मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 3) – अर्चना खंडेलवाल

मैं इस उम्र में तुम्हारे घर की क्या चौकीदारी ही करती रहूंगी। सौरव,  मां हूं तेरी तुझे नौ महीने कोख में पाला है,छोटा है तो तुझे सबसे ज्यादा प्यार दिया है, विनीत से ज्यादा तू मेरा लाड़ला रहा है, तेरी हर जिद पूरी की है, तेरे खिलौने और खेल के सामान का मैंने कभी हिसाब नहीं किया, जानें कितने रूपये ऐसे ही खर्च कर दियें और आज तू मां के खाने और दवाईयों का हिसाब मांगता है, भाई से बराबर के रूपये मांगता है, जबकि तुझे तेरे भाई की स्थिति का पता है, तेरे पास तो खजाना भरा है फिर भी एक मां तुझे भारी लगती है।

मकान को चमकाने में लाखों, करोड़ों रूपये पूरे कर रहा है,एक से बढ़कर एक चीज मकान में लगा रहा है, कहीं कमी ना रह जायें पर मां के इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।

मकान में लगाने के लिए लाखों है पर मां के लिए हजारों भी नहीं है। इस मां ने तुझे पाला और इस मां की कुर्बानियां तू भुल गया, तेरे लिए पैसे इतने कीमती हो गए हैं।

तू ये भी मत भूल तू जिस पर मकान बनवा रहा है, वो जमीन मेरे पति की कमाई की है, जिसे तू अपना बता रहा है,अभी इतनी जमीन खरीदने जायेगा तो तेरे पास पैसे भी कम पड़ जायेंगे फिर तू मकान क्या बनवायेगा?

कहते हैं ना पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता कभी नहीं हो सकती है, मैं मां हूं अपने बच्चे का सदा भला ही चाहूंगी और अपने बच्चे को दुआ ही दूंगी, पर मैं अब तेरे साथ नहीं रह सकती हूं, मैंने ज्योति के साथ बहुत ही अन्याय किया था।

मैं जाकर  उससे माफी मांग लूंगी, बेकद्री से तेरे महल की चौकीदारी करने से अच्छा है मैं विनीत के साथ उसकी किराये की झोपड़ी में ही रह लूंगी।

शकुन्तला देवी ने अपना सामान बांधा और विनीत के साथ में चल दीं। वहां पहुंचकर ज्योति ने उन्हें आदर से बिठाया और सब पुराना भूलकर वो मांजी की सेवा करने लगी, बच्च भी दादी -दादी कहके आगे -पीछे होते रहते थे, घर के सामने ही पार्क था, शकुंतला देवी वहां चली जाया करती थीं, वहां उनकी हमउम्र महिलाओं से दोस्ती हो गई थी, वो अब सदमे से बाहर आ गई थीं, उनका मन लगने लगा था,  घर की साग सब्जियां साफ कर दिया करती थीं।

महीने की एक तारीख आ गई थी, इस बार विनीत ने पैसे नहीं भेजे पर सौरव ने विनीत को मां के खर्च के लिए पैसे भेजे। इस पर ज्योति ने वापस पैसे लौटा दिए, देवर जी मां हमारे साथ रह रही हैं, वो भी इस परिवार का अहम हिस्सा हैं, जिस तरह हम हमारे बच्चे पाल रहे हैं, उसी तरह मांजी भी हमारे साथ रह लेंगी। हम जैसा खा रहे हैं, वो भी खा ही लेंगी। मां भी अब हमारी ही जिम्मेदारी हैं।

विनीत ने भी कहा कि, मुझ पर धिक्कार है जो मैं मां पर किये गये खर्च का हिसाब रखूं और आधा तुझसे लूं, मां ने खून पसीने से हमें सींचा है, मां ने रातों जागकर हमें पाला है, हमारे लिए बरसों खाना बनाया है, कभी हम पर किये गये खर्च का हिसाब नहीं लगाया।

मेरे भाई तू ये पैसा तेरे मकान में लगाकर उसे चमका ले, मेरी मां के चेहरे को मैंने तो मुस्कान से चमका लिया है।

मैं मां की कुर्बानियां भुल नहीं सकता, उनके आगे पैसों की कोई कीमत नहीं है।

फोन स्पीकर पर था, रंजना और सौरव के चेहरे लटक गये, उन्हें अपने पर शर्म आ रही थी, विनीत ने कम पैसों के बावजूद भी मां की हर इच्छा पूरी की और रंजना और सौरव  ने मकान पर लगाएं पैसों का तो कभी हिसाब नहीं लगाया पर मां के खर्च का हिसाब लगाते रहें।

पाठकों,  ये ही समाज की कड़वी सच्चाई है, आज भी कई घरों में बेटे बहू घूमते हैं, हजारों की शॉपिंग करते हैं, लाखों मकान में लगा देते हैं, अपने बच्चों की पढ़ाई और अन्य गतिविधियों पर खर्च कर देते हैं पर कभी हिसाब नहीं लगाते हैं पर  माता-पिता पर किये गये खर्च का हिसाब गिना देते हैं और भाईयों से खर्च का बराबर पैसा लेते हैं।

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मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 2) 

मां तो कभी बच्चों पर किए गए खर्च का हिसाब नहीं लगाती!! (भाग – 2) – अर्चना खंडेलवाल

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल 

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