गलतफहमी – डाॅ उर्मिला सिन्हा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : भरी दोपहरी  दरवाजे की घंटी, “ट्रिन ट्रिन “!

“ओह चैन नहीं  लेने देते ,अब इस समय कौन? “हाथ का काम छोड़ कुंडी खोलने लगी। 

“मम्मी… कैसी हैं आप? पापा कहाँ हैं? भैया -भाभी ,दीदी-जीजा जी बच्चे…?”

 मुनिया की चिरपरिचित मुस्कान मीठी आवाज। 

“कब  आई “मैं आश्चर्यचकित कभी उसे और साथ में आये पुरुष और बच्चे को सशंकित नजरों से  देखने लगी। 

 “कल आई… यह मेरा पांच बरस का बेटा  गोलू और पति… “

   वह हुलासित अपने बारे में … पति बेटे परिवार के बारे में विस्तृत जानकारी देने लगी… जैसे सात वर्षो का हिसाब इन सात मिनटों में दे देगी। 

      मेरा आशंकित मन पाखी सात वर्ष पीछे किलोल करने लगा। 

  लोगों के ताने याद आने लगे। 

 “बड़ी मुनिया मुनिया करती थी… वह भी मम्मी पापा जैसे सगी बेटी हो… भाग गयी न मुँह काला कर किसी  के  साथ  दिल्ली …सबका नाम डूबो दिया । “

  “ना ना ऐसा  मत कहिये  वह मेरे घर काम करती थी  मैं अपने बच्चे की तरह उसको मानती थी वह भी हमारा पूरा सम्मान करती थी इसका मतलब यह नहीं कि वह चरित्रहीन या बदमाश थी। किसी षडयंत्र का शिकार तो नहीं हो गई “मैं तड़प उठती। 

   जितनी मुँह उतनी बातें। मैं निरूपाय। 

   वही लड़की सजी-धजी, सुख सुहाग से पूर्ण पति और बच्चे के साथ  मेरे सामने खडी़ थी। 

    उसका पढालिखा कमाऊ पति हाथ जोड़े खड़ा था, “मम्मी जी  लोगों के मन में हजार सवाल होंगे। इसीलिए  हमने सोचा कि सबसे मिलकर गलतफहमी दूर कर लिया जाय। “

    हुआ यह था कि मुनिया के पति का दोस्त मुनिया का परिचित था। मुनिया का पति दिल्ली का रहवासी था वहीं  माता-पिता और नौकरी। टूटते वैवाहिक रिश्तों से उसका सरल हृदय आहत होता था। उसके मन में आया कि वह विवाह वैसी लड़की से करे जो  कामकाजी  सुंदर स्वभाव की अच्छी हो  …रिश्ते की अहमियत समझे।  उसे मुनिया के विषय में  दोस्त ने बताया, “मुनिया अच्छी लड़की है  लेकिन घर-घर दाई का काम करती है। 

  संयोग वश मुनिया का पति अपने दोस्त के घर आया… मुनिया से मिला… उसके भोलेपन से प्रभावित हो मुनिया की मां बहनों, दोस्तों के साथ स्थानीय मंदिर में विवाह कर दिल्ली लेकर चला गया। 

     मुनिया की विधवा मां और बहनों ने चैन की सांस ली। 

    लेकिन  बेदर्द जमाने को चैन कहाँ… अपनी बातों से उसकी माँ को और थोड़ा-बहुत  मुझे भी छीजने लगे,”भाग  गयी  न …उसे ले जाकर बेंच देगा… गलत काम  करवायेगा… कर दी न नाम खराब। “

चूंकि वह मेरे बहुत करीब थी और मुझे भी धत्ता बता गई थी अतः मैं भी  चिंतित रहती, “हे छठी मईया मुनिया की रक्षा करना… उसने पूरी मनोयोग से छठ पर्व में  मेरे साथ तुम्हारी सेवा की है। “

    वही मुनिया सपरिवार सुख-सौभाग्य से पूर्ण मेरे सामने बैठी है। सच में… सभी गलत या कुकर्मी नहीं हैं कुछ मुनिया के पति जैसे अच्छे सोच वाले भी हैं जो  बहुत पैसे वाले न होकर भी किसी  निर्धन असहाय कन्या को अपनी अर्धांगिनी बनाकर समाज में उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।  जहाँ लोग आज तक मुनिया को कोस रहे थे सच्चाई देख उसकी प्रशंसा करने लगे। वाह री दुनिया। 

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा

#मुहावरा -नाम डुबोना

 

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