मैडम, मेरे सौतेले बाप से मुझे डर लगता है – सुल्ताना  खातून 

उस व्यक्ति की उम्र कोई 40 साल के करीब रही होगी, वह पाँच साला छोटी बच्ची के साथ खेल रहा था, कभी वह बच्ची को गोद में बैठा लेता, कभी उसके गालों पर प्यार करता, कभी गोद में बैठा कर उसके सीने को सहलाता, सलोनी को यह सब देख उसका दिमाग फटने लगा।

वह शहर के जाने-माने वकील महेश साल्वे के अधीन प्रैक्टिस कर रही थी, और आज़ एक मैडम के पास उनसे केस की डिटेल लेने आई थी, उनके नौकर ने उसे ड्राइंग रूम में बैठा दिया था, वह थोड़ी देर में आ रही थी, तभी कुछ देर के लिए वह खिड़की पर खड़ी हो गई और बाहर लॉन में एक व्यक्ति के साथ उस बच्ची को खेलते हुए देख रही थी, थोड़ी देर देखते रहने के बाद उसे अच्छा फील नहीं हुआ, वह बाहर निकल आई और उनकी बातें सुनने लगी।

बच्ची कह रही थी – अंकल आप कल मेरे लिए ढेर सारी चॉकलेट्स लाना… और अंकल ने प्रॉमिस करते हुए खुशी से उसके होठों पर को चूम लिया।

सलोनी तीर की तरह उस इस आदमी पर झपट पड़ी… और बच्ची को छीन लिया…।

और गुर्राते हुए बोली – ये क्या क्या तरीका है बच्चों के साथ व्यवहार करने का… वह आदमी डपट कर बोला-कौन हो तुम वहां क्या कर रही है

हलचल होने पर  मैडम शीला घर से बाहर निकली… क्या हो रहा है यहां… उनके पूछने पर वह व्यक्ति बोला.. आंटी आप भी कैसे-कैसे जाहिल लोगों को घर में घुसा देते हैं  कहते हुए वह घर से बाहर निकल गया

मैडम शीला सलोनी के तरफ मुड़ी…

सलोनी गुस्से में बच्ची को सीने से चिपकाए खड़ी थी… मैडम शीला  कुछ पूछती तभी पहचान की एक लहर उनके चेहरे पर आई… “अरे सलोनी तुम…” उनके कहते  ही सलोनी भी उनको देख कर चौक गई – “शीला मैडम आप?”

“अरे तुम तो वकील बन गई हो मुझे महेश साल्वे जी ने बताया था… किसी को भेज रहे हैं.. अच्छा चले आओ अंदर बैठो…




मैडम पहले आप यह बताएं या आदमी कौन था… सलोनी के पूछने पर मैडम शीला चौकी- अरे यह मेरे बेटे मयंक का दोस्त था, मयंक से मिलने आया था, वह घर पर नहीं था तो मेरी पोती के साथ खेलने लगा।

मैडम शीला के कहते ही सलोनी ने एक नाराजगी भरी नजर उन पर डाली और कहां- मैडम मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी, कैसे आप इस बच्ची को किसी के साथ अकेले छोड़ सकती हैं, आप कैसे किसी पर विश्वास कर सकती हैं, मेरे हिसाब से उस व्यक्ति के व्यवहार बच्ची के साथ सही नहीं था अब मैं गलत हूं या सही, लोग तो मुझे इस मामले में पागल ही कहते हैं, पर आप आइंदा ख्याल रखियेगा, मैं शाम को आपसे मिलने आऊंगी,  मैम आपने मेरे लिए कुछ नहीं किया था, लेकिन इस पर कड़ी नजर रखें, अभी मुझे कोई जरूरी काम याद आ गया यह कहते हुए सलोनी तेजी से निकल गई।

मैडम शीला सकते में आ गईं, और बच्ची के लिए अंदर आ गई उनके जहन में पुरानी यादें ताजा होने लगीं…वह चुपचाप अपने रूम में आ गईं. अपनी बुक सेल्फ से एक पुरानी बुक निकालीं और उसके पेज के बीच से एक छोटा सा पन्ना लेकर वह कुर्सी पर बैठ गईं और पढ़ने लगीं।

मैडम

आप मुझे बहुत पसंद है, आप मुझे डांटते भी नहीं इसलिए यह बात मैं आपको बता रही हूं मैडम मुझे अपने घर में बहुत डर लगता है मेरा सोतेला बाप मुझसे पैर दबवाता है, मुझे अकेले कमरे में जाने को बोलता है, उसकी बातें मुझे अच्छे नहीं लगतीं,मैं मां से नहीं बता सकती, वह माँ को भी मारता है, मैडम आप कुछ करो ना!

यह काग़ज़ उन्हें सलोनी ने तब दिया था जब वह एक छोटे से इलाक़े के एक गवर्नमेंट मिडिल स्कूल में पढ़ाती थीं, फिर उनका प्रमोशन हो गया ट्रांसफर के साथ… सलोनी के लिए वह कुछ नहीं कर पाई थीं… और चली आई थी….उनका मन भारी होने लगा.. वह चुपचाप लेट गई… पता नहीं कब शाम हो गई, दरवाजे पर दस्तक हुई नौकर ने बताया कोई मैडम आई हुई हैं… फ्रेश का कह कर वह बाथ रूम में चली गई… आईं तो सलोनी चुपचाप बैठे हुई थी, सलोनी ने उन से कुछ नहीं कहा… और केस की डिटेल्स लेने लगी… दरअसल उनके बेटे ने अपने पसंद के शादी की थी और शादी के तीसरे ही साल उनकी बहू, उनकी 1 साल की पोती को छोड़कर चली गई थी और डिवोर्स ले लिया था…. उनके बेटे को बहुत सदमा पहुंचा था… वह अभी तक उस सदमे से ठीक से उबर भी नहीं पाया था, कि उसने कोर्ट से बच्ची को लेने के लिए इतने सालों बाद नोटिस भिजवाया था… उसी मामले में वकील महेश साल्वे से बात की थी।

मैडम शीला ने कहा सलोनी मुझे पहले अपने बारे में बताओ… मैं तुमसे बहुत शर्मिंदा हूं मुझे अर्जेंट आना पड़ा था, मैंने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया प्लीज मुझे बताओ अपने बारे में…।

सलोनी ने कहा- मैं रोज-रोज के घुट के जीने से तंग आ चुकी थी, मैंने अपने मां को सब बता दिया उसने मुझ पर यकीन नहीं किया…




लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद मेरे सौतेले बाप को उन्होंने छोड़ दिया और मुझे लेकर यहां आ गई… और तब से मैं मेरी मां ने मैंने बहुत संघर्ष किया… मेरी माँ के प्यार, विश्वास, और सहयोग मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है, जहाँ मैं एक नई पहचान के साथ आपसे मिल रही हूँ।

हां सलोनी बचपन में तुम भी बहुत पढ़ाई में तेज थी, तुम वहां के सारे बच्चों से अलग थी, देखो सलोनी मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती थी… पर अचानक आ जाने की वजह से मैं कुछ नहीं सकीं… एक बार वहां जाकर मैंने तुम्हें ढूंढा भी लेकिन तुम लोग वहां नहीं मिले मैडम शीला के कहने पर सलोनी ने कहा- मैडम छोरी पुरानी बातों को आप बताइए आप कैसी हैं?

शीला मैडम ने कहा मैं तो ठीक हूं लेकिन तुम बताओ शादी हो गई तुम्हारी

उनके कहने पर सलोनी ने फीकी हंसी हंसते हुए बोली नहीं मैडम सब मुझे पागल समझते है, और मैं किसी पर विश्वास नहीं करती…।

अच्छा ठीक है मैडम मैं चलती हूं… आप अपना ख्याल रखिएगा… और बच्ची का देखिएगा। सुबह जो भी हुआ पता नहीं मेरे दिमाग में क्या था या सचमुच वैसा था,लेकिन इस मामले में मैं ग़लत नहीं हो सकती, आप ख्याल रखिएगा… यह कह कर सलोनी चली गई।

शीला मैडम अपने पोती के कमरे के तरफ बढ़ गई… चार सालों से वह अपने पोती की जिम्मेदारी उठा रही थी, पर यह जिम्मेदारी अब लगता था बुढ़ापे में उठा नहीं पाएँगी, वह अपनी पोती के लिए चिंतित हो उठीं।

बेटा को अब किसी पर विश्वास ना रहा,,, शादी पर भी उसका विश्वास न रहा

तभी उनके दिमाग मे एक विचार कौंध उठा,

सलोनी मेरे पोती का ख्याल अच्छे से रख सकती हैं, आज मेरे बेटे का भी या ख्याल आते ही वह मंद मंद मुस्कुराने लगीं… उन्हें पता था मयंक और सलोनी को मनाने में कठिन समय लगे लेकिन उन्हें यकीन था ऐसा हो सकता था।

स्वरचित

सुल्ताना  खातून 

 

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