मैंने ऐसा तो सोचा न था – के कामेश्वरी

भुवनेश्वर जी के दो लड़के थे । वे कपड़े बेचने का व्यवसाय करते थे । रोज सबेरे साइकिल पर कपड़ोंकी गठरी रखकर बेचते थे । छोटा बेटा पढ़ लिखकर शहर में ही नौकरी करने लगा था । बड़ा बेटाकल्याण ने डिग्री के बाद पिता के साथ ही काम करने का फ़ैसला कर लिया था । 

भुवनेश्वर जी हमेशा से ही सोचते थे कि थोड़े से पैसे कहीं से मिल जाए तो बाज़ार में एक छोटी सीदुकान खोल लेते थे । इस तरह साइकिल पर कपड़े बेचने की ज़रूरत नहीं पड़ती परंतु उनका यह सपना पूरा ही नहीं हो रहा था । कुछ न कुछ खर्चे आ जाते थे तो दुकान को पोस्ट पोन करना पड़ता था। इस बार भी उन्होंने सोचा तो बड़े बेटे कल्याण की शादी तय हो गई थी । कल्याण की शादी उनकेदोस्त की बेटी लक्ष्मी के साथ तय हुई थी । 

भुवनेश्वर जी ने अच्छा -सा मुहूर्त देख कर उनकी शादी करा दी थी । बहू लक्ष्मी के आ जाने से घर मेंरौनक़ आ गई थी । 

एक दिन भुवनेश्वर और कल्याण दुकान के बारे में बातें कर रहे थे तो लक्ष्मी ने सुन लिया था और उसनेदूसरे दिन अपने गहने बेचकर पैसे लाकर ससुर के हाथों में रख दिया और कहा आप न नहीं कहेंगेक्योंकि गहनों को ज़रूरत पड़ने पर उपयोग करने के लिए ही खरीदा जाता है । आप इस उम्र मेंसाइकिल पर कपड़े बेचने नहीं जाएँगे । 

अब लक्ष्मी की जिद के आगे उनकी एक न चली और उन्होंने बाज़ार में एक छोटी सी दुकान ले ली ।लक्ष्मी के हाथों का कमाल था या इनकी क़िस्मत ने साथ दिया था कि इनकी दुकान में दिन दूनी रातचौगुनी तरक़्क़ी होने लगी । वहीं बाज़ार में उन्होंने एक और दुकान ले ली । भुवनेश्वर जी ने दुकानलक्ष्मी के नाम ही रखी थी।उन्होंने लक्ष्मी को व्यापार में वैसे ही दर्जा दिया जैसे एक बेटे को दिया है ।उसके फ़ैसले को भी मान दिया जाता था ।

भुवनेश्वर जी के गुजरने के बाद भी यह सिलसिला चलता रहा । घर और बाहर के कामों में लक्ष्मी कीमहत्वपूर्ण भूमिका थी । कल्याण और लक्ष्मी के भी दो लड़के और एक बेटी थी सबको उन्होंने नाज़ों सेपाला था । कल्याण के भाई का भी किसी दुर्घटना में मौत हो गई थी । उसकी शादी नहीं हुई थी । अबपूरे जायदाद का मालिक कल्याण ही था । लक्ष्मी ने समय रहते ही बड़े बेटे की शादी करा दी जो पढ़लिख कर पिता के साथ दुकान में काम करने लगा था । छोटे बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कीऔर एम एस करने के लिए अमेरिका चला गया था । उसके आने के बाद उसकी भी शादी करानी थी ।




बेटी अभी डिग्री की पढ़ाई पढ़ रही थी ।उसकी पढ़ाई पूरी होते ही उसके हाथ भी पीले कर देने हैं । यहीसब सोचते हुए लक्ष्मी की आँख लग गई । कल्याण दुकान से आते ही सारी बातें लक्ष्मी को बताते थे ।उस दिन भी आते ही उन्होंने लक्ष्मी को आवाज़ लगाई पति की आवाज़ सुनकर लक्ष्मी बाहर आती है ।कल्याण कहता है मालूम लक्ष्मी आज गजब हो गया था । मेरी दुकान में कपड़े ख़रीदने के लिए मेरेबचपन का दोस्त राजन आया था । मैं तो उसे नहीं पहचान पाया था परंतु उसने मुझे तुरंत पहचान लियाथा । उसने शादी नहीं की है माँ बाप का अकेला वारिस है पिता ने लाखों कमाया है और इसे शादीकरने के लिए कहते कहते हुए ही वे दोनों स्वर्ग सिधार गए थे । इसे बचपन से ही समाज सेवा पसंद थी।

 तुम्हें मालूम है उसने अपने पिता की जो पुश्तैनी हवेली थी उसे वृद्धाश्रम बना दिया है । उसने वहाँ एकडॉक्टर ख़ानसामा नौकर चाकर सबको रखा है और बुजुर्गों की सेवा कर रहा है । हमें भी एक बारआकर देखने के लिए कह रहा था ।हम भी चलते हैं न? लक्ष्मी ने कहा ठीक है हम लोग भी जाएँगे ।आप उनसे एकबार पूछ लीजिए उनके यहाँ कितनी महिलाएँ हैं और कितने पुरुष हैं उसके हिसाब से हमउन लोगों के लिए कपड़े ले जाकर देंगे । 

कल्याण बहुत खुश हो गया लक्ष्मी की बात सुनकर । कल्याण को लक्ष्मी इसलिए पसंद थी कि वह दूरकी सोचती है । एक रविवार को लक्ष्मी और कल्याण राजन के घर पहुँच गए । वहाँ जितने भी वृद्ध थेसबको अपने साथ लाए कपड़े उन्होंने दिए । सबने उन दोनों को आशीर्वाद दिया । लक्ष्मी ने पूरे घर मेंघूमघाम कर देखा और राजन को कुछ सलाह भी दिया था । लक्ष्मी को वह घर बहुत पसंद आया था ।

बहू बेटे को मालूम था कि लक्ष्मी की बात ही घर में चलती है । बहू बेटे सब उनसे पूछे बिना कुछ भीकाम नहीं करते थे । बच्चे भी दादी को बहुत पसंद करते थे । कल्याण ने एक दिन कहा लक्ष्मी विजयअमेरिका से वापस आ रहा है उसकी भी शादी करा देते हैं क्योंकि उसकी नौकरी भी इंडिया में ही लगगई है तो अब वह यहीं रहेगा । दोनों ने मिलकर विजय के लिए लड़की को ढूँढ लिया विजय जैसे हीइंडिया आ गया उन्होंने उस लड़की से विजय को मिलाया । कविता और विजय दोनों ने एक दूसरे कोपसंद किया और दोनों की शादी हो गई । 

कविता भी पढ़ी लिखी थी । दोनों विजय की नौकरी की वजह से शहर में रहने के लिए चले गए थे । वेदोनों हर हफ़्ते आया करते थे और सबसे मिलकर जाते थे । पूरा परिवार प्यार से मिल जुलकर रहते थे। कल्याण और लक्ष्मी अपने परिवार में खुश थे । ज़िंदगी ऐसे ही चले तो फिर क्या?

एक दिन कल्याण दुकान से जल्दी घर आ गया था कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है । पहले ऐसा कभीनही हुआ था इसलिए लक्ष्मी घबरा गई और उसने जल्दी से अपने फेमली डॉक्टर को बुला लिया । 




डॉक्टर ने देखा और कहा कि इन्हें जल्दी से अस्पताल में भर्ती कराइए मैं भी चलता हूँ । कल्याण कोअस्पताल पहुँचा पाते इस बीच में ही उनकी मृत्यु हो गई थी । जब उन्हें घर लेकर आए तो लक्ष्मी सहनहीं पाई ।उन दोनों का साथ पचास साल का था ।

 एकदिन भी दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रहे थे ।इसलिए वह इसे सह नहीं पाई । 

इसका असर यह हुआ कि वह अपने आप में सिमट गई और कमरे से बाहर नहीं निकल पाई थी । उसेइस दुख से उभरने के लिए छह महीने लगे थे । जब उसे थोड़ा अच्छा लगा तो वह कमरे से बाहर आईदेखा तो सब कुछ बदला बदला सा नज़र आ रहा था । कल तक तो जो बहू उसे देखते ही भाग कर आजाती थी आज वह  लक्ष्मी को देख कर भी अनदेखा करके चली गई और बच्चे तो दादी को छोड़करनहीं रहते थे पर आज अजनबी को देखे जैसे देख रहे थे । लक्ष्मी को लगने लगा कि शायद उसके पतिके जाने के बाद लोगों का उसकी तरफ़ से नज़रिया बदल गया है ।

वह वहाँ एक मिनट खड़े भी नहीं रहसकी और भागते हुए अपने कमरे में वापस आ गई । अभी वह कमरे में आई ही थी कि उसके पीछे पीछेउसका बड़ा बेटा अजय आ गया था । माँ इन पेपरों पर साइन कर दो क्योंकि हर बार आकर आप सेसाइन लेना पड़ रहा है हमें मुश्किल हो रही है । लक्ष्मी ने बिना कुछ पूछे पेपर्स लिए और उन पर साइनकर दिया और सोचने लगी कि इतने सालों से न ससुर ने और न ही पति ने कहा था कि हर बार आकरसाइन लेना मुश्किल हो रहा है । कल्याण के जाते ही पूरे घर का माहौल ही बदल गया है । उसी समयबाहर से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगी थी । वह जल्द ही कमरे से बाहर आई औरदेखा तो दोनों भाई जायदाद के लिए लड़ रहे थे । 

अजय ने जिन पेपरों पर साइन कराए थे उसने सारी जायदाद अपने नाम करा लिया था । इसी बात परविजय उसके साथ लड रहा था । कल्याण के मित्र राजन उसी समय वहाँ पहुँचे और दोनों भाइयों कोडाँटने लगे । मालूम नहीं क्या सोचकर दोनों ने उनकी बात सुनली । राजन ने वहीं के वहीं उन दोनों कीसुलह करा दी । लक्ष्मी का दिल ख़राब हो गया था । उसने कभी नहीं सोचा था कि उनके बेटे ऐसे होंगे। वह कमरे में चली गई । राजन उसके कमरे के सामने पहुँचे और उनसे कहा लक्ष्मी जी अब मैं चलताहूँ । 

उन्होंने आश्चर्य से तब देखा जब लक्ष्मी अपने हाथों में सूटकेस लेकर आई और उसने कहा भाई आपकोएतराज़ न हो तो मैं आपके होम में रहकर ज़रूरत मंदों की सहायता करूँगी । राजन ने कहा लक्ष्मी नेकीऔर पूछ पूछ “ आ जाओ मेरे होम में आपका स्वागत है । लक्ष्मी अपना सामान लेकर चली आई ।अजय विजय का परिवार दौड़ते हुए आया और लक्ष्मी से रुकने की मिन्नतें करने लगे ।

 लक्ष्मी का दिलटूट गया था इसलिए उसने उनकी मिन्नतें ठुकरा दी और आगे बढ़ गई । उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखाजैसे वह पुरानी बातों को भुला कर आगे बढ़ना चाहती हो । वह सोच रही थी कि मैंने अपनी ज़िंदगी मेंऐसा कभी नहीं सोचा था । सच ही तो है ज़िंदगी जीने का नाम है इस में “कभी ख़ुशी कभी ग़म “भी होतेहैं । सही राह चुनकर हमें आगे बढ़ना है । 

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

के कामेश्वरी

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