खुशहाल ससुराल – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

सिया एक अल्हड मस्त अन्दाज में रहने वाली खिलंदड़ स्वभाव की किशोरी धी। उसके मन मे जो आता उस काम को बडी लग्न से करती और जिसमें मन नहीं लगता तो नहीं करती फिर चाहे कोई भी कहे। एक, कान से सुनकर दूसरे कानसे निकाल देती। उसका यही मस्त मोला अन्दाज विमला जी (मम्मी) की चिंता कारण बना हुआ था। जब वे अपनी चिंता सिया के भविष्य को लेकर अपने पति से बात करती तो वे इसे बड़े हल्के अन्दाज मे ले टाल देते बच्ची है अभी समय आने पर सब समझ जाएगी तुम तो फालतू में ही चिन्ता करती हो।

समय के साथ स्कूलिंग पूरी कर सिया कालेज में आगई किन्तु उसके मस्त अन्दाज का उम्र से कोई सम्बन्ध न था , वह उसी तरह अपनी मस्ती में रहती। अब -बह द्वितीय वर्ष मे आगई थी। बिमला जी जब तब उसे जिन्दगी की ऊँच -नीच, पारिवार कि जिम्मेदारी समझाने की कोशिश करती कहती अब तुम बड़ी हो गई हो अपने व्यबहार को संयत करो नहीं तो शादी के बाद तुम ससुराल में कैसे निभाओगी ।

वह हँसते हुए विमला जी के गले में बाहें डाल कहती यदि शादी मे ऐसे बंधना पडेगा तो मुझे नहीं करनी शादीवादी। मैं तो यहीं अपने मम्मी-पापा के साथ ऐसे ही रहूंगी।

उसे सुबह देर से उठने की आदत थी फिर हड़बडाहट कर जल्दी मचाती तो विमला जी कहती अब थोड़ा जल्दी उठने की आदत डाल यहाॅ तो ठीक है किन्तु ससुराल मे यह सब नहीं चलेगा। सबसे पहले उठ कर सबके चाय-नाश्ते का प्रबन्ध करना पडेगा। सिया अपने काम में लगी रहती मम्मी की बात का उस पर कोई असर नहीं होता। देखते-देखते ही उसकी कालेज की पढ़ाई पूरी हो गई।

अब उसके लिए घर-वर ढूंढने का काम जोरों पर था रिश्ते तो बहुत मिल रहे थे किन्तु अधिकांश परिवार अभी भी वही दकियानूसी सोच के थे? विमलाजी जानती थी कि सिया ऐसे परीवारों में खुद को स्थापित नहीं कर पायेगी। इसलिए वे ऐसे परिवार की खोज में थे, जो थोड़ा आधुनिक एवम उदारवादी सोच का हो। बहू पर ज़्याद कडा अनुशासन पसन्द न करता हो।

अब सिया को भी कभी कभी ससुराल की चिन्ता सताने लगी थी कि कैसे वहाँ रहेगी। उसकी दो-तीन सहेलियों की शादी अभी कुछ दिनों पहले ही हुई। उनकी बातें सुन सुन वह घबरा जाती किन्तु फिर सब भूल अपने रूप में आजाती। एक दिन विमला जी बोली बेटा अब कुछ घर के काम भी सीखो। मेरे साथ रसोई में कुछ बनबाया करो नही तो शादी के बाद ससुराल में क्या करोगी ।बेटा तुम्हें काम नही आयेगा तो वे लोग तुम्हे पसन्द नहीं करेंगे, फिर पता नहीं वे तुम्हारे साथ केसा व्यवहार करें। वह माँ के गले लगते बोली में जैसी हूँ वैसी ही रहूंगी ,अपने आप को शादी के नाम पर बदल नहीं सकती जो होगा देखा जायेगा। इतनी भविष्य की क्या चिन्ता करना। उसकी बात सुन बिमला जी ने अपना सिर पकड लिया वे सोच नहीं पा रहीं थीं कि इस लडकी को कैसे समझायें।

तभी उनकी देवरानी ने अपने रिश्ते का एक परिवार सिया के लिए बताया लड़का इन्जीनियर हे और एक मल्टीनेशनल कम्पनी मे काम करता है, दिखने मे भी आकर्षक है और स्वभाव का भी अच्छा है। पापा भी एक सरकारी उपक्रम में अधिकारी है। माँ भी स्वभाव की अच्छी है। इन लोगों को यह छोटा परिवार अपनी सिया के लिए उपयुक्त लगा! बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति बन गई। सिया और जय ने भी एक दूसरे को पसन्द कर लिया। शीघ्र ही सगाई कर जल्दी हो शादी भी हो गई। सब कुछ दो माह मे ही हो गया । सिया अब थोडी नर्वस थी सहेलियों की, माॅ की बातों को याद कर घबरा रही थी कि अब मैं वहाँ कैसे रहूँगी। जय से भी ज्यादा परिचय नहीं था केवल फोन पर ही बातें हुई थी पता नहीं वह भी कैसे स्वभाव का होगा।

आखिर विदाई का समय आ गया, और मन में घबराहट , ढेरों आशंकाओं से घिरी वह कार में बैठ गई ससुराल के लिए। घबराहट के मारे पूरे रास्ते वह सहज नहीं हो पा रही थी। जय ने उससे पूछा भी की तुम्हें क्या हो रहा है, कोई परेशानी है क्या किन्तु क्या बताती ससुराल से डर लग रहा है अत: कुछ नही कह कर बात टाल दी।

ससुराल पहुँचकर उसके कानों मे सासूमाॅ के ये शब्द पडे , कार का गेट खोलते हुए वे उतावली सी बोली आजा बेटी तुम्हारा मुझे बहुत इन्तजार था आज मेरे घर में बेटी की कमी पूरी हो गई और उसे अपने गले लगा लिया।

सिया को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सास बोल रही हे या माॅ। सारी रस्में पूरी होते-होते समय हो गया बीच-बीच मे उसके खाने पिने का ध्यान वे स्वयं रख रह थीं ।रात को जब वह कमरै मैं जय का इन्तजार कर रही थी, घबराहट से उसके पसीने छूट रहे थे पता नहीं जय कैसा व्यवहार करे।जय ने आते ही उससे प्रेम से कहा तुम बहुत थकी लग रही हो। पहले तो ये सब भारी भरकम कपडे जेवर उतारो फिर आराम से सहज होकर बात करते हैा चेंज कर जब वह कमरे मे आई तब तक जय भी चैंज कर चुका था थोडी इधर-उधर की बाते करने के बाद वह बोला तुम्हें नींद आ रही है आराम से सो जाओ। अब तो जिन्दगी भर साथ रहना है कल आराम से बातें करेंगे।

सुबह उठ वह नहा धोकर तैयार हो रही थी किन्तु साड़ी पहननी नही आ रही थी माॅ की बाते याद आ रही थी कि अब क्या करे । उसे आने में देर देख सासूमाॅ खुद उसके कमरे में गई एवम प्यार से साडी पहनाई और अपने साथ ले आई। सिया दो चार दिन की बात है अभी रिश्तेदार घर मे है इनके जाने के बाद तुम आराम जैसे रहना चाहो, जो पहनना चाहो पहनना जिसमे तुम्हे आराम मिले। सिया मन ही मन खुश हो गई। दो – तीन दिन में घर खाली हो गया। अब केवल चार ही लोग रह गए।मम्मी जी ( शोभा जी), बोली सिया सुन अब तुम आराम से रहो इसे अपना ही घर समझो। यहाॅ तुम्हारे ऊपर कोई रोक-टोक नहीं है, खुश होकर रहो और हाॅ सुबह भी जल्दी उठने की जरूरत नहीं है कारण हम भी देर तक उठते हैं।चाय नाश्ता टिफिन की कोई चिन्ता मत करना, कुसुम ( मेड) बना देगी । सिया सोच रही थी कि ये सब सच है या सपना।

चोथे दिन उनके यहाॅ किटी पार्टी थी। शोभाजी ने मोतियों का एक सुन्दर सा सेट देते हुए कहा पिंक वाली साडी के साथ पहन लेना सुन्दर लगोगी। सबके सामने मेरी बेटी लाखों में एक लगनी चाहिए। स्वयं उसे, तैयार किया।आने वाली सहेलियों की ऑखें सिया को देख फटी रह गई। वाह शोभा क्या चुन कर बहू लाई हो। सिया काम की सोच उठने लगी तो वे बोली कहाॅ जा रही हो। वो मम्मी जी में खाना वगैरह का देखती हूं बैठी रहो मैंने सब बाहर से आर्डर कर दिया है बाकी का कुसुम सब सम्हाल लेगी।

पापा- बेटे के काम पर जाने के बाद दोनो सास-बहू माॅल जाती,खूब शापिंग करती,थोड़ा-बहुत कुछ खाती-पीती।घूम घाम कर आ जाती।

शोभा जी को गाड़ी चलाते देख सिया उत्सुक निगाहों से देखती। एक दिन शोभा जी बोली चिन्ता मत कर बेटी तुझे भी जल्दी कार चलाना सिखा दूँगी । हाॅ मम्मी जी मेरे पास तो स्कूटी थी वही चलाना आता है।

इतना अच्छा ससुराल पाकर सिया फूली नहीं समा रही थी, माँ की चिन्ता उसे बेकार लग रही थी।

जब वह जय के साथ अपने घर मिलने गई, मम्मी-पापा उसके खिले हुए चेहरे को देखकर सब समझ गए, कुछ कहने सुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी।उनकी बेटी को खुशहाल ससुराल जो मिल गया था।

शिव कुमारी शुक्ला

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