घर की मिठास (अंतिम भाग) – लतिका श्रीवास्तव: hindi stories with moral

hindi stories with moral : कल पापा का जन्मदिन है याद है ना आज क्या क्या करना है अरुण वीना को याद दिला रहा था गुलदस्ता कहां है!!

अरे भैया मैने तो फूलों का गुलदस्ता नहीं पूरी ये माला ही बना ली है आइए दिखाती हूं आपको कहती वीना अत्यधिक उत्साह से उसका हाथ पकड़ के कमरे में ले गई और गीले कपड़े में लिपटी माला दिखाई

यह तो बहुत सुंदर है बहुत महंगी होगी अनिमेष ने माला देखते ही कहा।

महंगी ..!!मैंने बनाई है भैया अपने बगीचे के फूलों से हंसकर वीना ने कहा ।

अनिमेष चकित था हरी पत्तियों और पीले लाल फूलों को गूथकर बनाई हाथ की कलाकारी को देख!!जैसे वीना ने अपनी  सुंदर भावनाओं को भी माला में पिरो दिया था..!तुमने खुद बनाई है।

हां भैया मां तो इससे भी सुंदर बनाती हैं उन्ही से तो सीखी है मैंने।

और ये दूसरी माला किसके लिए वीना!!

मां के लिए है भैया पापा तभी माला पहनेंगे जब मां पहनेंगी ….पापा और मां एक ही तो हैं पापा का जन्मदिन माने मां का भी जन्मदिन और मां का जन्मदिन माने पापा का भी जन्मदिन बिना मां को पहनाए पापा ये माला पहनेंगे ही नहीं वीना ने भावुक होकर कहा तो अनिमेष सोच में पड गया…!

 

ऐसा भी जुड़ाव हो सकता है क्या!! मेरी मॉम का जन्मदिन था तब तो हर कोई मॉम के लिए ही कर रहा था हर चीज मां के लिए ही की गई थी मॉम ने ही सबसे ग्रैंड होटल सिलेक्ट किया था छांट छांट कर सभी अभिजात्य वर्ग को निमंत्रण भिजवाया था .. कीमती उपहारों और अपनी शान शौकत दिखाने का सुअवसर वे खोना नही चाहते थे…पापा  मां के लिए कीमती डायमंड रिंग लेकर आए थे फिर भी मां खुश नहीं हुई थी रिंग देख कर कहा था उन्होंने.. ये छोटी सी रिंग से काम नहीं चलेगा   डायमंड का पूरा सेट लाना चाहिए था ….सब लोग हंसने लगे थे और पापा मुस्कुरा कर रह गए थे..!!

अरे भैया किस सोच में पड गए लीजिए आप ही मां को पहना दीजिएगा वीना ने हंसकर माला अनिमेष के हाथों में थमा दी थी।

नहीं वीना मैं तो सोच रहा था मुझे भी कोई गिफ्ट पापा को देनी चाहिए अनिमेष ने गंभीरता से कहा तो वीना के साथ अरुण भी खिलखलाकर हंस पड़ा…!

क्या भैया हम बच्चे लोग भला पापा को क्या गिफ्ट दे सकते हैं यही गिफ्ट है।

घर में पार्टी घर की माला सब कुछ घर में ही !! अनिमेष का आश्चर्य और लगाव बढ़ता जा रहा था।

भोर से पापा के उठने का बेसब्री से इंतजार था सबको..!!

सुबह पापा जैसे ही बिस्तर से उठ कर बाहर आए… सारे बच्चे नहा धोकर आस पास ही खड़े मिले …. पापा जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं सबसे पहले अनिमेष और वरुण ने माला पहनाते हुए कहा और उनके पैर छू लिए ….. अरुण ने फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता देते हुए पैर छू लिए तब तक वीना  सबके लिए चाय लेकर आ गई और सबसे पहली चाय पापा और मां को देते हुए हैप्पी बर्थडे पापा कहती उनसे लिपट ही गई…!

पापा तो जैसे हर्ष विव्हाल ही हो गए…. इतनी सुबह तो आज तक कोई बच्चा नहीं उठता था आज सब मेरे सम्मान में जन्मदिन के कारण ही उठे हैं और सबका स्नान भी हो गया ताजे खिले फूलों की तरह दिख रहे हैं।

अरे बच्चों जन्मदिन की ऐसी शानदार बधाई तो मुझे आज तक नहीं मिली यही तो मेरा सबसे बड़ा उपहार है ।

पापा और मां तो बस इतने में ही  गदगद हो गए थे।

शाम को बच्चों ने जिस सरप्राइज़ पार्टी का आयोजन किया था पापा और मां को इस बारे में भनक भी ना लगने दी थी।

अनिमेष ने सोचा था किसी बढ़िया होटल में पार्टी देंगे उसने सुझाव भी दिया था लेकिन तीनों भाई बहन तो कुछ और ही सोच रहे थे।

पूरा दिन सब कुछ एकदम सामान्य रोज की तरह ही चल रहा था… मां ने आज पापा की पसंद का पूरा भोजन बनाया था विशेष रूप से  मेवे वाले दही बड़े और मूंग दाल का हलवा तो अनिमेष को बहुत स्वादिष्ट लगे उसने देखा कि मां ने पापा के साथ सभी की मनपसंद एक डिश बनाई थी

शाम होते ही वरुण ने मां से कहा आप और पापा मंदिर दर्शन कर आइए तो मां खुश हो गईं हा तूने तो मेरे मन की कह दी मैं भी यही चाह रही थी ।

वरुण जानता था मां को मंदिर जाने में खास रुचि मंदिर के बाहर बैठे रहने वाले गरीब भिखारियों में रहती है आज भी मां वहां जाकर उनको रुपए कपड़े और मिठाई आदि बांटना चाह रही थीं

सब लोग मंदिर चलेंगे भगवान का आशीर्वाद लेना जरूरी है फिर वहीं भंडारा में प्रसाद ग्रहण करेंगे मां ने उत्साह से कहा ही था तभी वरुण ने तुरंत टोक दिया ..”नही मां बस आप और पापा मंदिर जायेंगे अनिमेष मंदिर ले जायेगा वहां से वापिस आइए फिर हम तीनो भी तैयार हो  जायेंगे  कहीं भी बाहर चलने के लिए…

कैसी बात कर रहा है अनिमेष बिचारा अकेले कैसे ले जायेगा तुम सब भी चलो ना मां ने संकोच से कहा।

अनिमेष तुरंत समझ गया कि मां पापा के मंदिर जाने पर वरुण लोगो को तैयारी करने का समय मिल पाएगा मंदिर काफी दूर था करीब दो घंटे तो लगने ही थे इसीलिए ऐसा प्लान  बनाया जा रहा है..वह तुरंत बोल पड़ा “अरे बिचारा क्या मां कार तो अकेले ही चलाई जाती है .. हां अब ये बात अलग है कि आप लोगों को मुझ पर भरोसा ही नहीं है या फिर मेरे साथ जाना ही नही चाहते अनिमेष ने मुंह लटकाने का अभिनय किया  तो पापा से नही रहा गया अरे नहीं बेटा तू तो हमारे वरुण अरुण सा ही है चल ले चल हमें मंदिर…. और अनिमेष के साथ बैठ दोनों मंदिर रवाना हो गए थे।

बेहद सुंदर सी रांगोली वीना और अरुण ने मिलकर मुख्य दरवाजे पर सजा दी ….. पूरे घर में फूलों के तोरण लगाए गए… बड़ा सा घर का बना केक बैठक की टेबल को सजा कर रखा गया …. आरती तिलक की थाली बहुत सुंदर तरीके से वीना ने सजा ली…!!

अब तो इंतजार था पापा लोगो के घर आने का।

अनिमेष पापा और मां को बहुत कायदे से संभाल कर मंदिर ले गया दर्शन किए और करवाए और वापिस घर ले आया… सोच रहा था मेरी मॉम मेरा मंदिर जाना सुनकर क्या प्रतिक्रिया देंगी वो भी सालगिरह के कार्यक्रम के दिन!! मॉम के अनुसार तो पार्लर जाकर सबको तैयार होना चाहिए …. उसे हंसी आ गई थी।शाम की पार्टी की क्या तैयारी घर में हो रही होगी उसे ज्यादा अंदाजा नहीं था क्योंकि उस दिन रात की गुप्त मीटिंग के दौरान उसे नींद आ गई थी ।इतना ज्यादा खाने की उसकी आदत ही नही थी जिस दिन से यहां आया है मां चार पांच बार नई नई चीज बना कर सामने बिठाकर खिलाती रहती है अनिमेष मना ही नही कर पाता है और ना ही खुद को ज्यादा खाने से रोक पाता है इतना स्वाद और भाव दोनो जो मिल जाते हैं।

बेटा क्या सोचने लगा देख घर आ गया अपना पापा ने प्यार सेटोका तो अनिमेष ने ध्यान दिया घर के सामने कार आ चुकी थी।

शाम अपने आखिरी पड़ाव पर थी रात्रि की झिलमिल आरंभ हो चुकी थी…. क्या यह अपना घर है !! अनिमेष के साथ मां पापा भी चकित हो देख रहे थे…. सारा घर नन्हे नन्हे बल्बों की झालर में लिपटा जगमगा रहा था …. मुख्य द्वार पर खूबसूरत सी बड़ी रांगोली सजी हुई थी…दरवाजे के दोनो ओर सुंदर कलश रखे हुए थे.. जैसे ही पापा घर की ओर बढ़ने लगे वरुण ने आगे बढ़ कर आरती की थाली से आरती उतारी … मां सकुचा कर हटने लगी थी मगर पापा ने तुरंत मां का हाथ पकड़ कर अपनी बगल में खड़ा कर दिया था।

आरती टीका सभी ने किया और जैसे ही अंदर पहुंचे दूसरा आश्चर्य उनका इंतजार कर रहा था…!

बधाई हो छोटे  जीवन के पचास साल बहुत सुखद साथ देने के लिए मेरे लिए तो तू अभी भी वही पांच बरस वाला छोटा सा लाडला भाई ही है जिसे मैं अपने कंधे पर बिठा कर पूरा गांव घुमा लाता था … और गुण्डुस के बगीचे में घुसकर आम चुरा लाता था तुझे बहुत पसंद थे उस बगीचे के पीले आम भी और कच्चे हरे वाले भी …. याद है तुझे …. देख आज इस खुशी के मौके पर भी मैं तेरे लिए ढेर सारे आमों की पेटी ही लेकर आ गया हूं बड़के भैया ने हुलस कर कहा तो पापा उन्हे अचानक सामने देख गले से लिपट गए अरे बड़े भैया भौजी प्रणाम आप लोग यहां कैसे कब आ गए मुझे बताया तक नहीं कहते पैरों पर दंडवत हो गए तो भौजी ने बीच में ही पकड़ कर गले से लगा लिया भैया जी बहुत बधाई तुमको आंखों में आंसू छलक आए थे।भैया जी आपकी पचासवीं सालगिरह है हमे तो आना ही था वैसे भी वरुण बेटवा का फोन दस दिनों पहले ही आ गया था हमे निमंत्रित करने के लिए साथ ही हिदायत भी कि पापा को नहीं बताइएगा …तो पापा ने  तुरंत वरुण को गले से लगा लिया था बेटा मेरे जन्मदिन का सबसे बड़ा उपहार यही है गला भर आया था उनका..!

 

भैया सालगिरह की बधाई तब तक शालू बुआ ने लपक कर पापा को फूलों की माला पहनाई और मां को सुंदर सा गुलदस्ता पकड़ा कर लिपट गईं… अरे शालू तुम भी यहां अचानक!! पापा के तो जैसे शब्द अटक गए थे अपनी दुलारी बहन को सामने देख कर।

जीजाजी बधाइयां अब आपकी भी सठियाने की उमर करीब ही आ गई है श्यामल मामाजी भी तब तक आगे बढ़ आए थे और हंसते हुए बड़े प्यार से  एक शाल से जीजाजी को लपेट लिया था..!

अरे श्याम तुम भी यहां पापा उल्लासित हो उठे।

जहां हमारी दीदी वहां हम तो आयेंगे ही आप बुलाए या ना बुलाएं पर हमारा वरुण तो हमें बुलाना कभी नहीं भूलता मामाजी पूरी मौज में थे।सब लोग हंस पड़े।

तभी कैलाश काका गोपाल काका और सूरज काका ने आकर पापा को उठा लिया आज हमारे यार ने अर्ध शतक पूरा किया है बधाई हो बधाई हो ले भाई गुलाब जामुन खा और पापा सहित सभी उपस्थित लोगों को गुलाब जामुन खिलाने लगे।

पापा तो अपने भाई बहन परिवारजनों के साथ अपने बचपन के दोस्तों के साथ ऐसे मगन हो गए जैसे बच्चे बन गए हों फिर से।

उमंग उत्साह और आत्मीयता का समुंदर लहरा उठा था गहरी डुबकियां सभी लगा रहे थे एक दूसरे का हाथ थामे गहराई का एहसास ही नही हो रहा था।

अनिमेष ठगा सा देख रहा था कितनी मिठास है कितना प्यार है इन रिश्तों में कोई दिखावा नहीं है कोई औपचारिकता नहीं है बस आत्मीयता है दिल का लगाव है ।छोटे बड़े का लिहाज सम्मान छलका जा रहा है…महसूस कर रहा था वह … दो  भाइयों का आत्मीय संबंध.. भाई बहनों का दिली स्नेह..इन चंद दिनों में वह भी इस मिठास की गहराई में डूब चुका था घर किसे कहते हैं समझ चुका था  अच्छी तरह इस बात को समझ गया था साधारण पहनावे और बिना किसी बाहरी सजावट के ये लोग ही वास्तव में सच्ची दौलत  के बेताज बादशाह हैं ..!!

यही तो है घर की मिठास।

लतिका श्रीवास्तव

2 thoughts on “घर की मिठास (अंतिम भाग) – लतिका श्रीवास्तव: hindi stories with moral”

  1. Something out of this workd but true reality if life that in rush to get something we are loosing everything and that is sweetness of a family . We are building houses leaving behind homes ..’

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