खानदान (भाग 2)- उमा वर्मा  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : बेटा बहू को छोड़ दिया कि जाओ,तुम लोग घूमो,फिरो।फिर समय आगे बढ़ता गया ।पोते की अच्छी शिक्षा और अच्छी परवरिश हुई तो अच्छी नौकरी भी लग गई ।वह मुम्बई के एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने लगा।नौकरी करते चार साल हो गये ।बेटे को चिंता हुई अब इसकी शादी होनी चाहिए ।

समय का चक्र बहुत तेजी से बढ़ने लगा ।मालती के पति की रिटायर होने का समय हो गया ।मालती भी अब थकने लगी थी ।पति को चिंता हुई, रिटायर होने के बाद कहाँ रहेंगे? फिलहाल तो किराये के घर में जाना पड़ा ।अब हर महीने किराया भी मुश्किल होता है ।एक दिन बेटे ने सलाह दी ” पापा, न हो तो कहीं एक जमीन का टुकड़ा खरीद लेते हैं, छोटा सा ही सही पर एक अपना रहने का ठिकाना तो हो जायेगा ” सभी को यह बात ठीक लगी और एक जमीन का टुकड़ा खरीद लिया गया ।

छोटा सा मकान भी बन गया ।बहुत दौड़ धूप में मालती के पति की तबियत खराब रहने लगी थी और गृह प्रवेश के एक साल के बाद ही एक रात जो सोये तो फिर उठे ही नहीं ।कितना सपना था उनका।अकसर कहा करते ” मालती, पोते की शादी में दादा बनकर बारात तो जरूर जाऊँगा ” मालती कहती ” मुझे कोई शौक नहीं है बारात जाने का ।नोक झोंक चलती रहती ।पति के गुजर जाने के बाद मालती की दुनिया उजाड़ हो गई थी ।

लेकिन बेटा, बहू और पोता सभी अच्छे हैं तो दिन कट ही जायेगा, यही सोच से वह खुश रहने की कोशिश करती ।दिनचर्या कहाँ रूकती है ।पोते के लिए लड़की देखी गई ।घर में विचार हुआ, तिलक, दहेज नहीं लेना है ।एक साधारण तरीके से शादी हो गई ।नयी वधु के आने से घर की रौनक बढ़ी।सबलोग बहुत खुश हो गये ।लेकिन बेटे के माथे कर्ज बढ़ता गया ।कुछ न भी करो तो शादी के हजार खर्च थे।लेनदेन भी तो निभाना जरूरी हो गया था ।

बेटे की नौकरी भी डगमगाने लगी थी ।पोता अपनी पत्नी को लेकर मुम्बई चला गया ।घर में बेटा बहू और मालती रह गई थी ।कभी कभी अपने बेटे के पास मालती का बेटा और बहू भी चला जाता, कभी मालती चली जाती ।दिन अच्छा ही कट रहा था ।सभी खुश थे।बस एक कमी लगती कि दादा अपने खानदान के वारिस के बारात नहीं जा पाये ।इधर बेटे की गृहस्थी डांवाडोल हो रही थी ।पास के पैसे खत्म थे।चिंता थी कि जीवन कैसे चलेगा ।

मालती भी अपने इकलौते बेटे के लिए बहुत परेशान थी।इधर मालती दो महीने से पोते के पास है ।लेकिन उसे सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है ।बहू ने साफ कह दिया कि ” हमे अपनी दुनिया में टोकाटाकी पसंद नहीं है ।समय बदल गया है ।हम कहीं भी कभी भी आने जाने में किसी का टोकना पसंद नहीं करेंगे ।मालती ने लाख समझाने की कोशिश की।” वैसा नहीं है, तुम्हारी सास और ससुर बहुत अच्छे हैं ।”, हमेशा तुम्हारी बड़ाई ही करते हैं ” मालती को उसका तेवर ठीक नहीं लगा।क्या करे वह? बहुत चिंतित है ।आज की पीढ़ी आजादी चाहती है ।लेकिन यह कैसी आजादी?

बुजुर्ग माता पिता कहाँ जायेंगे ।क्यों नहीं माता पिता का साथ चाहिए? कितने अरमान से अपने बच्चों को पोसा,पाला।पढ़ाया, लिखाया ।खुद तकलीफ सहकर भी बच्चों के हर जरुरत को पूरा किया ।और आज की पीढ़ी सीधा कह देती है कि वह उनका फर्ज था।तो क्या बच्चों का फर्ज उनके प्रति कुछ नहीं  बनता?

खून के रिश्ते इतने स्वार्थी कैसे हो गये? माना कि माता पिता को भी समय के साथ बदलाव स्वीकार करना चाहिए ।फिर भी बच्चों से क्या उम्मीद ही छोड़ दे।जिस बच्चे के होने पर खानदान के चिराग होने का ठप्पा लगा उसी बच्चे ने माँ बाप को वृद्धाश्रम भेज दिया? बहुत दुःख होता है मालती को यह सब सोच कर ।

कितना खुश हो कर उसका बेटा बहू आ रहा है ।बेटा तो फिर भी बहुत कुछ समझ रहा है ।लेकिन बहू नादान है ।पुत्र मोह में है ।दुनिया दारी समझती है ।सबको साथ लेकर चलना चाहती है ।मालती सबकुछ जानकर भी कुछ नहीं  कर पाती ।आज बेटा आर्थिक मजबूत होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती ।

रोज भगवान से प्रार्थना करती है ।शायद किसी जन्मो के बुरे कर्म का फल है यह।उसे ऐसा ही लगता है । मालती कभी पूना और कभी मुंबई जाती रहती है ।पोते की बदली वाली नौकरी है ।अभी अभी तो पूना आई है ।बच्चे अच्छे हैं ।पर सभी की सोच बदल गई है ।दुनिया कहाँ से कहाँ भाग गयी ।मालती अपने को फिट नही कर पाती आज की दुनिया में ।अभी की पीढ़ी की व्यस्तता भी बढ़ गई है।पिज्जा, बरगर,मोमो, कोल्ड ड्रिंक के बीच बड़े फिट नही बैठते।

ईश्वर से प्रार्थना करती है वह कि सबको अपनी जिन्दगी जीने का अधिकार मिले ।बच्चों की खुशी भी उसकी खुशी है ।पर बेटा बहू भी तो अपना है ।बहुत चिंता होती है उसे ।आखिर में सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया है ।सब वही ठीक करेंगे ।मन को हल्का कर लिया है ।और उठकर अपने लिए चाय बनाने लगी है।उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।

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