टेंशन मत लीजिए मुझे इस सब की आदत है – पूजा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज तो अरुण ने हद कर दी कितने दिनों बाद पापा हम लोगो से मिलने आए थे मैने उन्हे आग्रह करके रोक लिया था कुछ समय साथ रहने के लिए ।उनका पंद्रह दिन हम लोगो के साथ रहना ही अरुण को भारी लगने लगा ।

  पापा के साथ होने पर मैं भूल जाती हूं की मैं अब शादी शुदा एक बच्चे की मां हूं । मुझे अपने वही पापा जो मेरे हीरो है मेरे लिए कभी चाकलेट कभी जलेबी लाने वाले मुझे हर खुशी देने वाले मेरी छोटी छोटी चीजों की प्रशंसा करने वाले मेरे पापा ।

    मैं उन्हें वह सब देना चाहती थी जो उन्होंने मुझे दिया 

अरुण ऑफिस चले जाते मैं पापा को बॉम्बे की खास खास जगह ले जाती कभी महा लक्ष्मी टैम्पल कभी सिद्धविनायक कभी चौपाटी इस्कॉन आर्यन भी नाना के साथ बहुत खुश था । 

  अरुण के शुष्क स्वभाव की वजह से मेरे घर मेहमानों का आना वैसे भी कम होता है बॉम्बे वाले बस अपने लिए जीते है हम कानपुर वाले के घर अगर महीने में एक दो मेहमान नही आए तो बड़ा खालीपन लगता है ।हमारे घर तो अच्छा खाना मेहमान के आने पर ही बनता था ।

     पनीर की सब्जी पूड़ी तभी बनती जब फूफा जी ,मामा जी दादा जी के भाई बहिन कोई रिश्तेदार आते थे और जाते समय हमारे पॉकेट मनी में इजाफा हो जाता लो एलपी एलपी पीपी पीएमथा उनके दिए कुछ रुपए से । 

      अरुण एक दो दिन तो पापा के साथ अच्छी तरह रहे फिर वह कुछ खीज रहे थे और मुझे बात बात में कुछ सुनाने लगे मेरे काम में कमियां निकालने लग गए मुझे इनका यह व्यवहार सहने की आदत हो गई है उनके अंदर के पुरुषत्व को इसी में संतोष मिलता है अपनी पत्नी को नीचा दिखाने में अपने को बॉस  बनने में ।

     जबकि उनका ये घर मेरी दम पर साफ सुथरा और सही चल रहा है मैं नौकरी नहीं करती परंतु अपने भर का तो ट्यूशन देकर कमा ही लेती हूं।

    मम्मी के नही रहने से पापा कितने अकेले हो गए है यह मैं अच्छी तरह जानती हूं ,भाई भाभी के साथ वह देखने में खुश लगते हैं परंतु मन की व्यथा सबसे नही कह पाते ।

मेरे साथ बैठकर वह मम्मी की बाते करते हैं ,उनकी बीमारी में पापा ने उनकी बहुत सेवा की थी उन्हें वह हर सुख देना चाहा था जो वह नौकरी की व्यतता में नही दे पाए थे ।

परंतु जब भूख है तब रोटी नहीं जब रोटी है तब भूख नही   

वाली बात हो गई ,मम्मी तब से बीमार रहने लगी थी किडनी फेल होने और डायलिसिस के चक्कर में ही पड़ी रही ।वह भी पापा को परेशान देखकर बहुत निराश होती थी पता नही क्यों वह जीने की आस छोड़ बैठी थी हम सब को छोड़ कर चली गई ।

          पापा अरुण के इस तरह के व्यवहार से थोड़े दुखी हो जाते उनको लगता मेरे यहां रहने से उसे दिक्कत है पापा को लगने लगा मुझे अब घर चले जाना चाहिए परंतु मैं उन्हें रोक लेती थी ।पापा ये अरुण की आदत है झल्लाने की आप परेशान मत होइए चिल रहिए मुझे इस सबकी की आदत है ।

   एक दिन अरुण कहने लगे  “तुम्हारे पापा यहा कब तक रहेंगे क्या बेटे बहू ने तुम्हारे पास भेज कर अपने को मुक्त कर लिया ।

    अरे धीरे बोलिए  ,पापा सुन लेंगे उन्हें बुरा लगेगा ,तुम्हारे पापा आते हैं तो क्या मैं कहती हूं की वह कब तक रुकेंगे मैं ही उनका ध्यान रखती हूं तब तो आपको बुरा नही लगता है उनका यहां रहना। आप से ज्यादा मैं ही उनका ख्याल रखती हूं ।

पापा ने शायद उनकी बात सुन ली थी उन्होंने अगले दिन की फ्लाइट की टिकिट करवा ली थी कानपुर जाने की सुबह नाश्ते की मेज़ पर बोले  ” अरुण बेटा आप ऑफिस जा रहे हैं मैं चार बजे की फ्लाइट से कानपुर जा रहा हूं ,आपके साथ रहकर अच्छा लगा अब देखिए कब मिलना होता है समय निकाल कर कानपुर आना ।

      अरे पापाजी आपने अचानक जाने का क्यों कर लिया सन्डे को जाते मैं आपको एयरपोर्ट ड्रॉप कर देता आप अभी रुकिए ।

   नही बेटा तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में सैटरडे सन्डे ही तो तुम्हे मिलता है उसमे भी तुम फ्री नही होते बॉम्बे में लोगों के पास समय की कमी है कहते हुए पापा ने चाय का घूंट 

अरुण के कहे शब्दों को याद कर आंसुओं के साथ अपने अंदर पी लिया । 

    बेटी पिता की फिक्र करने में पीछे नहीं होती वह पापा की मां बन जाती है उन्हे बच्चे की तरह खयाल रख सकती है परन्तु दामाद बेटा नही बन सकता उसको अपने घर में अपने ही पापा अच्छे लगते हैं ।

    अरुण के जाने के बाद मैने कहा  ,पापा क्या बात है आप उनकी बात का बुरा मान गए उनका स्वभाव ऐसा है पर दिल से बुरे नही हैं आपकी इज्जत करते हैं ।

   पापा मुझे इस सब की आदत हो गई है उनके इस तरह बोलने चिल्लाने की परंतु मैं खुश हूं वह दिल के अच्छे हैं।

        पापा  रोते हुए बोले “पुन्नो तू मेरी बेटी नही मेरी मां है भाग्यशाली लोगों को ही बेटियां होती है जो अपने पापा के लिए इतनी फिक्रमंद होती हैं कहकर पापा ने मुझे गले लगा लिया बेटा तू खूब खुश रहे मेरी यही दुआ है ।

       आज मैं भी पापा में मम्मी का स्नेह पाकर रो पड़ी 

मैं विवश थी मैं लड़की हूं अपने पापा को चाहकर भी अपने साथ सम्मान के साथ नही रख सकती । समाज में पुरुषो ने ही नियम बना लिए की कन्यादान करने वाले पिता का बेटी पर कोई अधिकार नहीं रहता और न ही बेटियां पिता के बुढ़ापे का सहारा बन पाती है इस सब

बात को बेटियो को ही समझना पड़ता है ।

      आखिर क्यों ?

      स्वरचित 

     पूजा मिश्रा  

        कानपुर

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