जुड़वा बेटियाँ – बीना अवस्थी

मॉ के गर्भ में दो जुड़वा बेटियॉ आपस में बात कर रही थीं। कहते हैं कि जब तक बच्चा बोलना नहीं शुरू करता, उसे पिछला जन्म याद रहता है।

पहली बहन ने दूसरी से कहा – ” पिछली बार मेरी मॉ को दो बेटियॉ पहले से थीं, बेटे की चाह में तीसरी बार गर्भ धारण किया था। इसलिये अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट आने के बाद मुझे गर्भ में ही मार दिया गया था लेकिन मैं दुनिया देखना चाहती थी, कुछ बनना चाहती थी, अंतरिक्ष की सैर करना चाहती थी।

उसकी आशाओं की चमक बढ़ती जा रही थी – ” इस बार हम जन्म लेंगे। हम दोनों बहनें सहेली की तरह प्रेम से रहेंगे, खूब पढ़ेंगे, आसमान की बुलन्दियों को छुयेंगे। तुम मेरा साथ देना और मैं तुम्हारा। मैं तो पायलट बनना चाहती हूँ, नील गगन में पक्षी की तरह उड़ना चाहती हूँ। और तुम……।”

” मैं तो पैदा ही नहीं होना चाहती। दूसरी ने उदास स्वर में कहा।

” क्यों?” पहली ने आश्चर्य से पूँछा।

दूसरी की स्मृति में बहुत कुछ तैर गया, इसलिये वह मौन हो गई।

पहली ने स्वर में आग्रह भर कर कहा – ” मुझे बताओ, अब तो हम एक हैं, हमारा दुख-सुख सब एक है।”

दूसरी ने दुखी स्वर में कहना शुरू किया – ” पिछली बार मेरे जन्म के बाद दादी और पापा सहित सबके चेहरे लटक गये थे, लेकिन जब मेरे दो साल बाद भाई हो गया तो दादी ने कहा कि भाग्यवान बिटिया है जो अपने बाद भाई लेकर आई है। अब भले ही वह भाई से कम लेकिन मुझे भी प्यार मिलता था। फिर सब कुछ बदल गया।”

” कैसे?” पहली की उत्सुकता चरम पर थी।

दूसरी की बंद ऑखों में सब साकार हो उठा – ” मैं सात साल की थी, घर में बुआ की शादी थी। छत पर हम सब बच्चे सो रहे थे। पता नहीं कब चाचा मुझे उठाकर कमरे में ले आये। मुझे अपना दम घुटता सा लगा, ऑख खुली तो मेरे मुँह पर चाचा का हाथ था और वह मेरी चड्ढ़ी उतार चुके थे। अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन मुझे बहुत दर्द हो रहा था, मेरे ऑसू बह रहे थे, मैं चीखना चाहती थी लेकिन चाचा की हथेली के दबाव के कारण चिल्ला नहीं पा रही थी। चाचा के मजबूत शरीर के नीचे मेरा शरीर पिसा जा रहा था, सॉस नहीं ले पा रही थी मैं। मैं छटपटा रही थी लेकिन चाचा ने हैवानियत की सीमा पार कर दी थी। अपना काम होने के बाद चाचा ने मेरा गला दबाते हुये कहा – ” किसी से कुछ कहा तो जान से मार डालूँगा।”


पहली लड़की भय से थरथरा उठी जबकि दूसरी कहती जा रही थी –

” मैं बहुत डर गई थी इसलिये किसी से कुछ नहीं कहा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि हमेशा प्यार करने वाले चाचा को क्या हो गया? सुबह बुआ विदा होकर चली गईं।”

” मुझे इतना दर्द था कि मैं पेशाब नहीं कर पा रही थी। घर मेंहमानों से भरा था। अकेली बहू होने के कारण मम्मी के पास इतना काम था कि उनका ध्यान मेरी ओर जा ही नहीं रहा था। चाचा हर समय मुझे धमकाती हुई घूरती नजर से देखते।”

पहली निशब्द सुन रही थी – ” बुआ की विदाई बाद मेहमान जाने लगे। दर्द के कारण मैं सुस्त पड़ती जा रही थी,पेशाब न जाना पड़े इसलिये पानी तक ठीक से नहीं पी रही थी। तीसरे दिन मम्मी का ध्यान मेरे उतरे हुये चेहरे की ओर गया तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुये कहा – ” क्या बात है सोनी, तबियत ठीक नहीं है क्या?”

मैं मम्मी से लिपटकर सिसक सिसककर रोने लगी – ” मम्मी सूसू में बहुत दर्द हो रहा है।”

” अरे, बताया क्यों नहीं? चल दिखा मुझे, कब से है यह दर्द?”

” जबसे चाचा ने……।” मैं सहमकर चुप हो गई। चाचा की चेतावनी और घूरती ऑखें याद आ गईं।

” चाचा ने……..।” मम्मी चौंक गईं। ” चाचा ने क्या किया है?” और चाचा की चेतावनी के बाद भी मैंने मम्मी को सब कुछ बता दिया। सुनकर मम्मी ने मुझे सीने से लगा दिया और रोते हुये कहा – ” किसी से कुछ कहना मत सोनी।” मम्मी मेडिकल स्टोर से मेरे लिये दवाइयॉ लाईं और अपने हाथों से मेरे निजी अंगों पर लगाने लगीं, साथ ही दर्द निवारक दवाइयॉ भी दीं जिससे मुझे बहुत राहत मिली।”

रिश्तों का यह भयावह सच देखकर पहली अवाक थी और दूसरी….. उसने तो सब भोगा था –


” मम्मी ने मुझे तो किसी को बताने के लिये मना कर दिया था लेकिन मेहमानों के जाने के बाद उन्होंने पापा तो बताया। सुनते ही पापा ने मम्मी के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ मारा – ” मेरे भाई पर झूठा इल्जाम लगाते शर्म नहीं आई। घर तोड़ने, परिवार से अलग होने का और कोई बहाना नहीं मिला तुम्हें ?” लेकिन मम्मी की जिद से जब पापा ने मुझे बुलाया तो मैंने डरते – डरते सारी सच्चाई बता दी। पापा ने उसी समय दादी और चाचा को बुलाया। दादी ने झूठ कहते हुये मम्मी को गालियॉ देनी शुरू कर दी। चाचा ने रोने-धोने, दीवाल पर सिर पटकने और आत्महत्या कर लेने का नाटक शुरू कर दिया – ” भाभी ने परिवार से अलग रहने के लिये सारा तमाशा रचाया है। मैंने भाभी को हमेशा मॉ की तरह माना है, फिर सोनी तो बिटिया है मेरी। भला कोई बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकता है लेकिन अब जब भाभी ने मेरे मुँह पर कालिख लगा ही दी है तो मुझे जिन्दा रहने का कोई हक नहीं है। सोनी ने तो वही कहा जो भाभी ने उसे सिखाया है। कहकर चाचा कमरे से जाने लगे तो पापा और दादी ने उन्हें पकड़ लिया।”

दोनों लड़कियॉ थर- थर कॉप रही थीं – ” फिर……।” पहली बोली।

दूसरी थोड़ी देर चुप रही, शायद वह आगे बोलने के लिये अपने को तैयार कर रही थी – ” पापा मम्मी को मारते जा रहे थे और कहते जा रहे थे – ” घर से अलग होने के अपने घिनौने मकसद में मेरी मासूम बेटी का इस्तेमाल कैसे कर लिया तुमने ? तुम्हारी इस हरकत पर शर्म आ रही है मुझे।”

मैं दीवाल से सटी फूट फूटकर रो रही थी और दादी पापा को बराबर उकसा रही थीं – ” हे भगवान! अँधेर है, कैसा नाटक फैलाया है इस औरत ने, शर्म तो बिल्कुल बेंच दी है इसने।” मम्मी मार खाते जा रही थीं और कहती जा रही थीं कि अगर विश्वास न हो तो मुझे लेडी डाक्टर को दिखा दिया जाये लेकिन पापा की ऑखों पर परिवार मोह और दादी की ऑखों पर पुत्र मोह का चश्मा था। मारते मारते पापा थक गये तो मम्मी को धक्का देते हुये कहा – ” भाई और मॉ को तो नहीं छोड़ सकता मैं। अगर साथ नहीं रहना है तो अपनी लड़की को लेकर जाकर कहीं मर जा लेकिन अपना बेटा नहीं दूँगा।”

एक पल सन्नाटा रहा, दोनों लड़कियॉ चुप रहीं  -” दादी और चाचा को लेकर पापा दूसरे कमरे में चले गये और सात साल की मैं सारी रात मम्मी के घायल शरीर से लिपटकर रोती रही। मम्मी मेरे प्रति अन्याय के विरुद्ध कुछ नहीं कर पाईं। बेटे के मोह में मुझे लेकर घर न छोड़ पाईं और छोड़कर जाती कहॉ? जब घर के अंदर मुझे सुरक्षित नहीं रख पाईं तो बाहर क्या कम भेड़िये थे?”


” तुम्हारे पापा क्या कम पढ़े लिखे या संकीर्ण मानसिकता के थे? “

” एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थे, समाज सुधार की बड़ी बड़ी आदर्शवादी बातें किया करते थे।”

” फिर……..।”

दूसरी ने लम्बी सॉस ली – ” आदर्श खुद पर लागू करने के लिये नहीं होते। खैर छोड़ आगे सुन……।”

पहली फिर ध्यान से सुनने लगी – ” मम्मी कुछ न कर पाईं तो उन्होंने चाचा और दादी से बोलना छोड़ दिया। पापा से भी केवल आवश्यकता पड़ने पर ही बोला करतीं। धीरे धीरे एक साल बीत गया। मैं भी उस हादसे को भुलाने लगी। एक दिन मैं स्कूल से आने के बाद घर से थोड़ी दूर मैदान में खेल रही थी कि एक लड़के ने आकर कहा कि मुझे मम्मी बुला रही हैं। मुझे अन्दर से डर लग रहा था कि मम्मी डॉटेंगी क्योंकि खेलते खेलते काफी देर हो गई थी और मैं घर से सहेलियों के साथ दूर आ गई थी। मैं जानती थी कि अगर सहेलियों से कहूँगी तो वो रोकेंगी। इसलिये मैं बिना किसी से कहे चुपचाप चल दी। सब खेल में मस्त थे तो किसी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं जल्दी जल्दी आ रही थी, झुटपुटा होने लगा था।”

” अचानक चाचा ने आकर मेरा हाथ पकड़ लिया -” घर चल, भाभी परेशान हो रही हैं, भइया भी स्कूल से आ चुके हैं।”

चाचा ने मुझे गोद में उठा लिया – ” मुझे छोड़ो चाचा, मैं जा रही हूँ।”

मैं गोद से उतरने लगी तो चाचा ने उतरने नहीं दिया – ” नहीं जल्दी चल, भइया बहुत गुस्सा हो रहे हैं।” लेकिन चाचा मुझे घर ले जाने की बजाय घर से दूर एक टूटे फूटे खंडहर में ले गये और मेरे मुँह पर एक थप्पड़ मारते हुये कहा -” खबरदार, जो एक शब्द बोला।” डर से मेरी घिग्घी बँध गई। खण्डहर में ले जाकर चाचा ने मेरे हाथ बॉध दिये, मुँह में अपना ही रुमाल ठूँसकर दुष्कर्म किया, फिर अपनी लाल लाल ऑखों से घूरते हुये कहा – “मना किया था कि किसी से कुछ न कहना। अब देख, मैं तेरा क्या हाल करता हूँ।” मेरी नन्हीं सी गर्दन तब तक चाचा के हाथ में कसती चली गई जब तक मेरी देह निष्प्राण नहीं हो गई। इसके बाद चाचा मेरे हाथ खोलकर और मुँह से रुमाल निकालकर मुझे वैसे ही छोड़कर चला गये।”

” फिर…….. ।” पहली बच्ची दम साधकर सब सुन रही थी।

” फिर क्या? दो दिन ढ़ूढ़ने के बाद मैं खण्डहर में मिल गई। सबसे ज्यादा रोने का नाटक चाचा ने ही किया। पापा, मम्मी और दादी ने सब कुछ जानते हुये भी चुप्पी साध ली। पुलिस से कह दिया गया कि उन्हें न किसी पर शक है और न ही उन्हें इस संबंध में कुछ करना है।”

” अब बता, क्या ऐसी दुनिया में दुबारा जाने का मन करेगा जहॉ सोनी और मम्मी जैसी औरतों को इतना बर्दाश्त करना पड़े।” इतना कहकर दूसरी वाली चुप हो गई।

” कहती तो तू सही है लेकिन समय बदल रहा है, ……. ।”

” कुछ भी नहीं बदला। जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, कुछ नहीं बदलेगा।”

” तब ठीक है। चल, हम दोनों मिल कर ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारा भी भ्रूण परीक्षण हो और हमें ऐसी दुनिया में न आना पड़े।” उस दिन से दोनों ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं।

एक दिन उन्हें गर्भ में औजारों की हलचल पता चली तो दोनों खुशी से एक दूसरे से लिपट गईं – ” ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुन ली।”

बीना अवस्थी, कानपुर.

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!