बेवजह जलन- मंजू तिवारी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रोज कविता और उसकी सास की सुबह शाम  कहा सुनी होती रहती थी कभी-कभी  बात लड़ाई का रूप भी धारण कर लेती थी

  गृह कलह इतना विकराल रूप धारण कर लेता कोई किसी से बात ना करता और खाना पीना भी ना खाने की धमकी कविता की सास दे देती तेरे हाथ की बनी हुई मैं रोटी नहीं खाऊंगी कविता भी गुस्से में आकर कह देती ना खाना हो तो मत खाना लेकिन मैं किसी के लिए बिना बजह जलन का कारण नहीं बन सकती,,,, 

तुम्हारे ही कारण में कई सालों से मैं देवर जी को खाना बना कर देती हूं और उनके कपड़े भी धोती हूं। लेकिन  अब माफ करना मैं यह सब नहीं कर पाऊंगी

 मेरा बना हुआ खाना आप देवर जी के घर ले जाती हो और उनकी तो आराम से कट रही है तो वह क्यों देवरानी जी को अपने साथ रखेंगे 

आपको तो अपनी छोटी बहू कल्पना की मदद करनी चाहिए और उसका घर बसाना चाहिए आप आग में घी डालने का काम कर रही हो,,,, 

बनी हुई रोटी धुले हुए कपड़े नहीं मिलेंगे तो वह अपने आप अपने रिश्ते  कल्पना के साथ संभालने की कोशिश करेंगे,,, इस तरह देवर जी का घर हम बस आ सकते हैं।

मां आपके भी तो हाथ पैर अब थक रहे हैं आप भी कितने दिनों तक देवर जी का काम कर सकती हो,,,,, इस बात पर कविता की सास कहती है जब तक मेरे हाथ पैर चलेंगे मैं उसका काम कर करूंगी तुझे नहीं करना है तो ना कर मैं उस कल्पना का मुह नहीं देखना चाहती,,,, 

मां उसमें क्या गलती है कोई भी पत्नी अपने पति को गलत काम करने से रोकेगी देवर जी पीते हैं पैसे बर्बाद करते हैं तो उनको रोकना कल्पना का अधिकार है इसमें बुरा क्यों लगता है।

वैसे भी इतने सालों से मैं देवर जी को बना बना कर देती हो आप उन्हें उनके घर लेकर जाती हो खिलाती पिलाती हो अभी कुछ दिन पहले कल्पना मोहल्ले में बातें कर रही थी इन्हीं सब लोगों की वजह से मेरा घर नहीं बस  रहा है मेरे पति की कमाई खाने का इनको लालच है नहीं तो कोई किसी का काम क्यों करें

 मां बस तेरी वजह से ही वह मुझसे बेवजह जलने लगी है बल्कि मैं तो बस यह चाहती हूं किसी तरह से उसका घर बसे उसके बच्चों को  पिता का प्रेम मिले और मुझे कुछ नहीं चाहिए,,,,

मैं उससे बात भी नहीं कर सकती क्योंकि वह तो मुझे ही अपने घर टूटने का कारण समझती है और उसको लगता है की देवर जी का सारा पैसा हम सब ले लेते हैं। मां तू भी जानती है बस तेरे ही कारण मैं उनका काम कर देती थी लेकिन आप बहुत हो गया अब मैं देवर जी को बना हुआ खाना नहीं दे सकती ना ही मैं उनके कपड़े धोएगी,,,,,, मुझे बदनाम होने का शौक नहीं है।

मुझे कल्पना पर बड़ी दया आती है कभी उसके बच्चों का एडमिशन यहां होता है कहीं   उसे मां के घर जाना पड़ता है ।बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी खराब हो रही है देवर जी को कुछ दिखाई नहीं देता,,,,

कल्पना मेरे बेटे से  लड़ती रहती है। बैसे भी उसको अकल नहीं है।

मां अकल हो ना हो आप कब तक रहोगे आखिरकार कल्पना ही देवर जी की काम आएगी इस तरह तो हम उनका घर खराब कर रहे हैं और हम बदनाम भी हो रहे हैं।

 मां तुझे मेरी प्रार्थना है एक बार तू देवर जी का सारा काम करना बंद कर दे अपने आप उनका घर बस जाएगा और वह प्यार से बात भी करने लगेंगे,,,,

तुम्हें सिर्फ कल्पना में कमी दिखाई देती देवर जी में कमी नहीं दिखाई देती,,,,, तुझे तो वह कल्पना ज्यादा भा गई है अब तुझे उसकी कमियां नहीं दिखाई देती,,,, मां बस वो जवान की ही तेज है वह अपने बच्चों का भी ध्यान रखना चाहती है और पति का भी ध्यान रखना चाहती है लेकिन कुछ गलतियां देवर जी में है उनको रोकती हैं। तो इसमें गलत क्या है। मां गलत आप भी नहीं हो आप में बस पुत्र मोह ज्यादा हो गया है और कुछ नहीं,,,

कविता यह बकवास तू मुझसे ना कर अपना काम कर तू उसका काम नहीं करेगी तो मैं उसका काम करूंगी मां तुझे करना है तो कर,,,,,,,,, अब तो कविता के पक्ष में उसके ससुर जी और पति दोनों आ गए कविता ठीक ही कहती है। एक बार उन दोनों को अपनी गृहस्थी खुद संभालने दो,,,,, हो सकता है कुछ दिनों लड़ाई झगड़ा हो फिर संबंध सामान्य भी हो सकते हैं

छोटा बेटा बोल मां मैं कब तक उसको देख सकता हूं आखिर मेरा भी घर परिवार है। और मुझे तो तभी अच्छा लगेगा कि मेरा छोटा भाई भी अपने परिवार के साथ सुखी रहे,,,,,, मां को किसी तरह समझ कर छोटे बेटे ने गांव में भिजवा दिया,,, अब उसके दैनिक कम करने वाला कोई नहीं बचा,,,, इस बार कल्पना जब मायके से अपने पति के घर आई तो धीरे-धीरे नोक झोंक होते-होते उनके रिश्ते सामान्य की ओर होते चले जा रहे थे बातचीत तो दोनों में बहुत कम थी लेकिन सुधार की पूरी गुंजाइश नजर आने लगी

 लेकिन कविता की देवरानी के मन में कविता के प्रति बेवजह जलन का भाव मन में शुरू से ही था और शायद आज भी है।  कविता अब खुश है ना उसे देवर जी का कोई काम करना पड़ता है। और वह यह सुनने से भी बच गई की हर जगह कल्पना अपना घर टूटने का कारण अपनी देवरानी को ही मानकर जलन का भाव रखती थी,,,,, बातचीत तो अभी भी देवरानी जेठानी में नहीं है इस प्रकरण में बिचारी कविता कल्पना के लिए बेवजह की जलन का कारण बन गई,,,,, कविता के थोड़े से प्रयास से कविता के देवर जी का घर दोबारा बस गया बच्चों के स्कूल में एडमिशन भी हो गए पूरा परिवार खुशी-खुशी रहता है।,,,,,,

कविता और उसके देवर के घरों में फैसला भी दो गलियों का है दोनों ही परिवार खुशी-खुशी अपनी गृहस्थी को चला रहे हैं।,,,,,, और मां दोनों ही  बेटों के घर देखने गांव से आती रहती हैं।,,,, शायद अब मां भी खुश होगी बेटे का बसे हुआ घर देखकर,,,,, क्योंकि मां-बाप को तो बस बच्चों की खुशियां चाहिए होती है।

 समय अच्छे-अच्छे गांव को भर देता है तो कभी ना कभी कल्पना के मन से  कविता के लिए बेवजह जलन का भाव जो उत्पन्न हुआ वह भी समय के साथ समाप्त हो जाएगा

पति-पत्नी के घरेलू नोक जोक झगड़ा विकराल रूप लेने से पहले ही थोड़ा सा समझदारी से काम लेकर पारिवारिक सदस्य बसा बसाया घर टूटने से बचा सकते हैं जिस प्रकार कविता ने अपनी देवर देवरानी का घर बसाया,,,, आपको मेरी कहानी कैसी लगी टिप्पणी जरुर दें।,,,,

#जलन#

मंजू तिवारी गुड़गांव

प्रतियोगिता हेतु

स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिक  सुरक्षित

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