लड़के वाले (भाग – 7) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

अभी तक आपने पढ़ा कि नरेशजी अपने बेटे उमेश के लिए लड़की देखने बारिश के दिन अपने परिवार सहित भुवेश जी के यहां आयें हुए हैं … लड़की शुभ्रा बैठक में आ चुकी हैं… लड़की के दादा नारायण जी अपने पलंग पर सबको घूरने में लगे हुए हैं… लड़के वालों को शुभ्रा पसंद नहीं आती हैं क्यूँकि घर की औरतें ने उसके चेहरे पर इस तरह लीपापोती की है कि शुभ्रा सुंदर कम कार्टून ज्यादा लग रही हैं… तभी दादा जी लड़के वालों की चुप्पी देख उनसे कहते हैं… बुत बने क्यूँ बैठे हो… जो पूछना हो लाली से पूछ लो… तभी नरेशजी का छोटा बेटा समीर बोलता हैं …

अब आगे….

समीर बोलता हैं… आपका नाम क्या हैं??

जी, शुभ्रा…. लड़की धीरे से सर नीचे कर बोलती हैं..

उधर वीना जी समीर को ऊंगली पर गिनती करती हुई उसे इशारे से कहती हैं कि पढ़ाई – लिखाई पूछ …

शुभ्राजी…. आपकी क्वालिफिकेशन क्या हैं??

जी… एमएससी लास्ट ईयर हैं…

फिर आगे क्या करने का सोचा है आपने य़ा नहीं पढ़ना ??

जी….बस कंपटीशन की तैयारी कर रही हूँ… कोशिश हैं कहीं चयन हो जायें …

जी बहुत अच्छी बात है … अच्छा लगा ज़ानकर कि आप नौकरी करना चाहती हैं…

तभी समीर की बात काटते हुए वीना जी कहती हैं अगर शुभ्रा बेटा ससुराल वाले नौकरी ना कराना चाहे तो…??

जी… माफ कीजियेगा पर मुझे नौकरी करनी हैं क्यूँकि मुझे अपने पापा का पैर लगवाना हैं ज़िसका खर्चा बहुत हैं… अभी हम सब बहनों और ज़िम्मेदारी की वजह से पापा खुद नहीं लगवा रहे ना ही लगवायेंगे मैं जानती हूँ… बस इसलिये करना चाहती हूँ..

अगर ससुराल वाले आपको अपनी तंख्वाह आपके मायके में खर्च करने की अनुमति ना दे तो?? उमेश के ताऊ रमेश जी थोड़ा रोष में बोले…

मैं ऐसे घर में शादी नहीं करूँगी … शुभ्रा ने पूरे आत्मविश्वास से बोला…

भुवेश जी शुभ्रा के ऐसा कहने पर काफी गुस्सा दिख रहे थे कि एक अच्छा रिश्ता ये लड़की हाथ से गंवा दे रही हैं…

तभी शुभ्रा की बुआ बोली… ऐसे ही बोले हैं ये… आजकल की पढ़ी लिखी छोरिय़ां ब्याह से पहले ऐसे ही बोले हैं पर सब बदल जावें हैं ब्याह के बाद… आप लोग बिफिकर रहो… जे एक पैसा भी भाई साहब पे ना खर्च करें हैं…

जी इसमें हर्ज क्या हैं अगर बेटी अपने पिता के लिए अपनी कमाई से कुछ खर्च करना चाहती हैं तो जिस पिता ने उसे पढ़ा लिखाकर इतना काबिल बनाया क्या उस बेटी का कोई फर्ज नहीं अपने पिता के प्रति … हमें तुम्हारे विचार बहुत अच्छे लगे बेटा… नरेशजी बुआ की बात काटते हुए बोले…

नरेशजी के मुंह से ऐसी बात सुन शुभ्रा के मुरझाये चेहरे पर कुछ मुस्कान आयी… पर उमेश थोड़ा बुझा बुझा सा था… उसे शुभ्रा देखने में अच्छी नहीं लगी थी… वो वीना जी को दूर से कुछ इशारे करने में लगा था… पर वीना जी समझ नहीं पायी… वो बोली.. शुभ्रा और उमेश आप दोनों एक बार खड़े हो जरा लम्बाई नाप ले…

उमेश ने अपने सर पर हाथ रख लिया… ये कब कहां मैने माँ से…

वो और शुभ्रा वीना जी के कहने पर खड़े हो गए… वीना जी देख ही रही थी कि तभी तपाक से बुआ जी बीच में आकर बोली… आपसे तो लम्बी ही हैं हमाई छोरी… आपके छोरे के भी कांधे तक आ रही ..

उधर शुभ्रा के दादा नारायणजी भी जोश में आ गए बोले… का खूब लगे हैं दोनों की जोड़ी जैसे राम सीता… समीर मन ही मन वो नदिया के पार फिल्म का गाना सोचने लगा…

जब तक पूरे ना हों फेरे सात

तब तक दुल्हिन नहीं दुल्हा की

हे तब तक बबुनी नहीं बबुवा की…

और इधर दादा जी तो दोनों की जोड़ी भी बताये दे रहे कि राम सीता सी लग रही…

तभी समीर ने अपना दिमाग दौड़ाया आखिर बड़े भाई की ज़िन्दगी का सवाल था कि ये लोग तो अभी ही शायद फेरें करा देंगे यहीं .. उसने वीना जी से कहा – माँ.,, मौसी का फ़ोन हैं… यहां नेटवर्क की वजह से आवाज नहीं आ रही बाहर ज़ाकर बात कर लीजिये …

वीना जी ने समीर को घूरकर देखा कि इस समय तो बहना कभी फ़ोन नहीं करती आज कैसे आ गया… समीर भी वीना जी के साथ बाहर आया… उसने वीनाजी के कान में कुछ कहा .. तभी उनके पीछे शुभ्रा की बड़ी बहन खड़ी थी उसे देखकर वो चौंक गए..

वो बड़ी बड़ी आंखे दिखा बोली… कुछ चाहिए क्या?? अच्छा बाथरूम आयी होगी जाईये वहां बाहर गुसलखाना हैं…

नहीं नहीं… बस माँ मौसी से बात कर रही हैं… फ़ोन लग नहीं रहा था…

वीना जी और समीर चुपचाप बैठक में आ गए..

हां बहनजी .. बताईये… फाईनल समझे फिर रिश्ता…दादा नारायण जी बोले…यह सुन उमेश घबरा गया…

तभी वीना जी बोली .. एक बार बेटा शुभ्रा आप सूट पहनकर आओ और जैसे तुम अपने कोलेज ज़ाती हो य़ा घर में रहती हो वैसे आओ… ये सैंडिल मत पहनना …

यह सुन बुआ जी बोली… कितनी तो सलोनी लग रही हैं छोरी… साड़ी तो औरत का गहना होवे हैं…

जी आपने सही कहा… पर हम एक बार सूट और साधारण रुप में देखना चाहते हैं…

शुभ्रा बोली… जी अभी आयी मैं पहनकर …

शुभ्रा अन्दर ज़ाती हैं पीछे पीछे बुआ जी भी चल देती हैं… तभी शुभ्रा गुस्से में बुआ जी से कहती हैं… अब बस….

अब आगे कल…. तब तक के लिए स्वस्थ रहें मस्त रहें… मेरी कहानी पढ़ते रहे

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

लड़के वाले (भाग – 6)

लड़के वाले (भाग -8)

2 thoughts on “लड़के वाले (भाग – 7) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!