Moral Stories in Hindi : जैसा कि आपने अभी तक पढ़ा कि नरेश जी अपने बड़े बेटे उमेश के लिए परिवार सहित भुवेश जी के यहां लड़की देखने आयें हुए हैं… लड़के वालों को लड़की पसंद नहीं आती हैं…उमेश की माँ वीना जी लड़की शुभ्रा को सूट पहनकर और बिना मेकअप के आने को कहती हैं… तभी शुभ्रा हामी भरकर कहती हैं ज़ी ,, अभी आयी पहनकर … तभी पीछे पीछे शुभ्रा की बुआजी भी आती हैं…शुभ्रा गुस्से में बुआ जी से कहती हैं… अब बस….
अब आगे…
शुभ्रा कहती हैं… अब बस बुआ जी… आप लोगों को ज़ितना मुझे सजाना था सजा लिया… पर अब नहीं…
बड़ी जबान चलें हैं तेरी..मैं क्या कुछ बोले हूँ… बस जे कह रही कि तेरे कोई सूट अच्छे नहीं हैं तू बबली का वो अनारकली वाला सूट पहन ले री … ज़िसमें वो गोटा वाली कढ़ाई हैं…
बुआ जी,,, अब जो कुछ पहनना हैं मैं अपनी मर्जी से पहनूँगी …
तभी पीछे से भुवेश जी डंडा संभालते हुए आयें…
देख रे हैं भाई साहब… कितनी जबान खुल गयी हैं इसकी… जब अपनी मर्जी का ही सब कुछ करें हैं तो हमें बुलाया ही काये कूँ… बखत खराब करने..
बन्नो…क्या गलत कहा छोरी ने… सही तो कह रही… तुम सबने तैयार करके देख लिया.. पसंद ना आयी ज्यादा छोरे वालों को छोरी … अब उसे अपनी मर्जी से तैयार होने दो…. बस बेटा… ज्यादा बखत मत लगाना … वैसे भी बहुत अबेर हो चुकी हैं…
पापा आप चिंता मत करो …बस 10-15 मिनट लगेंगे मुझे…
तुम बाप बेटी जानों जो करना होवे… अब मैं तो कुछ बोलूँगी ही नाये … गुस्से में बुआ जी पैर पटकते हुए अन्दर चली गयी ….
शुभ्रा कमरे में तैयार होने चली ज़ाती हैं…
इधर बैठक में दादा नारायणजी का बाजा चालू हैं…
वो लड़के वालों से कहते हैं जब तक लाली तैयार होकर आ रही… भोजन कर लो आप लोग…
दादा जी का खौफ तो अब लड़के वालों को भी हो चुका हैं… ताऊ रमेश जी कहते हैं… जैसी आपकी इच्छा … उमेश और समीर मन ही मन सोच रहे हैं यहां लड़की पसंद नहीं आयी हैं और खातिर इतनी हो रही हैं अगर रिश्ता मना करके गए तो जूतें ही खाकर ज़ायेंगे यहां से… सभी के चेहरे बुझे हुए हैं… सबसे ज्यादा बेचारा उमेश परेशान है …
तभी दादा नारायण जी जोरदार आवाज में दहाड़ते हैं… रोटी ले आ बन्नों, बबिता कहां चली गयी सब.. बखत पे सब बहरी हो जावें हैं…
बुआ बन्नो जो नाराज हो चुकी हैं पिताजी की दहाड़ भरी आवाज सुन फुर्ती से आंसू पोंछ चिल्लाती हैं…
लायें पिता जी …. दो मिनट बस…. फिर रसोईघर से कहीं बरतनों के गिरने, घर की औरतों की चूड़ियों की आवाज आने लगती हैं….
पांच मिनट के अंदर भोजनथाल आ ज़ाते हैं ज़िसे घर की बड़ी बहू की लड़की लाती हैं… समीर की नजर अचानक से उस लड़की के चेहरे पर ज़ाती हैं वो तो समीर को देख देख शर्मा रही थी… कभी हंस रही थी… सबके सामने भोजनथाल रख वो लड़की अपनी चुन्नी को मुंह में दबाये समीर की तरफ देख मुस्कुराकर अन्दर चली गयी… उमेश यह सीन देख समीर के चेहरे को देखता हैं जिस पर बारह बजे होते हैं… समीर मन ही मन सोचता हैं यहां भईया का रिश्ता तो हो नहीं पा रहा घर के लोग मेरे पीछे भी पड़ गए….
तभी बाकी घर के सदस्य एक एककर खाने के तरह तरह के व्यंजन लाकर परोसने में लगे हैं… अब तक छोटे आलू की सब्जी ज़िसमें इक्का दुक्का पनीर के टुकड़े भी दिख रहे हैं… आलू गोभी की सब्जी , भरवा करेला , भरवा बैंगन , भरवा कुन्द्रू , भरवा मिर्च, बूंदी का रायता, उड़द की दाल , पुलाव , दो तरह की पूड़ी , दाल की कचौड़ी , सलाद था… नरेश जी, रमेश जी सभी लड़के वाले इतने पकवान देखकर एक दूसरे की तरफ देखते हैं… रमेश जी नारायण जी से कहते हैं…
अब शुरू कर सकते हैं य़ा नहीं?? वीना जी मन ही मन सोची कि बुढ़ऊँ हाथ पर हाथ रखकर कुछ बोल क्यूँ नहीं रहे….. नारायणजी .. अब अपने पलंग से उठते हैं … उन्हे देख लड़के वाले घबरा ज़ाते हैं कि ऐसा भी क्या कह दिया रमेश जी ने कि बुढ़ऊँ जो दो घंटे से अपने पलंग से टस से मस नहीं हुए अब उठकर हमारे पास ही चले आ रहे हैं…
अपनी धोती संभालते हुए वो लड़के वालों के सामने रखी मेज के खाने को घूरकर देखते हैं… मुंह पर ऊंगली रख कुछ गुणा भाग कर फिर दहाड़ते हैं … समीर , उमेश नारायणजी की दहाड़ती आवाज अपने कानों के बिल्कुल पास सुन अपनी जगह से उठ खड़े होते हैं… नारायणजी कहते हैं… तुम लोग क्यूँ खड़े हो गए….
जी दादा जी.. बस…. इतना कह दोनों अपनी जगह फिर संभाल लेते हैं…
सुन रहा कलूआ … कहां मर गया … नारायण जी गुस्से में बोले…
हां बोलो.. बाऊ जी… का हुआ??
जे दही बूरा कहां हैं?? अभी तक परोसा ही नहीं इन्हे … मैं ना ध्यान देऊँ तो ये लोग सब काम गलत कर देंवे …
जा लेके आ … ये भोजन शुरू करें फिर …
आप लोग ठहरो .. दही बुरा आ जायें तब शुरू करियों …
नरेशजी , रमेशजी एक दूसरे की तरफ लाचार नजरों से देख सोचते हैं इतने पकवान के बाद भी अभी दहीबूरे की कमी रह गयी हैं… धन्य हैं इस घर के लोग… इतना खाना खाकर प्रेशर आया तो बड़ी परेशानी हो जायेगी…
पर क्या करते लड़के वाले बेचारे…. दादा जी के आगे किसी का जोर नहीं था…
पूरा भोजन आ चुका था… तभी समीर बोला.. दादा जी, अब तो शुरू करें ??
रुक लाला… पूड़ी इत्ती देर की धरी हैं… ठंडी हो गयी हैं..
बबिता गर्म पूड़ी लेकर आ जल्दी…
अब तो वो लड़की वो समीर पर फिदा हो चुकी हैं.. मौका ही ढूंढ रही हैं कि कब उसे बैठक में जाने का अवसर मिलें… वो जल्दी से दौड़ती हुई गर्मागर्म पूड़िय़ां लाती हैं… फिर समीर को देख शर्माकर चली ज़ाती हैं… समीर इस बार अपनी निगाह नीचे ही रखता हैं…
अब शुरू करो आप लोग.. दादा नारायणजी बोलते हैं…
जी हाथ धोकर आते हैं … वीना जी बोली…
रुको यहीं हाथ धुलाये जायेंगे… तभी भुवेश जी एक बड़े से पतीले में पानी लाते हैं… कहते हैं इसी में धोईये हाथ.. ये रहा अंगोछा जो भुवेश जी ने अपने कांधे पर डाल रखा हैं… देते हुए कहते हैं…
जी आप क्यूँ तकलीफ कर रहे हैं हम बाहर नल पर धो आयेंगे… ताऊ रमेश जी बोलते हैं…
जी… हमारे यहां जो भी लड़के वाले आतें हैं उनको हम ही हाथ धुलाते हैं.. ये हमारे यहां की परंपरा हैं… शुभ्रा के ताऊजी बोलते हैं..
इतनी विचित्र परंपरा पहली बार देख रहे थे रमेश जी और नरेश जी …
सभी लड़के वाले बड़े ध्यान से उस पतीले में किसी तरह बस औपचारिक रुप से हाथ धो लेते हैं…
सभी हाथ पोंछ भोजन करना शुरू करते हैं…
तभी घर की दो औरतों के साथ शुभ्रा बैठक में आ रही होती हैं.. इस बार शुभ्रा को किसी ने नहीं पकड़ा हुआ हैं…
उमेश अपने मुंह में पूड़ी का पहला कौर डालने ही वाला होता हैं कि शुभ्रा के चेहरे को देख उसका मुंह खुला का खुला रह जाता हैं और हाथ का कौर बीच रास्ते में ही…
समीर अपने भाई की नाजुक हालत समझ उमेश के हाथ पर चुटकी काटता हैं… इशारे से कहता हैं भईया मुंह तो बंद कर लो… पर उमेश का ध्यान…
आगे की कहानी कल…
तब तक के लिए रविवार का आनन्द लीजिये …
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
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