खानदान (भाग 1)- उमा वर्मा  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मालती चुप चाप सोफे पर चिंता में बैठी है ।बेटा – बहू कल आ रहा है अपने बेटे के पास ।उसे तो खुश होना चाहिए था लेकिन वह बहुत परेशान है।दो महीने से मालती अपने पोते के पास है ।पूना में ।बेटा बहू पटना में रहते थे ।वहां पति का बनाया अपना घर है ।दिमाग में बहुत सारी बातें आ रही है ।मन अतीत में चला गया है ।पति की अच्छी नौकरी, अच्छा परिवार, जैसा चाहिए वैसा सब सुख था जीवन में ।एक ही तो बेटा है ।

पति को लगता, कम से कम एक बच्चे और हो जाते।अकसर कहते ” मालती, एक बेटे का बाप अच्छा नहीं लगता ।कम से कम एक तो और होने चाहिए ” ।लेकिन मालती की सोच अलग होती ।” नहीं जी, अगर अच्छा करेगा तो एक ही बेटा काफी है ।एक बच्चे की परवरिश हम अच्छी तरह कर पायेंगे ।” पति चुप हो जाते।

बेटा भी समय के साथ बढ़ता गया ।पढ़ाई पूरी करके काम पर लग गया ।माता पिता ने बहुत चाहा कि सरकारी नौकरी लग जाए तो आगे के लिए सुविधा रहेगी ।लेकिन किस्मत को शायद मंजूर नहीं था ।बहुत दौड़ धूप हुआ ।अच्छे पोस्ट के लिए अच्छे रूपये की मांग होती, नाजायज तरीके से ।पिता की सामर्थ्य से मुश्किल था ।हार कर एक प्राईवेट कम्पनी में नौकरी लग गई ।फिर भी संतोष कर लिया ।कोई बात नहीं है ।कौन सा बड़ा परिवार है ।

सबकुछ ठीक हो जाएगा ।फिर बेटे के लिए रिश्ते आने लगे।एक अच्छी और सुन्दर कन्या से विवाह भी हो गया ।लड़की लाखों में एक थी ।मन खुश हो गया था मालती का।बेटा भी तो बहुत सुन्दर और उँचे पूरे कद का था।लोगों ने कहा ” बहुत सुन्दर जोड़ी है ” सुनकर मालती का मन गदगद हो गया था ।बहू अच्छी थी ।परिवार में प्यार, और मान मनुहार के साथ छोटी मोटी टकराव भी हो जाती ।मालती के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी ।

उसके सोच का ढंग अलग था।एक घर में अपने सगे भाई बहन में भी तो टकराव होता है फिर एक होते हैं कि नहीं ।अपना तो आखिर अपना ही होता है ।फिर घर में बच्चे की आगमन की सूचना मिली ।मालती की खुशी का ठिकाना नहीं था ।दिनरात वह बच्चे की कल्पना में खोयी रहती ।पहले जमाने में सासूमा ने जैसा सेवा संभाल किया, हमने चुप चाप स्वीकार किया ।लेकिन अब मै अपने तरीके और आधुनिक तरीके से बच्चे की सेवा संभाल करूंगी ।

नियत समय पर प्यारा सा पोता आ गया ।दादा खुश होकर कहते, मेरे खानदान का वारिस आ गया है ।मालती भी तो कम खुश नहीं थी।अब उसका जीवन बच्चे के नाम हो गया ।तेल मालिश, नहलाना, बोतल से दूध देना, साथ सुलाना सब कुछ वह बहुत मन से करती ।बच्चा भी तो उतना ही सुन्दर था।गुलाबी रंगत वाला।और तो और मालती कहीँ घूमने भी जाती तो पोते को लेकर ही जाती ।उसकी दिन चर्या अब पोते के ही आसपास थी।

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उमा वर्मा 

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