गृहलक्ष्मी वो जो रिश्ते सहेजे – संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” अरे शकुन्तला क्या क्या बना रही हो इस बार दीवाली पर!  इस बार हमारी गृहलक्ष्मी हमारी बहू रिया की पहली दीवाली है तो कुछ तो खास होना चाहिए इस बार !” घनश्याम जी अपनी पत्नी से बोले।

” कुछ भी बने पर आपको तो नहीं मिलेगा पता है ना शुगर कितनी बढ़ी हुई आईं है आपकी !” शकुन्तला जी बोली।

” ऐसे कैसे इस बार थोड़ी मिठाई तो चखूंगा मैं आखिर मेरे पोते रितेश की शादी के बाद पहली दीवाली जो है !” घनश्याम जी बोले।

” हां आपको तो मीठा खाने का बहाना भर चाहिए बस रितेश की शादी में ही चोरी चोरी इतना मीठा खा गए थे कि अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था भूल गए !” शकुन्तला जी बोली।

” हां पिताजी आपको मीठे से बिल्कुल दूर रहना है अब डॉक्टर की ये हिदायत थी !” घनश्याम जी का बेटा विशाल बोला।

” अरे बेटा अब जिंदगी ही कितनी है इसे तो जीने दो क्यों तरस तरस कर मरूं !” घनश्याम जी बोले।

” कैसी बात करते हैं आप पिताजी आपको तो अभी रितेश के बच्चे खिलाने हैं । ” विशाल की पत्नी संध्या बोली।

” ऐसी जिंदगी का क्या फायदा बहू जब मन मार मार कर जीना पड़े …खैर तुम बनाओ पकवान और मिठाई मैं तुम लोगों को खाते देख ही खुश हो लूंगा !” घनश्याम जी बोले और शाम की सैर पर निकल गए।

घनश्याम जी और शकुन्तला जी का भरा पूरा परिवार है एक बेटा विशाल उसकी पत्नी संध्या एक बेटी विनीता जो पास के शहर में ही ब्याही है। पोती की भी शादी हो चुकी और अभी चार महीने पहले ही विशाल के बेटे रितेश की शादी रिया से हुई है। एक हंसता खेलता परिवार है जिसमें बड़ों का आदर और छोटो से प्यार है। 

घनश्याम जी जब वापिस आए तो रिया उनके लिए चाय लेकर आई ” दादाजी चाय पी लीजिए !” 

” आ बैठ बेटा थोड़ी देर तुझे तेरे ससुराल की दीवाली कैसे मनती है वो बताता हूं..पता है जब तेरी दादी इस घर में आईं थी तो कुल पंद्रह बरस की थी पर पकवान और मिठाई क्या गजब बनाती थी दूर से ही उसकी खुशबू से मैं खींचा चला आता था रसगुल्ले , बर्फी , इमरती साथ में नमकपारेे , मठरी कचौड़ी आह क्या स्वाद होता था !” घनश्याम जी बोलते बोलते ही मानो चटखारे ले रहे हो पकवानों के।

” हां दादाजी मैं भी दादीजी के साथ मिलकर आज सब बनाऊंगी उनके जैसे अच्छा तो नहीं बना सकती पर सीखने की कोशिश करूंगी !” रिया बोली।

” पर बेटा अब मुझे तो तेरी दादी और तेरे सास ससुर कुछ नहीं खाने देते ये कमबख्त शुगर ने जीभ का जायका ही छीन लिया है अब तू बता दीवाली बिन मिठाई हो सकती क्या ?” दादाजी लाचारी से बोले।

रिया कुछ बोलने को ही हुई की उसकी सास संध्या ने आवाज़ दे बुला लिया । पर रिया समझ गई दादाजी को मिठाइयों से कुछ ज्यादा ही प्यार है।

सभी औरतों ने मिलकर मिठाई और पकवान बनाए दीवाली के लिए फिर रिया और संध्या बाज़ार से सबके लिए कपड़े और अन्य सामान ले आई।

दीवाली की शाम सभी तैयार हो पूजन को बैठे रिया का इंतज़ार कर रहे थे जो रसोई मे लगी हुई थी। दादाजी की निगाह बार बार वहां रखी मिठाइयों पर जा रही थी। थोड़ी देर बाद वो एक प्लेट मे कुछ मिठाइयाँ लेकर आई तो सबने पूजा शुरु की।

आरती के समय सभी आंख मूंदे थे कि दादाजी ने बर्फी उठाने को हाथ बढ़ाया।

” अरे कुछ शर्म करो क्या बच्चों जैसी हरकतें कर रहे हो ऐसे कोई चोरी करता है क्या मिठाई की !” शकुन्तला जी उनका हाथ पकड़ कर बोली।

” तुम ऐसे खाने नहीं देती तो क्या करूं !” घनश्याम जी बोले।

” खाने तुम्हारी भलाई के लिए ही भी देती अभी चुपचाप पूजा करो समझे !” शकुन्तला जी बोली पास खड़ी रिया इस मीठी झड़प पर मुस्कुरा दी।

” लीजिए दादाजी प्रसाद !” पूजा के बाद रिया घनश्याम जी को लड्डू देती हुई बोली।

” नहीं मुझे नहीं खाना ये है ना तेरी दादी ये चिल्लाएगी मुझ पर !” घनश्याम जी इनकार करते हुए बोले।

” कोई नहीं चिलाएगा दादाजी आप आज जी भर कर मिठाई खाइए ये लड्डू और बर्फी सारे आपके हैं !” रिया मुस्कुराते हुए बोली।

” रिया बेटा क्या कर रही हो ये …ये सब पिताजी के लिए जहर बराबर हैं याद नहीं तुम्हारी शादी में कितनी तबियत खराब हुई थी इनकी !” विशाल रिया से बोले।

” पापा जी कुछ नहीं होगा आप खाने दीजिए दादाजी को क्योंकि मैने ये सब शुगर फ़्री बनाया है खास दादाजी के लिए !” रिया ये बोल ही रही थी कि दादाजी ने फटाफट लड्डू उठा मुंह में रख लिया मानो उन्हें डर हो की उनके सामने से ये सब हटा ना लिया जाए।

दादाजी की इस हरकत से सब हंस पड़े पर रिया की बात पूरी होते ही दादाजी की आंख में आंसू आ गए।

” अरे दादाजी क्या हुआ खाइए ना मिठाई !” रिया उनके मुंह में बर्फी का टुकड़ा डालती बोली।

” जीती रह मेरी बच्ची जो तूने इस बूढ़े के लिए इतना सोचा !” घनश्याम जी खुशी के आंसुओं से बोले।

” दादाजी आप हमारे बड़े हैं आपकी खुशी हमारी खुशी और आपके बिन हम कैसे ये सब खा सकते थे अब ये आंसू नहीं चेहरे पर हंसी लाइए वैसे भी बूढ़े होंगे आपके दुश्मन दादाजी आप तो इतने हैंडसम है ।” रिया बोली।

” देख शकुन्तला मेरी रिया बहू सच मे गृहलक्ष्मी है जिसे sb घर वालों की फ़िक्र है । और ये तुझसे और तेरी संध्या बहू से ज्यादा समझदार है तुम दोनों तो मुझे तरसा तरसा कर ही मार देती !” घनश्याम जी मिठाई खाते हुए पत्नी को चिढ़ा कर बोले।

दादीजी ने चुपचाप पल्लू से अपने आंसू पोंछ लिए जो शायद पति को खुश देख खुशी के थे।

दादाजी रिया को आशीर्वाद देते नहीं थक रहे थे विशाल और संध्या को अपनी बहू पर गर्व हो रहा था जो वाकई मे गृहलक्ष्मी है और  वो रिश्तों को सहेजना जानती है रितेश भी खुश था रिया जैसी बीवी पा।

दोस्तों इंसान बुढ़ापे में बच्चा बन जाता है और वो चीजे खाने को मचलता है जो उसे नुकसान दे। पर घर के बच्चे थोड़ी सी समझदारी से उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं।

कैसी लगी आपको ये प्यारी सी फैमिली और हमारी प्यारी सी गृहलक्ष्मी रिया?

आपके जवाब के इंतजार में आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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