जीवन की डोर – तृप्ति उप्रेती

अशोक एक फैक्ट्री में क्लर्क के पद पर कार्यरत था। घर में उसकी मां विमला जी और पत्नी गीता थे। अशोक के विवाह को एक साल हो गया था। अब विमला जी पोता या पोती के संग खेलने की प्रतीक्षा कर रहीं थी। अशोक की आमदनी कम थी इसलिए वह अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं था।   धीरे-धीरे दो साल और बीते। फिर एक  दिन गीता ने शरमाते हुए विमला जी को खुशखबरी दी। विमला जी की तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई।

नियत समय पर गीता ने एक बेटी को जन्म दिया। बच्ची काफी कमजोर थी। वह बहुत जल्दी जल्दी बीमार हो जाती। कई टेस्ट कराने के बाद पता चला कि उसे थैलेसीमिया है। अशोक और उसके परिवार पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। डॉक्टरों ने उन्हें समझाया कि इस बीमारी में शरीर में खून अपने आप नहीं बनता और समय-समय पर मरीज को खून चढ़ाना पड़ता है। इसका स्थायी इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट है। पर वह बच्ची(आरना) के थोड़ा बड़ा होने का इंतजार करना चाहते थे।

पूरा परिवार आरना  की तकलीफ को देख कर बहुत दुखी था। उसे कुछ कुछ दिनों में खून चढ़ाना पड़ता था। विमला जी दिन-रात भगवान से उसके ठीक हो जाने की प्रार्थना करतीं। आरना के छह महीने के होने पर डॉक्टर ने अशोक से बोन मैरो ट्रांसप्लांट की बात की। गीता का सैंपल भी आरना से मैच हो गया। परंतु यह इलाज किसी बड़े शहर में ही संभव था और इसमें बहुत ज्यादा खर्चा भी था। अशोक दिन-रात पैसों की फिक्र में लगा रहता। रिश्तेदारों ने थोड़ी बहुत मदद की। गीता और विमला जी के पास जो थोड़े गहने थे वह सब मिलाकर भी पूरे नहीं पड़ रहे थे। अशोक और गीता  बहुत हताश हो गए। उनसे अपनी बच्ची की  हालत देखी नहीं जा रही थी।


एक दिन अशोक फैक्ट्री के मालिक रामदयाल जी के पास कुछ कर्ज लेने गया। वह उनसे आरना की बीमारी के बारे में बात कर रहा था तो उनका बेटा सौरभ भी मौजूद था। उसने अशोक से ऑपरेशन के कागजात और आरना की कुछ अस्पताल वाली तस्वीरें मांगी। अगले ही दिन उसने यह तस्वीरें  अपने फेसबुक और व्हाट्सएप अकाउंट में अपलोड कर दीं और लोगों से आरना की आर्थिक मदद करने की अपील की। सौरभ के कई और दोस्तों ने भी इस अपील को सोशल मीडिया पर शेयर किया। 5-6 दिनों में ही देश विदेश से सैकड़ों लोगों ने आरना रिलीफ फंड के अकाउंट में हजारों रुपए जमा करा दिये। 15 दिनों में ही आरना के इलाज एवं उसके बाद की देखभाल के लायक बहुत धन जमा हो गया। अशोक और गीता भावविभोर थे एवं सौरभ का धन्यवाद कहते नहीं थक रहे थे। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी आसानी से और एक छोटे से प्रयास से उनकी मुश्किलें हल हो जाएंगी और वे अपनी बच्ची को खेलता मुस्कुराता देख सकेंगे। महीनों की चिंता मानो पल भर में काफूर हो गई। अशोक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर उन अनगिनत अनजान लोगों का धन्यवाद दिया जिनके योगदान से आरना का ऑपरेशन हुआ।

आज आरना आठ वर्ष की हो चुकी है और स्वस्थ है। अशोक और गीता प्रतिमाह अपनी आय का एक हिस्सा ऐसे fundraiser में जरूर देते हैं और लोगों को भी इसके प्रति जागरूक करते हैं। उन्हें विश्वास है कि सब का छोटा-छोटा योगदान किसी ना किसी परिवार की खुशियां वापस लाने का बड़ा जरिया बन सकता है।

प्रिय पाठकों,

हमारे आसपास और हमसे दूर भी ऐसे कई परिवार हैं जो इस तरह की दुःसह परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। जब भी आपको ऐसे किसी पीड़ित के बारे में पता चले तो उसकी मदद ज़रूर करें। हमारे द्वारा दी गई छोटी सी राशि भले ही हमारे लिए कम मायने रखती हो पर इकट्ठा होकर वही बड़ी धनराशि  किसी की जान बचा सकती है।आप सभी से निवेदन है कि लोगों को इसके प्रति जागरूक भी करें।

मेरी यह रचना सर्वथा मौलिक एवं स्वरचित है। आशा करती हूँ कि मेरी अन्य रचनाओं की तरह सुधी पाठक इसे भी अवश्य पसंद करेंगे। आप के सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

धन्यवाद

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