हमसफ़र- डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

नीरज  पत्नी के इंतजार में बाल्कनी में बैठकर उड़ते हुए बादल और ढ़लते हुए सूरज की लुका-छिपी देखते हुए सोच रहा है कि उसकी जिन्दगी में भी काफी उतार-चढ़ाव आएँ,परन्तु रिचा जैसी हमसफ़र पाकर उसकी जिन्दगी खुशगवार हो उठी।जीवन की आपाधापी में से समय निकालकर एक महीने पर अपनी हमसफ़र रिचा से मिलने आ ही जाता है।उसकी पत्नी रिचा एक डाॅक्टर है।उसके अस्पताल से  लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।रवि रिचा की जिम्मेदारियों को भली-भाँति समझता है,परन्तु रिचा ने ही फोन कर कहा था -” नीरज!शाम की चाय साथ पियेंगे!”

इसी कारण वह रिचा का इंतजार कर रहा है।दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं को भली-भाँति समझते हैं।रिचा बच्चों के साथ दिल्ली में रहती है,नीरज नौकरी के सिलसिले में जगह-जगह घूमता रहता है।शादी के बीस बरस बाद भी दोनों सच्चे हमसफ़र बने हुए हैं।आपसी प्यार और समझदारी ने उनके दाम्पत्य-जीवन की नींव को पुख्ता कर दिया है।

 

कुछ समय बाद  रिचा अस्पताल से घर आती है।नौकर को चाय बनाने कहकर फ्रेश होने चली जाती है।फ्रेश होने के बाद निढ़ाल-सी सूरज के पास सोफे पर बैठ जाती है।सूरज उसके हाथ अपने हाथ में लेकर पूछता है -” रिचा!आज बहुत देरी हो गई?कुछ परेशान-सी लग रही हो?”

रिचा सूरज की आँखों में देखकर कहती है -“सूरज!मुझे लगता था कि हमारा समाज बदल चुका है,परन्तु जाति-पाँति लेकर जो विचार पहले थे,वे अभी भी विद्यमान हैं!”

सूरज -“रिचा!आज ऐसा क्या हो गया ,जो तुम्हें बीस साल पुरानी बातें याद आ गईं?”

रिचा हाथ में चाय का प्याला पकड़े हुए नीरज को बताती है कि आज अस्पताल में एक ऑनर किलिंग का मामला आ गया।परिवारवालों ने ही दोनों को मारकर फेंक दिया था।लड़के की तो मौत हो चुकी थी,परन्तु लड़की की साँसें चल रहीं थीं।किसी ने अस्पताल में लाकर भर्ती करवा दिया।परन्तु अत्यधिक रक्तस्राव होने के कारण लड़की को भी मैं नहीं बचा पाई,उसकी भी मौत हो गई। उसी में पुलिस आई थी,जिसके कारण देरी हो गई। कहते-कहते रिचा की आँखें भर जाती हैं।नीरज उसके कंधे को सहलाते हुए कहता है-” रिचा! छोड़ो इन बातों को।तुम अपना दिल उदास मत करो।”

रिचा -” नीरज !कैसे भूल जाऊँ,अपने बीस साल पुराने अतीत को ?

उसकी यादें आज सन्मुख होकर मेरे रोम-रोम को सिहरा गईं है!”

रिचा आँखें मूँदकर नीरज का हाथ पकड़े हुए  अतीत की गलियों में विचरण करने लगी।

 

नीरज और रिचा दोनों एक ही हाई स्कूल में पढ़ते थे।दोनों के गाँव अलग-अलग थे।दोनों पढ़ने में काफी कुशाग्र  बुद्धि के थे।पहले स्कूलों में लड़के लड़कियाँ आपस में बातें नहीं करते थे।एक बार स्कूल के लड़के गाना गाकर रिचा को छेड़ रहे थे,उसी समय आकर  रिचा के कारण नीरज उन लड़कों से उलझ पड़ता है।उस दिन से दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं।दसवीं पास  करने पर दोनों का दाखिला शहर के एक ही काॅलेज में हो जाता है।नीरज को गणित में रुचि थी और रिचा की बायोलाॅजी में।दोनों के  चंचल युवा मन काॅलेज की दहलीज पर मन में नए सपनों  के साथ कुछ डर,कुछ भय,झिझक लिए हुए पहुँचा।अनजान शहर में जीवन के एक नए पड़ाव में जाने की उत्सुकता से दोनों एक-दूसरे के करीब आने लगें,परन्तु दोनों अपने भविष्य के प्रति सजग भी थे।

 

 समय के साथ  नीरज का इंजिनियरिंग काॅलेज में दाखिला हो गया और रिचा का मेडिकल कॉलेज में।दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए, परन्तु अलग होने पर भी  दोनों के मन में प्यार की कोपलें फूटने शुरु हो गईं थीं।बेहतर जिन्दगी के सपने के हरे-भरे पत्ते एक-दूसरे के मन में उगने लगें।कुछ समय बाद  दोनों ने एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया और पढ़ाई पूरी होने के बाद  हमसफ़र बनने का वादा किया।जब छुट्टियों में दोनों मिलते,  तो आपस में ढ़ेर सारी बातें करतें,साथ वक्त गुजारते।आनेवाली जिन्दगी के सुनहरे ख्वाब बुनतें।दोनों महसूस करते कि दोनों एक-दूजे के लिए ही बने हैं।उनकी सोच और जिन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैया एक-सा ही था।दोनों का प्यार  दिन-ब-दिन परवान चढ़ रहा था।

 

उस समय समाज की सोच में  लड़की की शिक्षा लेकर थोड़े बदलाव होने शुरू हो गए थे,परन्तु जाति-पाँति की बेड़ियाँ समाज को पूर्णरूपेण जकड़ी हुईं थीं।पढ़ाई पूरी होने के बाद  जैसे ही दोनों ने परिवार  में अपनी शादी की बात की ,तो मानो समाज और परिवार में भूचाल उठ खड़ा हुआ। नीरज कट्टरपंथी ब्राह्मण परिवार का था और रिचा दूसरी जाति की थी।इस शादी को दोनों के गाँववालों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया।नीरज घरवालों और समाज का डटकर मुकाबला करने को तैयार था।वह किसी कीमत पर रिचा को अपना हमसफ़र बनाना चाहता था।इन सब परिस्थितियों से घबड़ाकर रिचा पूछती है -” नीरज!दोनों के गाँववाले मरने-मारने पर उतारू हैं।अब हमारे प्यार का क्या होगा?”

नीरज -” रिचा!तुम घबड़ाओ मत।कुछ दिन गाँव का माहौल सुधरने का इंतजार करता हूँ।नहीं सुधरने पर हम कोर्ट  मैरिज कर लेंगे।मैं जाति-पाँति और ऊँच-नीच के दकियानूसी बंधनों को नहीं मानता हूँ।”

गले मिलकर दोनों कुछ दिनों के लिए  एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।

 

दोनों को विश्वास था कि  आखिरकार गाँववाले उनके प्यार को मंजूरी दे देंगे,परन्तु हुआ ठीक इसके विपरीत। दोनों के गाँववाले झूठी इज्जत का सवाल मानकर एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। किसी भी कीमत पर अन्तर्जातीय शादी नहीं होने देना चाहते थे।

 

परिस्थितियों की नजाकत समझकर रिचा उदास-सी बैठी थी।उसी समय डाकिए  ने आकर रिचा के हाथ में एक चिट्ठी थमा दी।खत हाथ में लेते ही उसमें नीरज की भीनी खुशबू का एहसास हुआ। उस खुबसूरत लिफाफे में नीरज ने कोर्ट मैरिज का संदेश भेजा था।पत्र पढ़कर एक ओर जहाँ रिचा का दिल बल्लियों की तरह उछल रहा था,वहीं दूसरी ओर परिवार और समाज की नाराजगी का भय भी सता रहा था।उस समय प्रेम-विवाह ही सबसे बड़ा गुनाह था,उस पर अन्तर्जातीय विवाह तो समाज के किसी हालत में मान्य नहीं था।

 

  कुछ समय पश्श्चात्  मिलने पर   नीरज ने रिचा के डर को दूर करते हुए कहा -“रिचा! कोर्ट मैरिज से घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।हम दोनों शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं।परिवार और समाज भी बाद में मान ही जाऐंगे।”

कुछ दिनों बाद दोनों ने कोर्ट मैरिज कर लिया।नीरज के अटूट  प्रेम,विश्वास और सुलझे हुए व्यक्तित्व ने रिचा की जिन्दगी में चार चाँद लगा दिए। नीरज जैसा हमसफ़र पाकर रिचा खुद को भाग्यशाली समझती थी,परन्तु दोनों के मन में परिवार के आशीर्वाद की कसक बनी हुई थी।कुछ समय बाद उन्हें महसूस हुआ कि गाँव का वातावरण सामान्य हो चुका है,तो दोनों परिवार  से मिलने गाँव के लिए निकल पड़े।

 

गाँववालों को उनके आने की भनक लग चुकी थी। दोनों के गाँववालों ने आपस में गुपचुप तरीके से फैसला लिया था कि दोनों को गाँव में घुसने से पहले ही मार दिया जाएगा। उस समय फोन की असुविधा के नीरज और रिचा को गाँववालों के  भयानक इरादों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।इस कारण शाम

 में वे लोग गाँव के लिए निकल पड़े।रास्ते में एक आदमी ने उन्हें गाँववालों के वीभत्स इरादों की जानकारी दी,जिसे नीरज की माँ ने गुपचुप रुप से भेजा था।आखिर माँ अपने बच्चों की बलि होते हुए कैसे देख सकती थी!परन्तु तबतक काफी देर हो चुकी थी।गाँववाले झुंड में हाथों मेंलाठी,तलवार, फरसे वगैरह लिए आगे बढ़ रहें थे।नीरज और रिचा पूरी तरह घिर चुके थे।उन्हें अपनी जान बचाने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था।संयोग से रात हो गई  थी,अंधेरा पसर चुका था। नीरज सूझ-बूझ दिखाते हुए रिचा का हाथ पकड़कर जल्दी से गाड़ी से उतर गया और दूर-दूर तक फैले हुए मक्के के खेत में जा घुसा।दोनों के शरीर भय से काँप रहें थे।दोनों अपनी साँसों के उतार-चढ़ाव  को काबू में कर दम साधकर बैठे हुए थे।उस दिन अंधेरी रात उनके लिए  वरदान साबित हो रही थी।रह-रहकर कुत्ते की भौंकते की आवाजें और पक्षियों की फड़फड़ाहट उनके शरीर का रक्त जमाने के लिए काफी था।दोनों एक-दूसरे का हाथ  थामे बस ईश्वर की प्रार्थना कर रहें थे।एक समय तो मानो उनकी साँसें ही रुक गईं थीं।गाँववाले  गालियाँ बकते हुए टॉर्च की रोशनी जलाते हुए करीब ही पहुँच चुके थे।उनकी तो बस चीखें ही निकलने वाली थीं।तभी किसी ग्रामीण ने कहा -” अरे!शहरी बच्चे कहाँ खेतों में घुसते?चलो बाहर ही ढ़ूँढ़ते हैं!”

 

बाहर निकलकर भी गाँववाले दोनों को नहीं खोज पाएँ।नीरज और रिचा को न पाकर अगली बार पकड़ने का वादा कर गाँव लौट गए। नीरज और रिचा सुबह के इंतजार में रातभर खेतों में ही छुपे रहें।वह रात उनकी जिन्दगी की सबसे भयावह काली लम्बी रात थी।आखिरकार ऊषा की लालिमा क्षितिज पर फैलने लगी।पक्षियों के कर्णप्रिय कलरव सुनाई देने लगें,तो दोनोंहल्के अंधेरे में खेतों से निकलकर शहर वापस लौट गए। दोनों के मन में भय इस कदर समा चुका था कि दोनों अपना शहर छोड़कर जल्द ही दिल्ली  चले गए, वहीं नौकरी करने लगें।इस बीच दोनों दो बच्चों के माता-पिता भी बन गए। परिवारवालों ने उन्हें माफ भी कर दिया,परन्तु उस रात का खौफ जब -तब सपने में आकर रिचा को डरा जाता है।उसी खौफ को यादकर आज रिचा फिर से रो पड़ी।नीरज उसके आँसुओं से भींगे चेहरे को देखकर प्यार से कंधों को थपथपाते हुए कहता है-” रिचा!हमारा प्यार कोई छलावा नहीं था,जो अंकुरित प्यार के पौधे कुम्हला जाएँ!देखो!आज भी वे पेड़ बनकर लहलहा रहें हैं।”

रिचा नीरज की आगोश में सिमटते हुए कहती है-“नीरज!तुम तो मेरे सच्चे हमसफ़र हो।तुम्हारा प्रेम -प्रकाश मेरी जिन्दगी के अंधेरे को दूर करता है।तुम्हारे जैसा हमसफ़र अगर साथ हो ,तो जिन्दगी की सारी परेशानियाँ छोटी लगतीं हैं।”

दोनों के होठों पर मुस्कान खिल जाती है।

 

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

#हमसफर

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