मैं अपनी फेवरेट हूँ – चेतना अग्रवाल

“मैं अपनी फेवरेट हूँ और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मेरे बारे में क्या कह रहा है। मैं वही करती हूँ जो मुझे अच्छा लगता है। दैटस् ऑल!” लीना ने कहा और अपना डाँस फिर शुरू करने लगी।

जब लीना का डाँस खत्म हुआ और वो कमरे से बाहर आई तो उसकी सास बोली, “महारानी जी, तुम्हारा नाचने का शौक पूरा हो गया हो तो चाय बना लो। तुम्हारी ननद भी कब से इंतजार कर रही है।”

“मम्मी जी, आपको पता है जब मैं डांस कर रही होती हूँ तो मुझे दूसरा काम पसंद नहीं। ये आपको भी पता है फिर क्यों मुझे बीच में टोकती हैं। क्या ही अच्छा लगता है कि मैं आपसे कुछ कहूँ। चाय तो दीदी भी बना सकती थी, इतनी देर तक मेरे आने की इंतजार करते रहे।” कहकर लीना हँसी और चाय बनाने चल दी।

थोड़ी देर में ही लीना सबके लिए चाय और पकौड़े बना लाई। सबको चाय देकर लीना भी अपनी चाय लेकर वहीं बैठ गई।  सासू माँ का मुँह फूला हुआ था।

 ननद पिंकी बोली, “भाभी, अब क्या आप अठ्ठरहा साल की हो जो इस गाने पर डाँस करती हैं। अच्छा लगता है क्या, कोई सुनेगा तो क्या कहेगा।”

“दीदी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्या कहेगा। मुझे लगता है बस यही काफी है मेरे लिए। वैसे भी ये गाना मेरा फेवरेट है, अठ्ठरहा बरस की कँवारी कली थी… और डाँस करने से हमारा शरीर भी फिट रहता है। दूसरे को अपनी फेवरेट क्यों बनाना, अपनी खुद की फेवरेट बनो; देखना आप को खुद से प्यार हो जायेगा।” लीना अपनी ननद से बोली।



“बहूरानी, घर क्या कोई और देखेगा आकर… तुम ऐसे ही नाच-गाने में लगी रही तो घर का तो सारा हिसाब बिगड़ जायेगा।”

“मम्मी जी, पहली बात तो मैं सारे काम समय पर पूरे करती हूँ। अगर आपकी बात भी मान लूँ तो भी मैं आपकी फेवरेट नहीं बन सकती। इसलिए मैं खुद की फेवरेट हूँ। आप लोग भी तो अपनी फेवरेट हो, आपको अपनी सारी बात सही लगती हैं। आपको क्या किसी और की बात सही लगती है।

आपको पता है मैंने कुछ दिन पहले न्यूज में सुना था कि एक लड़की ने खुद से ही शादी कर ली। आप कहोगी ये भी कोई शादी है। लेकिन है ना मम्मी जी, उस लड़की को खुद से ही इतना प्यार था कि वो किसी और के साथ उस प्यार को बाँट नहीं सकती थी। खुद के लिए जीना सीखिये मम्मी जी, आपको जो अच्छा लगता है वो कीजिये। दूसरों के लिए आप कितना भी कर लोगी तो भी वो आपको भलाई नहीं देगा।

 

 जो दूसरों को अच्छा लगे वो क्यों करना… अपनी पसंद का पहनना और खाना-पीना… फिर देखो क्या मस्त जिंदगी है अपनी…”

“बहू, तेरी बातें हमें तो समझ आती नहीं। तूझे तो अपनी दुधमुँही बच्ची का भी ख्याल नहीं…”

मम्मी जी, उसी का तो ख्याल है। अगर मैं खुश रहूँगी तो बच्ची को भी खुश रख पाऊँगी। इसीलिए अपनी नींद पूरी करती हूँ। अगर मैं परेशान रहूँगी तो बच्ची के काम करने में चिड़चिड़ाती रहूँगी। अगर मैं खुश हूँ तो घर में किसी का काम करने में भी खुशी होगी, वरना मेरा भी मन दुखी होगा ना किसी का काम करने से अगर मैं खुश नहीं तो।



जिस कपड़े को पहनकर मुझे असुविधा हो, तो मैं कैसे खुश हो सकती हूँ। अब अगर दीदी के आते ही मैं अपना डाँस और बच्ची के काम छोड़कर इनकी आवभगत में लग जाऊँ तो क्या इनके आने से मुझे खुशी होगी, क्या मैं खुशी से इनके लिए चाय बना पाऊँगी। इसलिए मैं अपने आप को खुश रखती हूँ, क्योंकि किसी भी चीज से पहले मुझे मेरी खुशी प्यारी है। और मैं तो कहती हूँ हर औरत को मेरी तरह होना चाहिए, अपनी खुद की फेवरेट…”

“सही कह रही हो भाभी। मैं भी अपनी ससुराल में एक पैर पर खड़ी सारे काम करती रहती हूँ, चकरघिन्नी बनी रहती हूँ फिर भी कोई मुझे तारीफ के दो शब्द नहीं बोलता। इस वजह से मैं कुढती रहती हूँ और सबके ऊपर झुंझलाहट निकलती है। अगर मैं खुश नहीं रहूँगी तो बाकी सबको खुश कैसे रखूँगी। गुडिया के होने के बाद आपने कितनी जल्दी अपने शरीर को फिट कर लिया और मुझे देखिये उस समय ध्यान नहीं दिया तो शरीर कैसे फैल गया है।”

 वही तो दीदी, अपना तो उसूल है, अपना काम बनता; भाड़ में जाये जनता… अपनी फेवरेट होने के लिए जरूरी नहीं कि आप बहुत सुंदर हो। आप जैसे भी हो, खुद से प्यार करो। इससे हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है। और जब आपका आत्मविश्वास बढ़ता है तो वो ग्लो बनकर आपके चेहरे पर दिखता है। जिससे आप खूबसूरत लगते हो। मैं अपनी फेवरेट हूँ, और हमेशा रहूँगी। ये लाइन आपको हमेशा खुश रखने के लिए काफी है।”

“अब तुम दोनों तो अपनी-अपनी फेवरेट बन गई।  अब खाना तो मुझे ही बनाना पड़ेगा। पिंकी को यह सोचकर बुलाया था कि वो तुझे कुछ समझा देगी और तेरा ये डाँस का भूत उतर जायेगा। लेकिन तूने तो सब उल्टा-पल्टा कर दिया। पिंकी को भी अपने रंग में रंग लिया।” कहकर सासू माँ रसोई में जाने लगी।

“अरे मम्मी जी, अभी तो इतना समझाया, कि अपने मन में क्लेश मत करो। केवल खुश रहो और खुद से प्यार करो।खाना तो मैं बना लूँगी।”

आज तक पिंकी अपनी भाभी के खुश रहने का राज ढूँढती रहती थी, उसके चेहरे के ग्लो के देखकर परेशान थी। लेकिन अब उसे भी ये राज समझ आ गया था क्योंकि आज से वो भी खुद की फेवरेट थी।

सखियों कैसी लगी मेरी कहानी। लाइक और कमेन्ट करके बताइए।

धन्यवाद

चेतना अग्रवाल

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