सब कुछ बिखर चुका था नीरजा की जिन्दगी में। तरुण के जाने के साथ ही सबने उसकी तरफ से आँखें फेर ली थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे जानता ही नहीं हो जिनके लिए उसने अपनी खुशियाँ कुर्बान कर दी थी। नीरजा की जिन्दगी से सारे रंग धूमिल हो गए थे। बच्चों के साथ फिर से जोड़ तोड़ कर उसने जिन्दगी जीना शुरू तो कर लिया था पर यह वैसा ही था जैसे
बिन डोर की पतंग,कब जाकर कहां गिरेगी कुछ पता नहीं। लोग आते, थोड़ी हमदर्दी दिखा कर चले जाते, पीछे रह जाता तरुण के जाने के बाद का वही खालीपन जिससे वह बचना चाहती।
लोग सहानुभूति जताने आते ,पर उसे बेधती उनकी नजरें और दबे स्वर में खुसपुसाहट,उसके हृदय को और छलनी कर देती।
लोग अटकलें लगाते –पता नहीं कैसे जिंदगी कटेगी इसकी,शादी कर लेना चाहिए इसे।
फिर खुद ही सफाई देते–दो बच्चे हैं इसके,बहुत बड़ा दिल होगा जो इससे शादी करने को तैयार होगा।
और नीरजा चारों ओर अंधेरे से घिरी हुई थी,उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने को किस दिशा में ले चले। बच्चों को भी बाप के न होने का एहसास हो चला था। वे भी धीरे धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया पहले से बिलकुल अलग हो चुकी है।
फिर शुरू हुआ नीरजा के लिए परीक्षाओं का दौर।तीन तीन लोगों के जीवन की व्यवस्था करना किसी के बूते की बात नहीं थी।
पूरे दिन वह नौकरी के सिलसिले में दफ्तरों के चक्कर काटती और रात के अंधेरे से अपने अंदर के खालीपन को भरती।
एक रात इसी तरह थककर चूर वह अपने दोनों बच्चों के साथ लेटी ही थी कि मोबाइल में नोटिफिकेशन आया–हैप्पी करवा चौथ, उसने फोन उठा कर देखा किसी अनजान नंबर से मैसेज था। उसे भी ताज़्जुब हुआ, क्योंकि जानने वाले तो जानते थे कि दो साल हो गए, यह दिन तो उसकी जिंदगी से विलुप्त हो गया है।
थोड़ा सोचकर उसने जवाब दिया–जी,करवा चौथ मैं नहीं मना सकती। यह शुभकामना मेरे लिए उपयुक्त नहीं।
थोड़ी देर बाद उधर से जवाब आया–सॉरी,मैंने जानबूझकर यह बधाई नहीं भेजा । आज करवाचौथ है तो जिनकी रचनाएँ मैं फेसबुक पर पढ़ता हूं,उन सब को मैंने बधाई भेज दी थी। अगर इससे आपका दिल आहत हुआ हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
तब नीरजा को याद आया,जाने कितने सालों से उसने कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं।उसके सारे शौक तरुण के जाने के बाद से बेमानी हो गए थे।
फिर स्क्रीन पर मैसेज उभरा–मेरा नाम आकाश है,फेसबुक पर आप मेरी मित्र हैं। पर काफी समय से आपने कुछ लिखा नहीं,अगर कोई बात है तो आप मुझ पर भरोसा कर मुझे बता सकती हैं।
नीरजा को कुछ न सूझा, वह थोड़ी देर के लिए अपनी स्थिति,उचित अनुचित पर विचार करने लगी,तभी स्क्रीन पर फिर से फ्लैश चमका –मैं गाँव का सीधा सादा लड़का हूँ, मैंने भी जिंदगी को काफी करीब से देखा है।आप मुझपर भरोसा कर सकती हैं।
उसकी बातें सुनकर नीरजा उससे थोड़ा प्रभावित हुई और मैसेज टेक्स्ट कर हेलो लिखा।थोड़ी देर में ही जवाब आया–जी, बतायें। क्या परेशानी है आपके साथ। आप करवा चौथ नहीं मना सकती,पर क्यों?क्या आपके पति आपके साथ नहीं रहते या किसी हादसे से गुजर रही हैं आप?
नीरजा ने तब विस्तार से उसे लिखा कि उसके पति इस दुनिया में नहीं रहे,दो बच्चे हैं उसके जिन्हें पालने की जिम्मेदारी उसकी है,पर अभी तक कोई नौकरी नहीं लगी उसकी। परिवार के लोगों से मदद माँगने में संकोच होता है। समझ नहीं आ रहा क्या करूं।
तुरन्त ही जवाब आया–आप चिंता न करें,आप मुझे अपना मित्र समझिए। मैं कुछ कोशिश करता हूँ आपके लिए। शुभरात्रि।
काफी दिनों बाद किसी से बात कर वह खुद को हल्का महसूस करने लगी और बच्चों को अपने आगोश में ले सो गई।
बात फिर आई–गई हो गई।दो चार दिनों तक कोई मैसेज नहीं आया।
नीरजा ने भी सोचा कि जहाँ घरवाले मदद करने से कतराते हैं, वहाँ किसी अपरिचित से मदद की क्या उम्मीद की जा सकती है।
तभी एक रात जब वह बच्चों को सुला कर सोने की तैयारी कर रही थी कि मोबाइल स्क्रीन पर नोटिफिकेशन की आवाज आई।आकाश का मैसेज था ,कृपया अपना रिज्यूम मुझे भेजें, मैने एक कंपनी में बात की है।उन्होंने बायोडाटा माँगा है आपका।
उसने जो रिज्यूम बना कर रखा था उसे आकाश को भेज दिया।आज काफी दिनों के बाद उसे थोड़ी तसल्ली महसूस हुई। मन के किसी कोने में जीवन जीने का हौसला जगा।
दो दिनों के बाद उसने देखा कि उसके ईमेल अड्रेस पर इंटरव्यू की तारीख और समय भेज दिया गया है।
निर्धारित दिन नीरजा तैयार होकर ईमेल पर दिए पते पर पहुँची। उसका इंटरव्यू लिया गया और उसी समय रिजल्ट भी जारी कर दिया गया कि उसका चयन एच आर डिपार्टमेंट के लिए कर लिया गया है।
नीरजा को तो मानो नया जीवन मिल गया था।मन ही मन उसने भगवान को धन्यवाद किया कि भगवान अगर एक रास्ता बंद करते हैं तो दूसरी ओर दूसरा रास्ता खोल देते हैं। एक अनजाने मैसेज के सहारे आकाश उसके लिए जिंदगी जीने का रास्ता बना गया। कहते हैं न कि औरतों के जीवन में बच्चों से बढ़कर कुछ नहीं होता ,वह बच्चों के साथ अपने सारे गम भूल सकती है।
नौकरी मिल जाने से नीरजा थोड़ी निश्चिंत हो गई,कम से कम बच्चों को अच्छी जिंदगी देने का उसका सपना साकार होता प्रतीत हो रहा था।
गाहे बगाहे आकाश का कॉल आ जाता, तो अपने कार्य क्षेत्र की,बच्चों की बातें कर वह अपना मन हल्का कर लेती । अनजाने मैसेज से शुरू हुई यह दोस्ती धीरे धीरे परवान चढ़ रही थी। आकाश भी अक्सर अपने घरवालों की बातें उसे बताता। चूंकि वह दूसरे शहर में नौकरी कर रहा था तो उसे बड़ा मलाल रहता अपने घर वालों से न मिल पाने का,इसलिए वह भी अपनी खुशी और गम उसके साथ बांट लेता।समय के साथ साथ उनकी दोस्ती और भी गहरी होती जा रही थी,पर वे लोग एक दूसरे से मिले ही नहीं थे।
नीरजा की बेटी शुभी छठी कक्षा से दसवीं में आ चुकी थी।आकाश अब अक्सर उससे भी बात करता और उसे भी जीवन की सच्चाई से अवगत कराता।अब जब कभी शुभी किसी विषय को लेकर उधेड़बुन में रहती तो वह भी आकाश को फोन कर अपनी शंका मिटाती।
सबसे मजे की बात यह थी कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में भी न तो आकाश ने कभी वीडियो कॉल कर नीरजा से बात करने की इच्छा जताई और न ही नीरजा ने। पर बातों का यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा।
देखते देखते दस साल गुजर गए,शुभी इंजीनियर बन एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगी। उसी कंपनी में कार्यरत वहां के जनरल मैनेजर मिस्टर माथुर ने अपने इकलौते बेटे के लिए शुभी को पसंद कर लिया। वे नीरजा के पास प्रस्ताव लेकर गए …और नीरजा ,उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की तपस्या फलीभूत हुई हो।उसने तुरंत फोन कर आकाश को बताया और कहा–मैं आपसे कभी मिली नहीं, पर आप मेरे लिए ढाल बन खड़े रहे,मुझे आपसे हमेशा मानसिक संबल मिलता रहा। मैं बस इतना ही कहूँगी कि शुभी भी अभिभावक के रूप में आपकी ही छवि अपने मन में बनाई है,अगर आप उसकी शादी में आ सकें तो हमारे लिए इससे बढ़ कर खुशी कोई दूसरी नहीं होगी।
आकाश ने आने का आश्वासन तो दिया पर साथ ही यह भी कहा कि अगर मैं नहीं भी आ पाया तब भी मेरा आशीर्वाद हमेशा उस पर बना रहेगा,वह मेरी बेटी जैसी नहीं बल्कि बेटी ही है।
शुभी की शादी के नियत दिन नीरजा सुबह से ही काम में लगी हुई थी कि किसी ने उसे आकर बताया–बाहर एक मेहमान आए हुए हैं और आपको पूछ रहे हैं। नीरजा जैसे ही बाहर आई, उसके दिल ने एक झटके में आकाश को पहचान लिया। उसकी आँखें भर आई और वह हाथ जोड़ बोली–लोग कहते है कि इस आभासी दुनिया में अच्छे लोगों का मिलना मुश्किल है,पर जिंदगी के कठिन समय में आपने मानसिक रूप से जिस तरह मेरी मदद की,यह मिसाल है
हर उन लोगों के लिए जो दूसरे के जीवन में धोखे से शामिल हो उसकी जिंदगी तबाह कर देते हैं।कौन कहता है कि रिश्ते सिर्फ खून के ही होते हैं,अगर मन पवित्र हो तो रिश्ते किसी भी तरह निभाए जाते हैं। शुभी भी आकाश को देखकर उतनी ही खुश थी – पिता के न होने पर भी जिन्होंने पिता की तरह हर वक्त दिशा निर्देश दिया,वह शायद अपने भी नहीं कर पाते। एक आभासी दुनिया से जुड़कर भी सच्चा मित्र होने के दायित्व का निर्वहन किया उसने।
आज वहां मौजूद सभी लोग इस रिश्ते को सराह रहे थे। सबकी जुबां पर एक ही बात थी–रिश्तों की सच्ची परिभाषा ही यही है।
वीणा
झुमरी तिलैया
Excellent story. Very touching story and a very good message for the community