिखती थी मुझे जो मेरी आंखों में भी चमक भर देती थी….उसके हिलते हुए हाथ मानो मेरे अंदर नवीन उत्साह का संचार करते थे ….अब तो मैं भी उसे देख कर मुस्कुराने लगी थी तब से उसकी वो मुस्कान और चौड़ी हो गई थी।

 


आज तक बातें करने का कोई मौका नहीं मिला था…पर हमेशा मुझे उसकी तरफ देख कर शिद्दत से ये एहसास होता था कि उसकी आंखें मुझसे कुछ कह रही हैं…कोई दिल की बात बयां करना चाहतीं हैं….. अक्सर सोचती थी अगर कभी बातचीत करने के पल आयेंगे तो क्या बात करूंगी!!वो मुझसे क्या कहेगा!!क्या उसका दिल मुझसे बातें करने का कभी नहीं होता!!कई बार तो मै उस जगह पर जान बूझ कर रुक जाती .. इस प्रत्याशा में कि वो मेरे पास आकर कुछ कहेगा….!पर ऐसा कभी नहीं हुआ ….कभी भी वो अपनी जगह से हिला भी नहीं…!

 

मुझे उसकी इस बात पर कई बार गुस्सा भी आता था…!एक बार तो मै उसके लिए गिफ्ट भी लेकर गई …रुकी भी….पर उसकी वही प्रतिक्रिया देख कर दे नही पाई….दिल की कुछ बातें भी और नाराज़गी भी शब्दों में अभिव्यक्त नहीं हो पाई….पता नहीं बिना किसी परिचय के बिना किसी बातचीत के भी मानो दिल ही दिल में बातें भी हो जाती हैं और उम्मीदें भी पनप जाती हैं..!

 

दिन प्रतिदिन इस अनूठी खामोश मुलाकात की आदत में हम दोनों यूं शामिल हो गए थे मानो इसके बिना दिनचर्या अधूरी और निरुत्साही हो।

इसीलिए आज भी घनघोर बारिश की संभावना और पकोड़े का स्वाद भी मुझे रोक नहीं पाया था …और एक बंधे हुए आकर्षण में मैं उस रास्ते पर निकल पड़ी …..धीमी धीमी बारिश की बूंदें सहसा तेज गर्जन तर्जन में परिणित हो गई…. मुझे आज ऐसे मौसम में उसके मिलने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी…..पर वो जगह आते ही मेरी दृष्टि आदतन रास्ते के किनारे उठ गई ….और ये क्या!!!!इतनी बारिश में भी वो उसी जगह बैठा था ….उसे देख अचानक  हाथों की छतरी पर से मेरी पकड़ शिथिल हो गई और छतरी दूर कहीं चली गई….मुझे लगा अब तो वो जरूर दौड़ कर आएगा …मेरे लिए छतरी भी लायेगा …कुछ कहेगा ..मेरा ख्याल करेगा…!

 


परंतु आज तो वो खड़ा भी नहीं हुआ बस हाथ हिलाता रहा… रोष और क्षोभ से भरी मैं ही आज उसके पास पहुंच गई……”बस ऐसे ही बैठे बैठे हाथ हिलाते रहना…इसके अलावा तुम्हे आता ही क्या है….किसी की मदद करना इंसानियत का फर्ज समझना ये सब तुम्हे कभी किसी ने सिखाया नहीं????गुस्से में भरी मैं ना जाने क्या क्या उसे सुनाती रही….सुनाती रही….!वो सुनता रहा …सुनता रहा… निःशब्द वही मीठी मुस्कान लिए।

 

अचानक मेरी तेज तेज आवाजें सुनकर एक दीन हीन सा अधेड़ जिसकी कमर कमजोरी और गरीबी की मार से झुक चुकी थी,किसी तरह अपने आपको संभालते हुए वहीं पर बनी एक झोपड़ी नुमा घर से बाहर निकला और मुझे देख कर जैसे सारा मामला समझ गया…

“आप अंदर आइए …अंदर आइए..बारिश और तेज हो गई है…..बहुत ही दयाद्र स्वर में मुझसे आग्रह करते हुए उसने मुझसे कहा फिर उसे भी हाथ पकड़ कर बड़ी मुश्किल से उठाया और घर के अंदर चलने का इशारा किया।

 

“मैं बहुत दिनों से आपसे मिलकर आपको बताना चाहता था पर डरता था आप नाराज ना हो जाएं……!वो अधेड़ व्यक्ति बहुत धीमे स्वरों में बता रहा था…..ये मेरा इकलौता बेटा अनुराग है ….दो वर्ष पूर्व महुआ बिनने जंगल में गई अपनी मां को अचानक लगी जंगल की आग से बचाने की प्राणपण कोशिश में ये भी बुरी तरह जल गया था ..मां को भी नहीं बचा पाया और तभी से अपनी बोलने और सुनने की शक्ति गंवा बैठा है….मैडमजी आप बुरा नहीं मानिएगा आपकी सूरत में अपनी मां की सूरत ढूंढता है….बुरी तरह जल चुके अशक्त पैरों में ताकत ही नहीं बची है बहुत मुश्किल से यदा कदा खड़ा हो जाता है ……मेरे कितना भी समझाने धमकाने के बावजूद सिर्फ आपको देखने के लिए रोज कैसा भी मौसम हो !..नियत समय पर यहां घिसट घिसट कर आ ही जाता है और बैठा रहता है….. पूरे दिन भर में एक ही बार खुल कर मुस्कुराता है जब आपको देखता है।

मैं अवाक सी उस मूक बधिर मासूम को देख रही थी जिसकी मासूम आंखों में मुझे देख कर वही मीठी  मुस्कान अब भी चमक रही थी।

#दिल का रिश्ता

लतिका श्रीवासत्व

 

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