करवा चौथ –   संजय कुमार जैन पथिक

चार दिन की बारिश के बाद आज धूप खिली है।अक्टूबर के महीना, हल्की हल्की ठंड के बीच हल्की हल्की धूप कलेजे को ठंडक पहुचा रही थी।

भाभी,चलो न मार्किट तक, वो टेलर के पास कपड़े पड़े हैं,लेकर आते हैं।मीना बोली तो सीमा का मन भी इस खुशगवार मौसम में घर से बाहर निकलने के लिए मचल उठा।हालांकि जाना भी कोई दूर नहीं था।पैदल ही दोनों ननद भाभी निकल पड़ीं सेक्टर 16 की मार्किट के लिये।टेलर की दुकान खुली थी लेकिन कपड़े सिलने के बाद अभी प्रेस नहीं हुए थे।

बेटे और कोई 10 मिनट का काम हो तो कर लो मार्किट में,अभी देता हूँ कपड़े आयरन कर के।

अब मीना 10 मिनट में क्या करेगी।बूझो तो जरा।अरे, वही जो सारी लड़कियां और महिलाएं करती हैं।मोती महल रेस्टोरेंट के बाहर बुद्धू की चाट।

भाभी,चलो न ,चाट खाके आते हैं।

अरे आज शायद खुली न हो,बोलते बोलते सीमा चुप हो गई क्योंकि उसने चाट का ठेला खुला देख लिया था।जब तक टिक्की पकेगी,तब तक गोलगप्पे खाएंगे।दो गोलगप्पे ही अभी अंदर गए कि बगल में चाट खा रही एक बुढ़िया ने उसे टोक दिया।

ए तू तो 247 वाले जैन की बिटिया है ना।

हां आंटीजी।

ये तेरे साथ कौन है?

भाभी हैं,संजय भैया की वाइफ।और भाभी ये मिश्रा आंटी हैं।अपने पीछे की गली में।

जब तक मीना का जवाब पूरा होता, सीमा सर पे दुपट्टा चढ़ा चुकी थी।समझ गई थी कि जो कोई भी है,वो इस नई बहू की सास बनना चाहती है।

चरण स्पर्श आंटी जी, उसने सर झुकाये हुए कहा।




खाक चरण स्पर्श, आज करवा चौथ है और तू यहां चाट खा रही है, मोहल्ले में बात फैलेगी तो कितनी बदनामी होगी।और तेरी सास को बताऊं ,जो महावीरजी तीर्थयात्रा पे गई है। सीमा के हाथ से से चाट का पत्ता छूट कर गिर चुका था,और वो उस बुढ़िया को जवाब देने की बजाय आंखों में आंसू भरे हुए मीना का हाथ पकड़ कर घर वापस जाना चाहती थी।लेकिन मीना एकाएक फट पड़ी- सुनो आंटी, ये करवा चौथ का व्रत न रखना भैया भाभी का जॉइंट डिसीजन है,और हमारे घर मे सबको पता है।भैया को ऐसे कोई त्योहार या रस्म पसंद नहीं है जो पत्नी को पुरुष की दासी सिद्ध करते हैं।और मैंने भी व्रत नहीं रखा ,अपने होने वाले के लिए,और आप हमें मना करने वाली आप क्यों खा रही हो चाट?

अरे अब तो तेरे अंकल नहीं रहे,तो मैं क्यों  व्रत रखूंगी।जब तक वो थे,20 साल किया मैंने करवा चौथ।मुझे तो चिंता है तेरे भाई की जिंदगी की।पर क्या समझोगे तुम लोग। तुम तो सनातनी हो नहीं,जैन हो ना।अपना आखिरी तीर छोड़ते हुए बुढ़िया खुद ही आगे जवाब सुने बिना निकल ली।

पीछे से चिल्लाते हुए मीना बोली,20 साल करवा चौथ किया तो क्यों चले गए अंकल जी तुमसे पहले।रोज तो तुम झगड़ा करती थी,और गाली देती थीं उन्हें,मर जा,मौत आये।फिर दिखाने को व्रत रखती थी।पलटी तो उसे अपनी भाभी नहीं दिखी।टेलर के यहां भी नहीं थी।दौड़ के घर आई तो  देखा तो बेतहाशा रोते हुए सीमा गले मे उंगली डालकर उल्टी कर रही थी।शायद बुढ़िया के शब्दों का इतना असर हुआ कि वो चाट का एक एक अंश अपने शरीर से निकाल देना चाहती थी।मीना ने तुरंत भाई को फोन मिलाया दूसरे कमरे से और तुरंत उसकी वीडियो काल आ गई सीमा के फ़ोन पर।संजय कनाडा में था एक ऑफिसियल टूर पर।सीमा ने जल्दी से आँखें पोंछ लीं,फ़ोन उठाने से पहले ,जिससे उसे कुछ पता न चले।




यार बड़ा ही बेकार देश है।कहीं चाट नहीं मिलती।आज गोलगप्पे खाने का बड़ा मन कर रहा है।

तो मैं क्या करूं।सीमा ने मुस्कराने का नाटक किया।वैंकुवर कैसे भेजूं गोलगप्पे तुम्हारे पास।

भेज सकती हो, जानेमन।तुम पहले मंगवाओ तो सही।

गोलगप्पे तुरंत मंगवा दिए मीना ने।अब भैया तुम्हारे पास कैसे भेजें।अरे अपनी भाभी को खिला।हम दोनों दो जिस्म एक जान हैं ना।सीमा तुम खाओ और मुझे स्वाद आएगा।सीमा समझ गई भाई बहन का खेल।लेकिन खाना पड़ा।वो भी इस नाटक में शामिल हो गई थी।अब इस चाट में ज्यादा स्वाद आ रहा था,पति के प्यार की मिठास जो घुल गई थी इसमें।

इंडिया वापस आने के बाद संजय फिर सीमा को मोती महल बुद्धू की चाट खिलाने ले गया और फिर बगल में आंटी को खड़ा देख कर उन्हें सुना कर सीमा से बोला, मैं तुम्हारी मुस्कान देख कर जिंदा हूँ, तुम्हारे किसी पैर छूने वाले व्रत से नहीं।

कई करवा चौथ निकल गए।वे पति पत्नी साथ साथ मंदिर भी जाते रहे और चाट भी खाते रहे।दस साल बाद एकाएक करवा चौथ के ही दिन संजय बाज़ार से लौटा और एकाएक तेज़ सरदर्द की शिकायत की। डिस्प्रीन देते देते वह बुरी तरह तड़पने लगा। सीमा की आंखों में बहुत साल पहले किसी की मौत का दृश्य घूम गया। बिना किसी का इंतज़ार किये पति को खींच कर कार में डाला और पास के मेट्रो हॉस्पिटल की इमरजेंसी में जा पहुची।डॉक्टरों ने तुरंत CT किया और ब्रेन स्ट्रोक की पुष्टि की।श्रीमती जैन,आप इनको सही समय पर  यहां ले आई।थोड़ा देर होने से कुछ भी हो सकता था। लेकिन सीमा पूरी बात सुने बगैर हॉस्पिटल के बीच बने मंदिर में हाथ जोड़कर खड़ी थी।इन दस सालों में सास गुजर चुकी थी और ननद शादी होकर विदेश में थी जो कोविद के कारण आ भी नहीं सकी।सीमा घर भी नहीं गई। 15 दिन वहीं आई सी यू के बाहर बेंच पर पड़ी रही।जब मौका मिलता आई सी यू के भीतर पहुच जाती, मिलने के समय और खाना खिलाने के समय।उसे देख कर संजय की आंखों में चमक और उम्मीद आ जाती।और वो दिन भी आया जब उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। जब कार से पति पत्नी घर पहुच कर उतर रहे थे, तभी सामने से फिर मिश्रा आंटी चली आ रहीं थीं।क्या सीमा बहू, कहीं बाहर गए थे क्या तुम लोग,बहुत दिनों से दिखे नहीं?

बस आंटी, पिछले 10 सालों का करवा चौथ एक साथ मना रही थी।

हां आंटी, मेरी जिंदगी के लिए।संजय बोला तो बात आंटी की समझ मे नहीं आई।

मुस्कराते हुए वो आज की पतिव्रता बहू पति का हाथ पकड़कर घर के भीतर चली गई।

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