कभी धूप तो कभी छांव,  -सुषमा यादव

, जीवन के सुख दुःख हैं दो ठांव,

कभी धूप तो कभी छांव।।।।

परिमल अपने घर का बहुत प्यारा दुलारा बेटा था। पढ़ने में बहुत तेज बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। हमेशा स्कूल में प्रथम आता,।

तीन भाइयों में मंझला था, एक बड़ी बहन मीनू थी । मीनू की शादी हो गई थी,, बड़ा भाई बैंक में कार्यरत था,उनकी शादी में बहुत खुश होकर खूब धमाल मचाया, अपने दोस्तों के साथ जमकर ठुमके लगाए। मस्तमौला और परोपकारी था परिमल,,आधी रात को भी किसी पड़ोसी ने कोई मदद मांगी,, फौरन तैयार,, दोस्तों और पड़ोसियों में बेहद लोकप्रिय,

उसकी बड़ी बहन मीनू के मां बनने की खुशी में सारा परिवार बहुत ही

खुश नज़र आ रहा था,,घर में बरसों बाद कोई नन्हा मेहमान आने वाला था। मीनू के मायके और ससुराल में उत्सव जैसा माहौल छाया हुआ था। सब बेसब्री से मेहमान के आने का इंतजार कर रहे थे। 

इसी बीच परिमल ने एयरफोर्स इंजीनियरिंग का टेस्ट पास कर लिया, घर में सब को पता चला तो सबकी खुशियां द्विगुणित हो गई। सबकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। बहन मीनू ने अपार खुशियां जाहिर करते हुए जोश में आ कर कहा,,, अम्मा जी, बाबू जी, आपका बेटा आसमान में उड़ गया।। 

उसके कालेज में भी सब बहुत प्रसन्न थे। उसका बहुत सम्मान किया गया। 

ऐसे ही हंसी खुशी के माहौल में एक दिन उसकी दीदी की तबियत ख़राब हो गई, अस्पताल में भर्ती कराया गया। परिमल बहुत उत्साहित था अपने मामा बनने के लिए। सोच रहा था कि वो मामा बन जाये, नौकरी ज्वाइन करने के पहले,,पल पल का इंतजार बहुत कठिन हो जाता है,,समय रुक सा जाता है। जब परिमल को पता चला कि दीदी की तबियत बहुत नाज़ुक हो गई है, और घर के लोगों के साथ दीदी भी बहुत दुःखी है, तो उसने भगवान से प्रार्थना किया कि,,हे प्रभु,आप भले ही मेरी जान ले लें,पर मेरी दीदी की खुशियां उनकी झोली में डाल दें। उसने एक पत्र भी दीदी के नाम से लिखा, उसमें भी यही विनती भगवान से की गई थी। 

,, दीदी मेरी जान चली जाए पर आपको आपकी खुशियां मिल जाए।।  

बहन की तबियत में सुधार हो गया और वो घर पर आ गई। 

परिमल सबका आशीर्वाद लेकर

एयरफोर्स इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग लेने रवाना हो गया।।

अचानक एक टेलीग्राम पुलिस हेडक्वार्टर से आया। ,, परिमल का ट्रेन एक्सीडेंट हो गया है, फ़ौरन आईये। सब घबरा गये,रोना पीटना शुरू हो गया। बहन उसे बहुत मानती थी, उस का दुलारा भाई था,, वो रोते रोते बेहोश हो जाती। मां उसे संभालने में लगी, एक तो पुत्र शोक ऊपर से बेटी की ऐसी हालत, कभी भी कुछ हो सकता है, पिता जी पागलों की भांति बड़बड़ा रहे थे, अरे, कुछ नहीं हुआ उसे । या तो वो मज़ाक कर रहा है,या गुस्से में किसी से तार भिजवा दिया है, मैं उससे नाराज़ था ना,ऐसी नौकरी ज्वाइन करने से मना किया था ना,जाते समय वो मेरे पैर छूकर आशीर्वाद मांग रहा था, मैंने गुस्से में मुंह फेर लिया था। इसी वज़ह से वो अपने ही मरने की खबर भेज रहा है ,,




पिता जी अपने एक दोस्त के साथ रवाना हुए, बेटी की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए मां भाई कोई नहीं जा सका, ख़बर सही थी, पिता जी उसी शहर में दाह संस्कार करके वापस लुटे पिटे से

लौट आए।

ना जाने उस घर को किसकी नज़र लग गई, जहां चारों तरफ खुशियां ही खुशियां छाई हुई थी,आज वहां मातम पसरा था। 

ठीक पन्द्रह दिनों के बाद मीनू ने बेटी को जन्म दिया। परंतु मीनू ने उसे बहुत दिनों तक अपने से दूर रखा। वह अपने भाई की मौत का जिम्मेदार अपनी बेटी को मानती थी, क्यों कि उसने कहा था, मेरी जान के बदले मेरी दीदी की खुशियां भगवान दे दें। और वो अपने वादे के मुताबिक हमेशा के लिए चला गया। 

उसके जन्मदिन 26 जनवरी को ही उसकी प्यारी भांजी स्मृति का भी जन्म दिन मनाया जाता है। उसके यादगार में मीनू ने अपनी बेटी का नाम स्मृति रखा है।

उसका वो पत्र आज़ भी मीनू ने संभाल कर रखा है। आज़ स्मृति स्वयं एक बच्ची की मां बन चुकी है,,

पर मीनू आज भी उस मनहूस दिन को याद करके बहुत रोती है।

उसके जाने के कुछ दिनों बाद एक लेटर आया , परिमल, आप जल्दी अपनी ड्यूटी ज्वाइन करिए वरना आपकी नौकरी कैंसिल कर दी जायेगी और इसे आज्ञा की अवहेलना माना जायेगा। पिता जी ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया,, वहां उसे बहुत ही भावभीनी विदाई दी गई और श्रंद्धाजलि अर्पित किया गया।

हम सब रंग मंच की कठपुतली हैं,जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में रहती है, वो जैसे नचाता है, वैसे ही हमें नाचना पड़ता है।

कल जहां खुशियों ने अपने पंख पसारे थे, आज़ वहां गमों के बादल छाये हुए हैं।। 

, देखते ही देखते ये क्या हुआ।

आज़ उस परिवार में एक बार फिर खुशियां दस्तक देने वाली हैं।

एक बार फिर ग़म के बादलों से खुशियां रुपी सूरज झलकने लगा है।

*** पथ में यदि कांटे मिलें हैं।

तो एक दिन फ़ूल भी मिलेंगे।

यदि आज़ धूप मिली है, तो छांव भी कल जरूर मिलेगी।

क्यों कि जीवन का यही है दस्तूर,

***कहीं धूप तो कहीं छांव,

कभी खुशी तो कभी ग़म*** 

इन्हीं यादों के सिलसिले होंगे।

कभी हम तो कभी तुम ना होंगे।।।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

स्वरचित, मौलिक अप्रकाशित,

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