मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 1) – अर्चना खंडेलवाल

मां, अकेले मेरी जिम्मेदारी नहीं है, महीना शुरू हुए इतने दिन हो गये और आपने अभी तक भी पैसे नहीं भेजे?? मैं ही अकेला मां का खर्चा क्यूं उठाऊं? अभी मेरे मकान का भी काम चल रहा है, अब मकान बनवाऊं या मां की बीमारी में पैसा खर्च करूं! मेरे पास भी कोई खजाना नहीं गड़ा हुआ है, मेरे पास भी अथाह धन नहीं है…. सौरव फोन पर चिल्ला रहा था और विनीत चुपचाप सुन रहा था। छोटी सी बात का बतंगड़ बनाने में सौरव माहिर था, छोटा भाई होने के बावजूद भी वो विनीत को सुना देता था, और अपनी हर जिद पूरी करके मानता था।

विनीत ने दो दिन का समय मांगा और अपने दोस्त से उधार लेकर पैसे सौरव के अकाउंट में भिजवा दिए।

कहने को विनीत बड़े शहर में रहता था पर बस जितना बड़ा शहर उतने ही बड़े खर्चे थे। घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई लिखाई, मकान का किराया, ऑफिस आने -जाने का खर्च और राशन पानी -मेडिकल का बिल सब बंधा हुआ था। महीने के पैसों में से कुछ हजार रूपए निकालना मुश्किल हो जाता था। विनीत की परेशानी सिर्फ उसकी पत्नी ज्योति समझती थी वो पति के सुख -दुख की साझेदार थी, अपने पति के कमाएं रूपयों के बजट के हिसाब से चलती थी। महीनों से उसने नया कपड़ा नहीं खरीदा था, घर की ऐसी बहुत सी जरुरतें थीं, जिन्हें वो टाल दिया करती थी। विनीत की सैलेरी में से कुछ बचता ही ना था, मन में इच्छाओं का संसार लिएं वो अपने जीवनसाथी का बराबर साथ दे रही थी।

उसने कई बार अपनी सास को कहा कि वो कुछ दिनों के लिए उनके पास आकर रहें  पर शकुन्तला देवी अपने छोटे बेटे के ही पास रहना चाहती थी क्योंकि वही पर उनके सारे रिश्तेदार रहते थे, और आधुनिक सुख सुविधाएं थीं।

शकुन्तला देवी के दो बेटे थे। बड़े बेटे विनीत ने अपनी पढ़ाई पूरी की पर वो ज्यादा कुछ ना कर पाया, एक जगह नौकरी भी लगी थी पर वो वहां से छोड़कर आ गया, पिताजी के सुझाव पर उसने बिजनेस शुरू किया पर वो बिजनेस में भी अच्छा ना कर पाया और अब उसकी उम्र भी शादी की हो गई थी। लड़की वालों के रिश्ते आयें पर सबने बिजनेस अच्छा ना देखकर इंकार कर दिया।

ज्योति के घरवाले गरीब घर से थे इसलिए उन्होंने शादी कर दी, उनका मानना था कि परिवार के बीच बेटी का पेट पल जायेगा।


शादी होने के बाद ज्योति को अपने पति की वजह से तानें सुनने पड़ते थे, एक दिन वो खाना खा रही थी तो शकुन्तला देवी ने ताना दे दिया, तेरी पति की कमाई का खाना नहीं है जो इतना लेकर बैठ गई है, हिसाब से खाया कर, मेरा पति कमा रहा है और ये घर उसी से चल रहा है, रोटी का कौर ज्योति के हाथ में रह गया।

अब तो उसने जिद पकड़ ली कि वो मेहनत से काम करें और घर में पैसा लाकर दे, ज्योति ने अपने दूर के रिश्ते के भाई को कहा और उसकी कंपनी में विनीत की नौकरी पक्की हो गई।

मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 2 )

मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 2) – अर्चना खंडेलवाल

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