घुटन ( भाग 1)- माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : घर में पार्टी चल रही थी..डीजे की धुन पर घर के सभी लोग मेहमानों के साथ थिरक रहे थे..उस आलीशान घर के एक कमरे में जीवन के सत्तर बसंत देख चुके रामदयाल जी कमरे में बैठे ख्यालों में खोये हुए थे..नौकरी से सेवानिवृत्त होने के पश्चात वह घर पर ही रहते थे..वह बिना किसी जरूरी काम के कही बाहर आते-जाते नहीं थे..कुछ वर्ष पहले ही उनकी पत्नी सावित्री उन्हें अकेले छोड़कर इस दुनिया से अलविदा हो चुकी थी।

कहने के लिए उनका भरा पूरा परिवार था..दो बेटे रवि और आकाश दो बहूए रमा और गीता और उनके बच्चे लेकिन रामदयाल जी का जीवन पत्नी सावित्री के निधन के बाद अनगिनत कष्टों से घिरा हुआ था..एक पुराना नौकर राजू जो अनाथ था दस वर्ष पहले जिसे रामदयाल जी अपने साथ लेकर आए थे..सावित्री के रहते हुए राजू केवल उनका हाथ बटाता था..

वह उसे भी अपने बेटों की तरह मानती थी। उनके गुजरने के बाद उनके बेटे और बहूओ ने राजू को घर का नौकर बना दिया था।उसकी दिवंगत मां को रामदयाल जी जानते थे..राजू का और कोई नहीं था। वह रामदयाल जी के पास रहकर उनकी सेवा किया करता था..उसके सिवा रामदयाल जी का दुख दर्द भावनाओं को समझने वाला उनके अपने ही घर में कोई और नहीं था।

“बाबुजी!खाना खा लीजिए” राजू मेज पर प्लेट लगाते हुए रामदयाल जी से बोला। “मुझे आज भूख नहीं है राजू! तू इसे वापस ले जा” रामदयाल चिन्तित होते हुए राजू से बोले। “मैं जानता हूं बाबूजी!आज आप दुखी हैं इसलिए आपको भूख नहीं लग रही है ” राजू उदास होते हुए बोला। “तू तो सब कुछ जानता है,कल तक मेरे घर में घंटियां गूंजती थी,

किसी की हिम्मत नहीं होती थी,इस तरह की पार्टी करना नशा करना..सब कुछ बदल गया सावित्री के जाने के बाद ” कहते हुए रामदयाल जी की आंखें छलकने लगी।”आप दुखी ना हो बाबूजी! मैं हूं ना आप के पास, और हमेशा रहूंगा ” राजू रामदयाल जी के करीब आकर सहानभूति प्रकट करते हुए बोला।

“रामू आज मेरे बेटे बहूए बच्चे सब मुझे एक बोझ समझते हैं..तेरे सहारे ही मैं जिंदा हूं ” रामदयाल जी राजू को दुलारते हुए बोले। “ठीक है बाबूजी अब आप थोड़ा सा ही कुछ खा लीजिए ” राजू खाना प्लेट पर निकालते हुए बोला। “ठीक है अब तू कह रहा है तो थोड़ा सा खा लेता हूं ” कहते हुए रामदयाल जी खाना खाने लगे।

रात के ग्यारह बज रहे थे..राजू रामदयाल जी को खाना खिलाकर जा चुका था। “पापा!आपने खाना खाया” उनका बड़ा बेटा रवि अपनी पत्नी रमा के साथ उनके पास आते हुए बोला। रामदयाल जी ने उसकी ओर देखते हुए सिर हिला दिया।”पापा इतने मेहमान घर पर आकर चलें गये..और आप कमरे से बाहर नहीं निकले ”  रमा मुंह सिकोड़ते हुए रामदयाल जी से बोली।

“तुम लोग जानते हों मुझे और तुम्हारी दिवंगत मां को घर पर शाराब और इस तरह की पार्टी नहीं पसंद है.. तुम लोगों को भी नहीं करना चाहिए..मगर अब तुम्हारी मम्मी तो हैं नहीं?जो विरोध करेगी..मैं कुछ हूं ही नहीं?” रामदयाल जी रमा और रवि की ओर देखते हुए बोले। “चलिए पापा! सठिया गए हैं ” रमा रवि का हाथ पकड़कर चलने का इशारा करते हुए बोली। रवि कुछ देर रामदयाल जी की ओर देखता रहा फिर चुपचाप रमा के साथ वहां से चला गया।

रामदयाल जी का छोटा बेटा आकाश उनके पास नहीं आया शायद वह नशे में होने के कारण सो गया था। सावित्री ने अपने रहते हुए ही दोनों भाईयों ने घर के कमरे बांट दिए थे। वह पूजा पाठ करने वाली धार्मिक महिला थी.. दोनों बहूए अलग-अलग स्वाभाव की थी, इसलिए उसने उनके मन को देखते हुए ही ऐसा किया था।

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घुटन ( भाग 2)

घुटन ( भाग 2)- माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

 

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