हमसफ़र- श्वेता सोनी : Moral Stories in Hindi

समय को भी पंख लग जाते हैं क्या, बेटियां कैसे देखते-देखते बड़ी हो जाती हैं ना,,अमलतास के खिलने का मौसम यही अप्रैल, मई हीं तो होता है और इसी महीने में अपर्णा पैदा हुई थी, तभी शिवानी ने आँगन में अमलतास लगाया था.

 इस बार उसका बीसवां जन्मदिन मनाने की तैयारी है.तैयारी तो बस पूछिए मत.. कितना भी मान करो पर इस लड़की ने तो सामानों की फेहरिस्त बना रखी है, कितनी खुश है ना वो.. शायद इतनी ही खुश शिवानी भी थी जब अपर्णा ने उसकी गोद में पहली बार किलकारी मारी थी.

 अपर्णा उसकी पहली संतान नहीं,,वह उसकी पहली अनुभूति थी, सुख की अनुभूति..

 नवरात्रि के आसपास हुई थी.. मां ने उसका नाम पार्वती जी के एक नाम पर धर दिया. मां बड़ी धार्मिक थीं कहती बच्चों के नाम देवी देवता के नाम पर रखो तो वह नाम बार-बार बुलाने से अपना कंठ शुद्ध होता है, बच्चों में भी वैसे ही संस्कार आते हैं.

मां से बहुत बार शिवानी ने माता पार्वती की कथा सुनी है बचपन में, कैसे महादेव को अपने मन में बसा कर उन्हें पाने की प्रबल इच्छा से पार्वती जी ने वन में जाकर, राज्य सुख त्याग कर, घोर तपस्या की थी, हर बार पहले से अधिक कठोर  करती गई थीं अपनी तपस्या, और इसी क्रम में उन्होंने कई वर्षों तक केवल पत्ते पर निर्वाह किया था इसीलिए उनका नाम अपर्णा पड़ा.

उनके पिता हिमालय और माता मैना ने उनको वन में जाकर अपना वर पाने की इच्छा से तप करने की स्वीकृति… न सही सहजता से.. मगर दे तो दी थी ना.

 शिवानी कभी-कभी माँ से हँसते हुए कहती,

 ” मां पार्वती जी वाला समय हमारे समय से बहुत आगे लगता है और अपना समय उसकी तुलना में बहुत पीछे मालूम पड़ता है “

“क्यों” माँ पूछतीं.

“अरे, अपने मन का वर पाने के लिए तपस्या करना तो बहुत दूर की बात है माँ, अब की बेटियाँ तो अपने मन चाहे वर का नाम भी लेते हुए भय से काँपती हैं,

तब के माता-पिता आजकल के माता-पिता से कितने आज़ाद ख्याल थे ना”

” हां,,बड़ा” माँ बुरा सा मुँह बनातीं “क्यों.. अगर मैं भी”

” चुप रह तू, चल जा,गेहूँ की बोरी आँगन  में रख आ”

 मां के चेहरे पर चिंता की एक लकीर उभर आती,इस लकीर के उभरने का सफ़र सदियों का रहा है जब से माँ नाम की शख्सियत बनी है,तब से।            शिवानी काम में लग जाती मां आँख बचाकर उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती थीं, ऐसा करते हुए शिवानी ने उन्हें कई बार देखा था. माँ उसके जीवन में किसी शिव के आ जाने के भय से सदैव सशंकित रहतीं.

    शिवानी का ब्याह हो गया बड़े ही सुयोग्य वर से.

 हर शिवा को शिव चुनने का अधिकार नहीं होता,,शिवानी ने यही सोचकर उस कहानी को वहीं समाप्त कर दिया।

 हर बेटी जानती है कि हर मां के जीवन में वह शिव कहीं ना कहीं होता जरूर है,

जिसको तप के द्वारा प्राप्त कर लेने का साहस नहीं कर पाई वह और हर दक्ष ने अपनी कन्या का विवाह अपनी इच्छा से कर खुशी-खुशी उसे विदा किया। 

 यह क्या सोचने लगी वह..

अपर्णा ने तभी आकर उसके ध्यान को भंग कर दिया..ध्यान में वो, वह छाया पीछे छोड़ आई जिसके होने से उसका जीवन मालिन हो सकता था.

” मम्मा क्या तुमको भी कभी कोई अच्छा लगा था”.. 

शिवानी ने अपर्णा के गालों पर एक प्यारी सी चपत लगा दी.

 मन में सोचती रही,, ये आजकल के बच्चे तो ऐसी बातें करने में जरा भी सकुचाते नहीं हैं, हम तो अपने समय में इस बात को किसी दूसरे के संदर्भ में भी छेड़ने से कितना लजाते थे..

क्या सचमुच यह कोई ऐसी बात थी, कोई ऐसी शर्म की बात  जिस पर हम आंखें नीची कर लेते थे.

 जिस एक बिंदु पर पूरी सृष्टि थमी हुई है..वह प्रेम लज्जा की वस्तु कैसे ही हो सकता है…इसी प्रेम ने तो माता गौरी को महादेव के निमित्त तप करने को विवश कर दिया था..

वह प्रेम जिसकी सार्थकता स्वयं महादेव ने सिद्ध की है, वह गलत, अनैतिक और मलिन कैसे हो सकता है.

शिवानी ने झटक कर दूर कर दिया अपने इन ख्यालों को..वह भी क्या सोचने लगी…बक्से में से आज वही गुलाबी बनारसी साड़ी निकालकर उसे देखने का मन हुआ उसका… मगर फिर इस मन का स्थगन करके घर के और कामों का लेखा-जोखा लेने लगी. अनिच्छित विवाह..जिस पर जीवन कट जाता है, बस जीवन का खालीपन भर नहीं पाता..

विवाह तो एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के साथ संपूर्ण होने की प्रक्रिया है ना.. मगर शिवानी की शादी तो एक समझौता बनकर ही रह गई,कई बार बिना देखे,सोचे, समझे किसी को चुन लेने की टीस हमें सारी उम्र बर्दाश्त करनी होती है.

 अपर्णा के पापा एक अच्छे पति थे मगर वैवाहिक जीवन को सफल तो तभी माना जाता है, जब हमें ना पति मिले ना पत्नी,.. हमसफ़र.. मिले.

 एक दिन अपर्णा अपनी किताबों में सर गड़ाये पढ़ाई कर रही थी मगर बहुत देर से वह जिस पन्ने पर अटकी थी उससे आगे बढ़ ही नहीं रही थी, शिवानी के अंदर से वह सशंकित माँ झाँकने लगी जिसकी बेटी शादी की उम्र में किताब के एक ही पन्ने पर नजर गड़ाए हो और  उसे होश ना हो पन्ना पलटने का…

 चुपके से वह उसके पास गई,,देख कर जैसे उन्हें सदमा लगा हो..

“अपर्णा,यह क्या अनर्थ कर दिया तुमने”

” मां” अपर्णा चौंक उठी.

 शिवानी का सारा रोष उसकी आंखों के पनीलेपन में उभर आया..मन ही मन डर गई…अब क्या होगा… जीवन भर का अधूरापन… अधूरा साथ… कैसे जीएगी मेरी बेटी… क्या एक दूसरी शिवानी तैयार हो रही है..

 बहुत देर तक वह दोनों चुप रहे.

फिर अपर्णा ही बोली

” मम्मा,मैं उसे बहुत चाहती हूं” शिवानी ने उसे घूर कर देखा,जी किया,, एक थप्पड़ लगा दे,,फिर सोचा.. कि काश यह थप्पड़ खाने का साहस वह खुद कर पाई होती.

उसकी पसंद अच्छी थी. शशांक उसके साथ पढ़ता था.लेकिन प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था.

 दोनों का प्यार चार दिन का बुखार वाला प्यार नहीं था. शशांक नौकरी ले लेने के बाद ही उसे दुल्हन बनाना चाहता था.

दोनों ने मिलकर कितनी ही सारी भावी योजनाएं बना रखी हैं, यह शिवानी को पता चला तो वह अवाक रह गई.

“बेटा, जब तक शशांक को नौकरी नहीं मिलती, तब तक का तुम्हारा इंतजार.. क्या पापा की इस पर सहमति मिलेगी, मुझे तो उनसे बातें करते हुए भी डर लगता है और यह इतनी बड़ी बात..”

शिवानी ने अपर्णा से कहा और अपर्णा का जवाब था, 

“मां,अपने शिव को पाने के लिए मुझे भी तपस्या की आज्ञा दे दो वही आज्ञा, जो तुम अपने लिए अपनी मां से ना ले सकी, प्लीज माँ.

 

अपर्णा को देखती ही रह गई शिवानी. उसकी पसंद और शादी की तो नहीं मगर उसके बाहर जाकर एम ए करने की बात पर जैसे तैसे मना लिया था उन्होंने अपर्णा के पापा को.

 कितने सारे दिन बीत गए गौरी अपने शिव की तपस्या में लीन रही और आज उसकी हल्दी,कल विवाह है,, शशांक के साथ.

 हमसफर तो सभी को चाहिए,सबको मिलता भी है मगर मन का मिल जाए तो राहें और राहों की मुश्किलें.. दोनों बहुत आसान हो जाया करती हैं.. है ना.

 आँगन में लगाया अमलतास पीले पीले फूलों से भर गया था मानो अपर्णा के मन चाहे वर को पाने का साक्षी बन रहा हो.

#हमसफर 

श्वेता सोनी

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