मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 2) – अर्चना खंडेलवाल

तूने सास-ससुर की सेवा के झंझट से मुक्ति पाने का अच्छा उपाय ढूंढा है, शकुंतला देवी ने ज्योति को सुनाया।

नहीं मांजी, मैं इस तरह से रोज आपके तानें सुनकर जीना नहीं चाहती हूं,ससुर जी की कमाई के पकवान भी मेरे लिए फीके हैं और अपने पति की कमाई की दो सूखी रोटी भी मैं हंसकर खा लूंगी। अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उस दिन ज्योति ने ससुराल छोड़ दिया।

विनीत के संग नये शहर में आ गई।

नये शहर में बसना आसान नहीं था, धीरे-धीरे करके सब सामान बसाया, पति की कमाई में ज्योति खुश थी चाहें थोड़ी ही थी पर आत्मसम्मान की रोटी खा रही थी।

उधर सौरव जब बाहर से अपनी पढ़ाई पूरी करके आया तो उसे ये सब सुनकर बड़ा गुस्सा आया, भाई भाभी के इस तरह चले जाने से वो नाराज़ था। सौरव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी, उसकी अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई और अमीर घराने की लड़की से उसकी शादी हो गई।

दोनों का अपना जीवन चल रहा था पर उससे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि भाई-भाभी अपने अलग रह रहे हैं और मेरी पत्नी को यहां घर संभालना पड़ रहा है।

एक दिन रंजना भी गुस्से से सौरव से बोल पड़ी, अपने माता-पिता की सेवा करवाने तुम मुझे लाये हो क्या?

मेरी अपनी कोई जिंदगी नहीं है क्या? शकुन्तला देवी दोनों का झगड़ा सुन लेती हैं और वो बहू की मदद कराने लगती हैं, धीरे-धीरे रंजना सारी रसोई की जिम्मेदारी का भार शकुंतला देवी के कंधों पर डालकर खुद रसोई के कामों से मुक्त हो जाती है।

शकुन्तला देवी काम तो कर लेती थीं पर उन्हें पैसों का बड़ा लालच था, अच्छी साड़ियां और अच्छा खाना उनकी दो कमजोरी थी। रंजना उन्हें अपने मायके से आई कीमती साड़ियां उपहार में देती रहती थी और उनसे काम करवा लिया करती थी।

 

कहने को वो थक जाती थीं पर फिर भी सबसे यही कहती थीं कि काम ना करूंगी तो हाथ पैर जाम हो जायेंगे।  रंजना के जब पहली संतान हुई तो रंजना उसी को पालने में लग गई और शकुन्तला देवी पर हर काम के लिए निर्भर हो गई। रंजना को तो इतना भी पता ना

था कि रसोई के मसाले भी कहां पर रखे हुए हैं।

जब भी ज्योति फोन पर अपनी सास से  बात करती

तो वो नाराज़ सी रहती थीं, अब उनकी नाराजगी किस चीज को लेकर थी ये तो ज्योति भी नहीं जानती थी।

वो जब ससुराल में थी तो वो पूरा काम संभाल लेती थी, अपनी सास को हाथ भी नहीं लगाने देती थी,  उनका कहा मानकर उनके अनुसार काम करती रहती थी और उन्हें शिकायत का मौका नहीं देती थी पर जब बात पति की कमाई और स्वाभिमान की आई तो वो ये सब  बर्दाश्त नहीं कर पाई थी और उसने वो घर छोड़ दिया था।

समय चल रहा था, सौरव और विनीत के बच्चे बड़े हो रहे थे, सौरव की कमाई बहुत थी तो उसकी पत्नी को अब घर छोटा लगने लगा और पति से जिद करके वो नया घर बनवाना चाहती थी, पर सौरव के पिताजी अपने हाथों से बनाएं घर को तोड़ना नहीं चाहते थे।

एक दिन शकुन्तला देवी के पति को दिल का दौरा पड़ा और अचानक उनकी मौत हो गई, पन्द्रह दिन तो निकल गयें, सब रिश्तेदार भी आकर चली गये पर उसके बाद शकुंतला देवी टूट गई थीं अब उनका किसी काम में मन नहीं लगता था, रंजना का व्यवहार अब बदलने लगा था, जिस सास से वो पैसों के दम पर सेवा करवाती थी, साड़ियों का लालच देती थी अब वो ही सास बेजान सी हो गई थी, घंटों गुमसुम बैठी रहती थी, अब रसोई का भार रंजना पर आ गया तो वो सौरव पर गुस्सा निकालती थी, मैं ही मांजी की सेवा करने के लिए फालतू नहीं हूं, तुम्हारी भाभी तो वहां मजे से रह रही हैं और मैं यहां रसोई में दिन -रात खट रही हूं, वो तो वहां सुखी हैं और हम यहां इनके दुखड़ो के साथ में जी रहे हैं।

रंजना रोज ही खटपट करती थी, शकुन्तला देवी अब बीमार भी रहने लगी थीं,उस पर बहू के तानों ने उनका कलेजा छलनी कर दिया था, बड़ी बहू के पास भी वो किस मुंह से जातीं। अब उनकी सेवा और बीमारी का खर्च भी रंजना को खटकने लगा था, वो रोज ही तानें देती थी और सौरव के कान भी भरती थी।

ससुरजी के जाने के बाद रंजना ने वो मकान तुड़वा दिया और उसी पर नया मकान बनवाने लगी, पर सास का खर्च उसे अभी भी अखरता था, आखिरकार सौरव ने कह भी दिया कि भैया मां के लिए हर महीने का खर्च भेजो अब मुझसे नहीं उठाया जाता है, मैं घर भी बनवा रहा हूं उसमें भी लाखों रूपया लग रहा है।

ज्योति और विनीत के हाथ ज्यादा खुले नहीं थे, और वो देखकर घर चलाते थे, फिर भी उन्होंने मां के लिए हर महीने खर्च भेजना तय कर लिया। उसने  तो कहा भी मां जी, हमारे पास रह लीजिए पर शकुंतला देवी अब कुछ काम ना करतीं पर उस घर की चौकीदारी करती थीं।

रंजना और सौरव बाहर घूमने फिरने चले जाते थे तो वो ही दोनों पोतों को संभालती थीं और घर पर रहती थीं।

एक दिन विनीत कंपनी के काम से शहर गया तो मां से मिलने भी चला गया, मां की हालत देखकर उससे रहा नहीं गया, और उसने जिद कर ली कि मां उसके साथ ही घर चलेंगी पर सौरव और रंजना ने मना कर दिया।

शकुन्तला देवी भी गले तक भर गई थीं, उस दिन वो बिफर गईं और गुस्से से बोलीं, तुम दोनों अपने आपको समझते क्या हो? मैं तुम्हारे इशारों पर ही नाचती रहूंगी क्या? हां पहले मैं थोड़ी साड़ियों की लालची थी पर अब मुझे किसी चीज का लालच और चाह नहीं है, अब मैं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं।

बहू, तेरी गलती नहीं है ये दुनिया की रीत है कि काम करता इंसान ही सबको अच्छा लगता है, जब मैं तेरी रसोई संभालती थी तब मैं तुझे अच्छी लगती थी,पर अब मैं तेरी रसोई नहीं संभाल सकती और अब मैं तुझे बैठी हुई अखरती हूं, कुछ दिनों के बाद मैं बिस्तर पर भी आ जाऊंगी तब तुम मेरी बिल्कुल कदर नहीं करोगे।

मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग -3)

मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 3) – अर्चना खंडेलवाल

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