डर  – रचना कंडवाल

मां मैं चलती हूं मुझे देर हो रही है।

“अरे बेटा ठीक से नाश्ता कर ले हमेशा हड़बड़ी में रहती है”।

तेरी पसंद के आलू के परांठे बनाएं हैं।

मां शाम को घर लौटूंगी तो एक गर्म बना देना। मां बड़े प्यार से बेटी को निहारती रही।

सामने पापा अखबार पढ़ रहें हैं बिटिया ने प्यार से पापा के गले में बाहें डाली और पापा को प्यार किया “बाय पापा”

पापा ने मुस्कुराते हुए अखबार एक तरफ रख दिया।

“शाम को तुम्हें लेने आ जाऊंगा”

अरे पापा मैं खुद आ जाऊंगी।वो चली गई।

मां ने पापा की तरफ देखा “सुनिए अब बिटिया बड़ी हो गई है। कहीं रिश्ता देखना शुरू कीजिए”

“बड़ी कहां हुई है? अभी छोटी सी चिड़िया है मेरी। तुम तो जब देखो उसे घर से निकालना चाहती हो”।

रोज बिटिया घर से निकलती है तो तब तक मन में डर रहता है जब तक घर नहीं लौटती।

बेकार में डरा देती हो।

जब शाम को देर तक बिटिया नहीं लौटी तो दोनों पति-पत्नी डर ग‌ए। फोन भी बंद आ रहा था। दोस्तों को फोन किया तो पता चला कि उसे निकले हुए काफी देर हो चुकी है।

मां तो जोर जोर से रोने लगी कि चलो पुलिस के पास चलते हैं। जैसे ही घर से बाहर निकलने लगे सामने आटो रूका देखा बिटिया उतर रही थी पापा दौड़ कर बाहर आ ग‌ए।

“कहां थी तुम”? लापरवाही की भी हद होती है फोन ऑफ, दोस्त भी कह रहे थे कि बहुत देर हो गई है तुम्हें निकले हुए हमारी तो जान ही निकल गई।


“पापा सारी बातें यहीं पर करनी हैं” चलिए अंदर चलते हैं। उसके हाथों में में एक बड़ा सा बॉक्स था।

अंदर आ कर जल्दी से खोलने लगी। एक केक था पापा की पसंद का।

दूसरे डिब्बे में मम्मी की पसंद की कचौरियां।

“पापा मम्मी केक काटो आप दोनों।”

पर न बर्थ डे है न मैरिज एनिवर्सरी ये केक क्यों?? पापा मुझे पहली सैलरी मिली है।खुशी को सैलीब्रेट करने का कोई दिन तय नहीं होता।

मम्मी ने कस कर उसे छाती से लगा लिया।

रात में टीवी पर न्यूज चल रही थी। कि हैदराबाद में एक और “निर्भया कांड”

मां की आंखों से आंसू बहने लगे। पापा और बेटी दोनों उसे देखने लगे।

“क्या हुआ मम्मा”?

लोग इस देश में बेटा पैदा करने में गर्व महसूस करते हैं। पर उनमें से कुछ ही उन्हें अच्छे संस्कार देते हैं।सब क्यों नहीं देते???

क्यों बेटों से देर रात घर से बाहर रहने पर सवाल नहीं किए जाते???

बेटियों का हिस्सा कम कर के लोग बेटों को पालते हैं। उन्हें अच्छी बातें क्यों नहीं सिखाते??

ऐसी मौत से तो भ्रूणहत्या को कानूनन स्वीकृति दे देनी चाहिए।जिस देश में बेटियां सुरक्षित नहीं हैं वहां उन्हें जन्म नहीं दिया जाना चाहिए।

हां कल से तुम्हें ऑफिस से पापा लेने आएंगे।

अब तीनों मौन थे।

ये कटाक्ष (व्यंग्य) है उस समाज पर ,उन नेताओं पर, उन कानून के ठेकेदारों पर,जो ऐसे अपराध व अपराधियों पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। नेताओं के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट एक दिन में निर्णय दे देते हैं उनके लिए मनचाहे वक्त पर अदालतें खोली जाती हैं।पर ऐसे जघन्य कांड फैसले के इतंजार में साल दर साल लटके रहते हैं।

© रचना कंडवाल

 

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