जलनखोर – मंजू ओमर  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मीनू और रेखा दोनों देवरानी जेठानी थी । दोनों की उम्र में कोई पांच साल का अंतर होगा । दोनों करीब करीब कल काठी में एक ही लगती थी। जिठानी जी का थोड़ा रंग साफ था और मीनू का रंग गेहुंआ था इसबात से जिठानी को बड़ा घमंड था । मीनू भी अच्छे नैन नक्श की मालकिन थी पर जिठानी को मीनू की कोई भी बात अच्छी नहीं लगती थी।

जरा भी कोई मीनू की तारीफ कर देता था तो रेखा जी नाक भौं चढ़ाने लगती थी। देवरानी जेठानी में आपस में जलन होना तो स्वाभाविक बात है ये कोई नई बात नहीं है। हंलाकि मीनू कभी ज़वाब नहीं देती थी । लेकिन जेठानी अपने आपको सुपर समझती थी ।

मीनू हर काम में काफी होशियार थी सभी काम बड़ी आसानी से निपटा देती थी। जिठानी अपनी ठसक में बैठी रहती थी। इसी तरह जलते भुनते समय बीत गया जिठानी और मीनू दोनों ही अलग अलग किराए के मकान में रहती थी ।अब समय आया कि अपना कुछ अच्छा पक्का ठिकाना किया जाए ।

इत्तेफाक से जिठानी जिस मकान में रहती थी उनका मकान मालिक उस मकान को बेचने लगा ।तो जिठानी ने उसी मकान को सस्ते में खरीद लिया । हंलाकि बहुत ही पुराना और बेकार सा मकान था । लेकिन मीनू ने कुछ पैसे जोड़ रखें थे और कुछ अपने भाई की मदद से एक प्लाट खरीद लिया । हंलाकि बनवाने की अभी कोई जुगाड नहीं थी फिर भी,,,,,,।

                 अब तो जिठानी में और गुरूर आ गया कि मैंने मकान खरीद लिया । कुछ समय बाद मीनू ने थोड़ा उधार लेकर और कुछ ब्याज पर पैसे लेकर मकान का काम शुरू किया किसी तरह छत तक काम हो गया और फिर काम बंद कर दिया । लेकिन सभी लोगों ने सलाह दी कि कुछ जुगाड करके इतना काम मकान में करवा लो कि रहने लायक हो जाए फिर धीरे-धीरे बनवाते रहना । मीनू ने ऐसा ही किया।दो मुख्य दरवाजे लगवा कर वह अपने मकान में शिफ्ट हो गई । मकान में आने से पहले घर में पूजा रखी थी मारे जलन के जेठ जिठानी नहीं आए पूजा में ।उनको लगता था कि हमसे कम पैसा मिलता है मीनू को तो देखे कैसे मकान बनता है ।चाहतीं तो यही थी कि मकान नं बन पाए ।

                 दरअसल मीनू के घर बिजनेस होता था जिसमें पार्टनरशिप में मीनू के पति और जेठ का साथ साथ काम था । पार्टनरशिप भी 60,और 40 का रखा गया था मीनू कहीं हमसे आगे न बढ़ जाए इस लिए उसको कम पैसे दिए जाते थे। लेकिन मीनू बड़ी मेहनती थी और समझदार भी ।घर में कोई नौकर चाकर न लगा कर सारा काम खुद ही करती थी , बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा लेती थी इस तरह वो जितना पैसा हो सकता था बचाने की कोशिश करतीं थीं और धीरे धीरे जब थोड़े पैसे इकट्ठे हो जाते थे तो थोड़ा सा घर का काम करा लेती थी ।

इस तरह धीरे-धीरे मीनू का मकान तैयार हो गया।खुला खुला और एक अच्छी कालोनी में उसका मकान था ।और वही जेठानी का पुराना सा रेलगाड़ी के डिब्बों सा मकान नं ही उसमें कहीं से रौशनी आती थी और न हवा अंधेरा अंधेरा घर में होता था। मीनू ने कोई नौकर नहीं लगा रखे थे इसपर भी उसे जिठानी नीचा दिखाती थी ।वहीं जिठानी नौकरों चाकरों से घिरी रहती थी । महंगे मंहगे कपड़े और मंहगे शौक पूरे करतीं रहती थी ।

बाद में मीनू के जेठ के दोस्तों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि छोटे भाई ने तो इतना अच्छा मकान बनवा लिया है बड़े भाई देखो कैसे मकान में रहते हैं । जिठानी मीनू के घर जब भी आती नाक भौं सिकोड़ती रहती । कोई कहता मीनू ने देखो कितना अच्छा मकान बनवा लिया है तो तपाक से जिठानी बोलतीअरे कहां गली के अंदर मकान है मेरा घर तो सड़क पर है सब चीज की सुविधा है वहां जिठानी की जलन कम नहीं होती थी ।

             और आखिर में मीनू ने जिस एरिया में घर बनवाया था आज एक अच्छी कालोनी के रूप में विकसित हो गई है ।और जलनखोर जिठानी उसी पुराने घर में रहती हैं ।लोग कभी किसी की तरक्की देखकर खुश नहीं होते यही प्रकृति का नियम है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

13 सितम्बर 23 

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