Moral Stories in Hindi : शादी के बाद नलिनी के ससुराल वाले उसको मायके नहीं आने देते थे नलिनी की सास कहती यहां काम कौन करेगा वैसे भी तेरे मायके वालों पर देने के लिए है ही क्या जो परेशान होना।
नलिनी बेचारी चुप रह जाती वो अपने मायके वालों को बेइज्जत भी नहीं करना चाहती थी इसलिए मायके जाने की बोलती भी नही थी।
फोन पर ही बात कर लेती थी नलिनी गरीब परिवार की बेटी थी उस से छोटी दो बहनें और थी पिताजी गुजर बसर लायक कमा लेते थे एक दिन मंदिर मैं नलिनी की सास सुधा जी ने उसके सेवा भाव को देखा नलिनी रोज मंदिर की साफ सफाई करने जाती थी पंडित जी और मंदिर आने वाले सब नलिनी की बहुत तारीफ करते सुधाजी को ऐसी ही लड़की चाहिए थी जो घर सम्हाल ले पैसों की कमी तो थी नहीं उन्हे।
पंडित जी से बात करके नलिनी के घर रिश्ता मांगने पहुंच गई नलिनी की मां तो खुश हो गई की भगवान ने उसकी सेवा का आशीर्वाद दिया है इतने बड़े घर मैं रिश्ता जोड़ कर बिना दहेज की बात सुनकर नलिनी भी मना नहीं कर पाई।
शादी के बाद एक दो बार ही नलिनी मायके आई मां अपनी हैसीयत के हिसाब से सामान देती और ढेरों आशीर्वाद नलिनी मायके आती तो उसके चेहरे पर अलग ही निखार आ जाता सबसे मिलकर और वो कई दिन तक खुश रहती
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पर अब कुछ महीनों से मायके ना आने के कारण नलिनी बुझी बुझी रहने लगी उसके पति रंजन को भी फुरसत नहीं मिलती काम से नलिनी मन की बात तो और ज्यादा दुखी सी रहती ।सुधाजी घर मैं बादाम ,काजू, फल सब और ज्यादा मंगाने लगी और नलिनी को बोलती अच्छे से खाया करो ये कैसा चेहरा हो रहा है बुझा बुझा कोई कहेगा ससुराल मैं खाने को नहीं मिल रहा क्या।
नलिनी कैसे समझाए कि रौनक अपनेपन से ज्यादा आती है खाने से नहीं धीरे धीरे नलिनी बीमार रहने लगी उसकी भूख मर गई थी बहुत से डॉक्टर को दिखाया किसी को कुछ समझ ही नहीं रहा।
मां को जब पता चला तो वो मिलने आई उनको देखते ही नलिनी के चेहरे पर चमक सी आ गई दो दिन मां के साथ रहकर और उनके हाथ का खाना के कर नलिनी ठीक होने लगी अब बेटी की ससुराल मैं कब तक रहती तो उन्होंने सुधाजी से कहा की अब मैं चलती हूं माफ करना मै ज्यादा कुछ तो ला नहीं पाई बेटी की चिंता मैं जल्दी जल्दी आ गई ये रुपए रख लीजिए शगुन के।
सुधाजी को नलिनी की हालत देख कर समझ आ गया था की जो काम उनकी दौलत नहीं कर सकी वो मां के स्नेह ने कर दिया वो बोली हमें इसकी नहीं आपके कीमती आशीर्वाद की जरूरत है आप कुछ दिन और रहें और फिर नलिनी को साथ मैं ले जाएं कुछ दिन मायके रहेगी तो उसे अच्छा लगेगा ।
नलिनी के अंदर ये सुनकर एक नई जान आ गई
अब सुधा जी को भी समझ आ गया था की पैसों से ज्यादा अपनों के प्यार,और आशीर्वाद की ज़रूरत होती है
स्वरचित
अंजना ठाकुर