रागिनी को जब पता चला कि वह माँ बनने वाली है तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था ये यूँ तो उसका दूसरा बच्चा था पर ख़ुशी दुगुनी हो रही थी क्योंकि उसने अपने पति तुषार से यही कहकर दूसरे बच्चे के लिए हामी भरी थी कि पहले बच्चे के वक़्त मुझे महसूस ही नहीं हुआ मैं माँ भी बनने वाली हूँ
सब सखियाँ बताती थी पहले बच्चे के वक़्त सब बहुत ख़्याल रखते ज़्यादा प्यार देते हर छोटी छोटी बात का ध्यान रखते मानो वो कोई राजकुमारी हो पर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ जो भी मेरे अनुभव है वो बहुत कड़वे रहे हैं तो अब मुझे फिर से उस दलदल में मत घसीटो पर तुषार ने बहुत रिक्वेस्ट किया “एक बेबी और कर लेते हैं यार जब वो दो रहेंगे तो वो आपस में संग रहेंगे हमारे चिपकू ना बनेंगे और तुम जो चाहोगी वहीं होगा।”
रागिनी शाम को जब डॉक्टर से मिल कर आई तो सोचा एक बार अपनी माँ को बता दूँ सोच कर कॉल लगा दिया,”हैलो माँ तुम फिर से नानी बनने वाली हो बेटी की चहकती आवाज़ से हर माँ खुश हो जाती है पर ना जाने क्यों रागिनी की माँ ख़ुशी ज़ाहिर करने की जगह बोली,”रागिनी देख ले बेटा सोच समझ कर फैसला करना मुझे तो वही पता जो तुने बताया था फिर तेरी हालत भी तू ही
समझ सकती है इस बार भी वही सब हुआ तो तू कैसे सँभालेंगी? इस बार तो तेरा वेद भी साथ में हैं तुषार मेरे पास आने नहीं देंगे नहीं तो यही बुला लेती।”
“माँ तुम चिन्ता मत करो इस बार तुषार ने कह दिया है वो मेरी मर्ज़ी के बिना कुछ नहीं करेंगे।” रागिनी ने कहा
“रागिनी मैं फोन कर के घर पर सबको बता देता हूँ तुम माँ बनने वाली हो…क्यों क्या कहती हो ख़ुशी की बात है घर वालों को तो बताना ही चाहिए !”तुषार ने कहा
“आप देख लीजिए तुषार पर प्लीज़ इस बार मैं किसी भी क़ीमत पर आपलोगों की बात नहीं मानूँगी।
“अरे यार एक बार कह दिया ना कि वही करना जो तुम्हारा मन करे अब बार-बार एक ही बात मत कहो।” नाराज़ होकर तुषार ने उस वक़्त फोन नहीं किया।
रागिनी भी बिना कुछ बोले कमरे में जाकर लेट गई वो याद करने लगी पहली बार जब माँ बनने की ख़ुशी सबसे पहले ससुराल वालों को दी थी सासू माँ ने कैसे कहा था “हमारे घर का चिराग़ हमारे ही आँगन में होगा बस अब चुप चाप तुम यहाँ आ जाओ।” सख़्त आवाज़ सुन रागिनी और तुषार उनके पास चले गए थे।
तुषार कुछ दिन साथ रहा फिर उसे ऑफिस जाना था कितनी छुट्टी लेकर रहता वो रागिनी को छोड़कर आ गया था। हर दिन फोन पर बात करूँगा इस वादे के साथ।
कुछ दिनों बाद रागिनी की सास ने कहा,”छोटी बहू तुम माँ बनने वाली हो कोई बीमार नहीं हो जब देखो कमरे में ही पड़ी रहती हो….. अरे काम करती रहो इससे बच्चा भी ठीक रहेगा और नार्मल डिलीवरी होगी देखो तुम्हारी जेठानी भी पूरे नौ महीने काम करती रही थी और मैं भी हम दोनों के बच्चे आराम से हो गए।बस अब बहुत हो गया अपनी जेठानी की मदद करो और जितना हो सके काम करो चलती फिरती रहो।”
रागिनी अब से घर के हर काम करने लगी तो जेठानी भी गाहे-बगाहे कुछ ना कुछ अतिरिक्त काम दे ही देती थी।
एक दिन रागिनी का जी मिचल रहा था वो रसोई में खड़ी भी नहीं हो पा रही थी पर ना वहाँ सास थी ना जेठानी जिनको बोलकर वो अपने कमरे में जाकर आराम कर सके।
उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसे उलटी हो गई….रसोई से भागते भागते भी मुँह से कुछ निकल ही गया।
सासु माँ ये देख कर भड़क उठी पर रागिनी की हालत ना देखी।
अब रागिनी ना ठीक से खा रही थी ना आराम कर रही थी उसे लग रहा था वो प्रेगनेंसी के सुने सुनाए क़िस्से से अलग ही बीमारी की चपेट में आ गई है।
अगले शनिवार तुषार आया तो बताया डॉक्टर का पता कर लिया है अब तुम्हें यहाँ दिखा लाता हूँ।
दूसरे दिन वो डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने रागिनी से कहा,”आप क्या हालत बना रखी है इतने कमजोर शरीर में बच्चे का विकास कैसे होगा.. आप ठीक से खाती तो है? “
“डॉक्टर आजकल मुझे भूख ही नहीं लगती और जी बहुत मिचलाता कुछ अच्छा नहीं लगता..।”रागिनी ने कहा
“आप समझ नहीं रही अभी शुरुआती दिन हैं ख़ास ख़्याल रखे नहीं तो दिक़्क़त हो सकती है।डॉक्टर कहकर कुछ दवाइयाँ दे कर बोले अपना ख़ास ख़्याल रखे।”
“तुमने मुझे क्यों नहीं बताया जी मिचलता और सही में तुम बहुत कमजोर दिख रही हो चलो माँ को बोलता हूँ तुम्हें डॉक्टर ने आराम करने कहा है नहीं तो बच्चे को नुक़सान हो सकता।”तुषार ने कहा
घर आकर तुषार ने माँ से क्या कहा कि डॉक्टर ने इसे आराम करने कहा है नहीं तो बच्चे पर असर पड़ेगा…।”
“बोल तो ऐसे रहा है बेटा जैसे हमने बच्चा न जना बस तेरी बीवी ही बच्चा जन्म देने वाली अरे तेरी भाभी और मैं हमेशा काम करते रहे और देख तुम दोनों भाई स्वस्थ नहीं हो क्या तेरे भतीजे भतीजी अस्वस्थ है ये डॉक्टर तो दवा दे कर हर महीने अपने पास बुला कर बस पैसे बनाते..तू चिन्ता मत कर तेरा बच्चा भी स्वस्थ ही होगा।” माँ कीं कड़क आवाज़ सुन तुषार की सिटी पिटी गुम हो गई बीबी के पक्ष में क्या अपने पक्ष में भी बात कहने की हिम्मत ना थी उसमें…।
पूरे नौ महीने रागिनी परेशान ही रही पर सासु माँ की ज़िद्द के आगे किसी की ना चली…
प्रसव पीड़ा होने पर रागिनी जब अस्पताल गई तो डॉक्टर ने कह दिया “आपमें इतनी ताकत ही नहीं है कि आप सामान्य प्रसव के लिए ताकत लगा सको फिर बच्चा भी तिरछा है ऑपरेशन ही करना पड़ेगा…
“ऑपरेशन की कोई ज़रूरत नहीं डॉक्टर सांब बच्चा सामान्य विधि से ही आवेगा।” सासु माँ ने कहा
रागिनी की बिगड़ती हालत देख तुषार पहली बार माँ पर ग़ुस्सा हुआ था।”आपको जो सही लग रहा वो करें डॉक्टर माँ और बच्चे दोनों सलामत चाहिए।”
रागिनी के शरीर में खून की कमी हो गई थी और इस वजह से बच्चा बहुत कमजोर था डॉक्टर ने उसे दस दिन अपने पास रखा था तब जाकर वो थोड़ा ठीक हुआ था।रागिनी और अपने बच्चे की हालत देख तुषार को लग रहा था पता नही कहाँ गलती कर गया क्योंकि जिस माँ पर भरोसा कर रागिनी को छोड़कर गया था ना रागिनी ही ठीक रही ना बच्चा स्वस्थ था।
रागिनी भी सासु माँ के व्यवहार से कहीं ना कहीं टूट चुकीं थीं।
इसलिए दूसरे बच्चे के नाम से दूर भागती रही थी पाँच साल बाद ये ख़ुशी मिली थी समझ नहीं पा रही थी ससुराल जाना पड़ेगा तो कैसे सब सहेगी।
“रागिनी सो गई हो क्या !लो माँ तुम से बात करना चाहती है।” तुषार की आवाज़ सुन रागिनी यादों से बाहर निकल आई
“हैलो प्रणाम माँ”
“ख़ुशी रह छोटी बहू सच्ची में माँ बनने वाली हो छोटी बहू तुषार ने बताया ये तो बहुत ख़ुशी की बात है छोटी बहू एक बात कहूँ वेद के साथ साथ अपना ख़्याल रखना मुश्किल होगा तुम चाहो तो…(सासु माँ की बात सुनकर रागिनी तुषार का मुँह देखने लगी )..इस बार अपने शहर ही रह जाओ नहीं तो मायके चली जाओ ये शहर छोटा है अभी के हिसाब से सब सुविधा भी नहीं मिलती चाहो तो मैं आ जाऊँगी नहीं तो समधन जी को बुला लेना पर बेटा इस बार अपना ध्यान रखना पुरानी बात याद कर आने वाले बच्चे पर असर ना आने देना…सबका शरीर एक जैसा नहीं होता ये बात तेरी सास को वेद के जन्म के समय ही आ गया था बस कभी बोल ना पाई।” उदास स्वर सुन रागिनी आश्चर्यचकित हो गई।
“तो इस बार कुछ दिन आप आ कर रह लीजिए कुछ दिन मेरी माँ आकर रह लेंगी।”रागिनी ख़ुशी से बोली
तुषार रागिनी का चेहरा आश्चर्य से देख रहा था।
फोन रख कर रागिनी ने कहा,”तुषार माँ को कुछ दिन बाद बुला लीजिएगा मुझे पता चल गया अब माँ मेरे बारे में सोचेंगी अपने जमाने का नहीं।”
कभी कभी जो बीत जाता हम उससे ही आगे भी अपनी सोच ज़ोड़कर ना जाने कितनी बातें सोच लेते हैं रागिनी की सास को लगता था उनके और बड़ी बहू के बच्चे आराम से हो गए तो रागिनी के भी हो जाएँगे पर सबका शरीर एक जैसा नहीं होता ये बात वेद के जन्म के समय रागिनी को हुए दिक़्क़त से उसकी सासु माँ को समझ आ गया था।
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रश्मि प्रकाश
बड़ो की इसी मानसिकता के चलते मैंने अपने चार बच्चे खोए। शादी के बारह साल बाद मेरा बेटा हुआ जो सिर्फ़ १.५० वजन का था। बड़ी मुश्किल से बचा। आज वो स्वस्थ है और बारवी कक्षा में है। आपकी कहानी में पुरानी यादे मेरी ही कहानी थी।बहुत अच्छी है। जीवंत है तभी तो मैं अपने पुराने वक़्त में चली गई। धन्यवाद ऐसी कहानी लिखने के लिए।