“दिल का रिश्ता ” – -गोमती सिंह

‐—‐बात उन दिनों की है जब कोविड-19 का दौर चल रहा था ।  रात के 9 बज चुके थे जब  जूही का आक्सीजन लेबल एकदम गिर गया।  सांस लेने में तकलीफ होने लगी । वह एक बंद  कमरे में सोई हुई थी,  हांफते हुए पुकारने लगी –नील ! , नील! मुझे हाॅस्पीटल ले चलो नील , नहीं तो मैं नहीं बचूँगी ।

          कोविड की पुष्टि पूरी तरह से हो चुकी थी इसलिए नील पास जाने से घबरा रहे थे । मगर पत्नी थी घर की आधारस्तंभ सो उन्हें हर हाल में सुरक्षित रखना होता है । नील ने आक्सीमीटर में चेक किया जूही का आक्सीजन लेबल 80प्वाइंट से कम बता रहा था । आनन-फानन में कार निकाल कर हाॅस्पीटल पहुंच गये

               

           

——- कोविड सेंटर , जहां चारों तरफ कोविड के मरीज थे ,किसी भी मरीज के साथ उसके कोई रिश्तेदार नहीं थे , तो शुरुआत होती है दिल के रिश्ते की …..

       जूही रात 11बजे एडमिट हुई थी।  आक्सीजन वगैरह तत्काल लगा दिया गया था।  आक्सीजन मिलते ही जूही सामान्य महसूस करनें लगी थी  फिर सुबह-सुबह 5 बजे एक वार्ड ब्वाय आया आक्सीजन चेक करने जूही की नींद खुल गई थी वह हड़बड़ाते हुए उठने लगी वह शिफाॅन की सफेद रंग की चिकन वर्क वाली साड़ी पहनी हुई थी कंधे से सरकती पल्लू को संभालने लगी तो झम्म से शिल्की बालों का गुच्छा माथे के पास झूल गया । इस बीमार हालत में भी वह दूधिया रंग से लिपटी परी लग रही थी ।

                  चेकअप करनें आया आगंतुक देखकर मोहित सा होने लगा उसने हाँथ थाम लेना चाहा मगर खुद को रोक लिया – नहीं नहीं लेटे रहिए बस हाँथ आगे बढा दीजिये,  चेकअप करते हुए उसने पूरा बायोडाटा हासिल कर लिया और पहली ही मुलाकात में दिल का रिश्ता पनपने लगा ।


               पूरे वार्ड के मरीजों में उसे ही प्राथमिकता देता था । इस सिलसिले को चलते हुए पूरे एक सप्ताह हो गए।   जूही समझ गई थी कि इस लड़के को गलतफहमी हो गई है,  इसे नहीं पता कि मै Married  हूँ । हां मगर एक इंसानियत का पवित्र रिश्ता जूही के मन में भी बन गया था।  धीरे-धीरे जूही स्वस्थ्य हो गई उसका क्वारंटाइन का समय पूरा हो गया आज उसे डिस्चार्ज होना था वह वार्ड ब्वाय पेपर  फार्मेलिटि पूरी कर रहा था

और कुछ इजहार करने के लिए हिम्मत जुटा रहा था ,

तभी जूही के मोबाइल पर रिंगटोन बजने लगा — “-दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है ” और उसने उसके गलतफहमी को दूर करते हुए कहा मेरे हसबैंड का फोन है चलिए मुझे नीचे फ्लोर तक पहुँचने में मदद कर दीजिये,  हसबैंड का फोन है , सुनकर उसे झटका लगा अगले ही पल खुद को सामान्य बना कर कहा-क्यों नहीं जरूर । लिफ्ट से दोनों नीचे आ गये , सामने नील खड़े हुए थे साथ मे पांच साल का बेटा भी साथ में था  तीनों कार में रवाना होने ही वाले थे कि फिर वही रिंगटोन बजने लगा ” दिल का ………प्यारा है । “

          जूही अपने पति की ओर मुखातिब होकर बोली सच में हाॅस्पीटल के  कर्मचारी अजनबी  होते हुए अपने नि:स्वार्थ सेवा भाव से दिल का रिश्ता बना लेते हैं ऐसा कहते हुए देखी फोन उसी वार्ड ब्वाय का था तो झट से बाहर निकल गई और जोर से आवाज़ लगाई टाटा अजय फिर मिलेंगे।  और दोनों अपनी अपनी राह चले गये। 

                 ।।इति।।

                     -गोमती सिंह

                           छत्तीसगढ़

    स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

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