जलन – अनिला द्विवेदी तिवारी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :देवकी और सुनीता दो देवरानी जेठानी थीं।जहाँ देवकी सीधी, सरल, एवम गेहुंआ रंग की, मझोले कद-काठी की एक महिला थी वहीं सुनीता गौर वर्ण, सुंदर नाक नक्श, सुराहीदार गर्दन, तराशा हुआ वदन की स्वामिनी थी किंतु वह बहुत चालू एवम स्वार्थी किस्म की महिला थी।

सुनीता दिखावा तो भरसक करती थी कि वह देवकी का बहुत ख्याल रखती है किंतु मन में कुछ और होता था और बाहर कुछ और!

हर वक्त वह देवकी को घर वालों की नजरों में गिराने की कोशिश में लगी रहती थी। घर के काम-काज में भी उसकी भूमिका नगण्य ही रहती थी। बस पूरे दिन अपने बनाव-श्रृंगार में वक्त गुजार देती थी।

वहीं दूसरी तरफ देवकी अपना खुद का ध्यान कम रखते हुए, परिवार की देखरेख में सारा वक्त लगा देती थी।

इसलिए देवकी को परिवार का स्नेह और इज्जत-सम्मान भी अधिक मिलता था।

सुनीता इस बात पर भी देवकी से जलन का भाव रखती थी, यह सोचते हुए कि वह देवकी से अधिक सुंदर, अधिक पढ़ी-लिखी और शहरी लड़की है, फिर भी इस घर में उससे अधिक उसकी जेठानी का मान-सम्मान होता है!

परंतु घर वालों को सुंदरता और डिग्रियों से अधिक परिवार को सम्हालने वाली लड़की से लगाव था।

हो भी क्यों ना, यह तो मानव स्वभाव है जो व्यक्ति किसी के लिए कुछ करेगा या ध्यान रखेगा, बदले में उसे भी तो कुछ मिलेगा ही।

सुनीता का जलन भाव इतना बढ़ गया था कि वह हरदम देवकी को सबकी नजरों में गिराने के मौके तलाशती रहती थी।

एक दिन घर पर मेहमान आए हुए थे, देवकी ने  कई प्रकार का खाना बनाया और प्लेटफार्म पर व्यवस्थित रूप से रखकर  कपड़े बदलने चली गई। इस बीच अपने कमरे से तैयार होकर सुनीता आई और दाल एवम सब्जियों में बहुत सारा नमक और मिर्च मिलाकर चली गई।

कुछ ही देर में देवकी वापस आई और खाने को ले जाकर डायनिंग टेबल पर जमा दिया।

जैसे ही घर के लोग और रिश्तेदार खाने बैठे, देवकी ने सबको खाना परोसना चालू किया। 

सुनीता अभी भी दूर बैठी तमाशा देख रही थी। किसी भी काम में कोई सहभागिता नहीं निभा रही थी। 

लेकिन ये क्या उसने खाने में इतना अधिक नमक-मिर्च मिलाया था पर ये सब तो चटखारे लेकर खा रहे हैं।

किसी ने किसी तरह की शिकायत या उलाहना भी नहीं दिया।

जब सुनीता खाने की ओर घूर-घूर कर देख रही थी तभी देवकी ने कहा,,, “इस तरह क्या देख रही है छोटी तुझे भी भूख लगी है क्या?”

“हाँ, नहीं, नहीं अभी मुझे भूख नहीं है!” सुनीता ने हड़बड़ाते हुए कहा।

“अच्छा कोई बात नहीं, इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। भूख लगी भी होगी तो कोई गुनाह थोड़े ही है।

मैं अभी ही तेरी भी थाली परोस देती हूँ।”

“नहीं, नहीं दीदी हम आपके साथ ही खाना खायेंगे।”

“ठीक है, जैसी तेरी मर्जी!” देवकी ने कहा और अपने काम में लग गई।

कुछ ही देर में घर के सारे पुरुष और रिश्तेदार खाना खाकर बाहर हॉल की ओर चले गए।

देवकी, सुनीता एवम उनकी सास चंदा देवी और ननद विनीता खाना खाने के लिए शेष थे।

चारों जब खाना खाने बैठी तो देवकी सबको खाना परोसने लगी।

तभी उनकी सास चंदा देवी ने कहा,,, “सुनीता कभी-कभी तुम भी थोड़ा-बहुत, हिल-डुल लिया करो सेहत के लिए अच्छा होता है।

अरे ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम अपनी थाली तो परोस लो। देवकी भी इंसान ही है सुबह से कोल्हू के बैल की तरह लगी हुई है।”

सुनीता ने थोड़ा आड़ा-टेढ़ा मुँह बिचकाया और अपनी थाली परोसने लगी।

तब देवकी ने उसका हाथ पकड़कर रोक दिया ये कहते हुए कि “कोई बात नहीं मैं परोस दूँगी। जब इतने काम से नहीं थकी तो एक थाली परोसने में नहीं थक जाऊंगी।”

देवकी ने अपनी सास, ननद के साथ-साथ अपनी व सुनीता की थाली भी परोसी।

सास, ननद दोनों खाने लगीं। देवकी ने भी खाना चालू किया।

परंतु जब सुनीता ने अपने मुँह में एक निवाला डाला तो चीख पड़ी। ये कहते हुए, “ये कैसा खाना बना है जिसमें नमक और मिर्च भरा हुआ है! सब लोगों ने कैसे इस खाने को खा लिया?”

तब सुनीता की सास और ननद ने कहा,,, “बैठे-बैठे, मीन-मेख निकालना अलग बात है और काम करना अलग बात है।” ऐसा कहकर वे पुनः अपना खाना खाने लगीं।

सुनीता तुनकती हुई अपनी थाली छोड़कर अपने कमरे में चली गई।

कुछ ही देर बाद खाना खाकर देवकी सुनीता के कमरे में एक थाली परोसकर ले गई और कहा,,, “छोटी ले ये खाना खा ले, देख शायद इसमें नमक और मिर्च कम हो।”

सुनीता ने देवकी की ओर देखा जैसे वह ये जानना चाहती हो कि ये सब कैसे हुआ?

तब देवकी ने स्वयं ही बताना चालू किया,,, “छोटी मैं तेरी हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी।

आज ही नहीं मैं तेरे हाव-भाव बहुत रोज से देख रही थी लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि घर वालों के सामने तेरा मजाक बने इसलिए मैने वहाँ पर किसी के सामने कुछ नहीं कहा लेकिन आज तुझे समझा रही हूँ, कि वक्त रहते सुधर जाओ।

अन्यथा ये जलन, कभी-कभी अपने ही हाथों से अपना घर जला लेती है।

आगे तू खुद समझदार है!

ऐसा कहकर देवकी सुनीता के कमरे से बाहर निकल गई।

सुनीता बहुत देर तक देवकी की कही हुई बातों पर विचार करती रही फिर उसने खाना खाया और अपनी जूठी थाली उठाकर सिंक में डालने गई और वहाँ से वह सीधे देवकी के कमरे में चली गई। देवकी के पास जाकर, उसके पैर पकड़कर सुनीता माफी माँगने लगी।

तब देवकी ने सुनीता को उठाकर गले से लगा लिया। अब जलन बर्फ बनकर पिघल चुकी थी!

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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