गंवार – उमा वर्मा : hindi stories with moral

hindi stories with moral : सुबह सुबह दीदी का फोन आया ” रानू नहीं रही ” मै कुछ पूछती तभी फोन कट गया था ।ठीक है कुछ काम में लगी होगी, बाद में पूछ लूंगी ।यह सोच मन को तसल्ली दिया ।लेकिन मन कहाँ मानने वाला था ।फिर से फोन लगाया तो दीदी ने ही बताया कि अचानक थोड़ी तबियत खराब हुई और चक्कर आने लगा ।घर वालों ने दवा खिलाया ।फिर दवा खाकर सोई तो उठी ही नहीं ।

रानू हमारी चचेरी बहन थी।पिता जी दो भाई थे।दोनों में बहुत अपनापन रहा ।दोनों के परिवार साथ रहे।छोटे पापा की बेटी थी रानू।हम दोनों बहन से छोटी थी वह।एक साथ खेलना, पढ़ना सब हुआ ।वह सुन्दर और सुशील भी बहुत थी।और हमारी चहेती भी ।हमारे सभी काम दौड़ दौड़ कर कर देती ।जिसके वजह से हम उसे बहुत प्यार करते थे ।पिता जी और छोटे पापा, दोनों की नौकरी धनबाद में थी।तो वहीं हमारी शिक्षा पूरी हुई ।देखते देखते हमने ग्रेजुएशन कर लिया ।मेरी और दीदी की शादी भी हो गई ।रानू तब मैट्रिक की परीक्षा दे रही थी ।

अम्मा ने बताया कि छोटे पापा रानू के लिए लड़का देख रहे हैं ।हमें ताज्जुब हुआ, ” अभी, इतनी छोटी सी उम्र में? पापा को क्या सूझा?” अम्मा ने ही बताया कि सबकुछ में ठीक है रानू,लेकिन पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता है ।सुन्दर, सुशील है ।सीधी सादी भी है ।लेकिन थोड़ी सुस्त है ।आगे पढ़ाई करना ही नहीं चाहती।फिर थोड़े दिन के बाद मालूम हुआ कि उसकी शादी तय हो गयी थी ।हम भी अपनी तैयारी में लग गये ।आखिर बहन की शादी जो है ।दीदी से भी विचार विमर्श किया ” कब चल रही हो?”

दीदी शायद नहीं जायेगी, यह जानकर मन उदास हो गया ।हम तीनो में पटता भी बहुत था।दीदी के बेटे की परीक्षा थी ।अतः उसने लाचारी जताई ।मैंने रानू के लिए कुछ कपड़े और एक गले का सेट ले लिया ।पति देव ने मेरे लिए टिकट का इन्तजाम कर दिया ।वे भी छुट्टी नहीं मिलने के कारण अपनी असमर्थता जता चुके थे तो मै चुप हो गयी ।फिर वादा किया कि ठीक शादी के दिन आ जाऊँगा ।घर पहुँची तो पूरा परिवार जुट गया था।बहुत अच्छा लगा ।वैसे भी मायके में शादी, अलग ही उत्साह भर देता है ।रानू को मेरे लाए हुए कपड़े और जेवर बहुत पसंद आये।

दो दिन खूब नाच ,गाना, मेहंदी सबकुछ हो गया ।रानू की बारात आ गई, शादी भी हो गई और वह हम सब को उदास करके विदा हो गई ।हमारा भी लौटने का समय आ गया ।पति देव बारात के दिन आ गए थे तो साथ लौटना ही था।फिर अपनी घर गृहस्थी में मगन हो गई मै।शादी के एक महीने के बाद ही अम्मा ने बताया कि उसके ससुराल में बहुत कड़ाई है ।हर बात में रोकटोक है ।

बात बात में मायके वालों को ताने सुनाया जाता है ।और रानू,वह तो खैर बहुत सीधी सादी थी ।घर जाते ही देवर ने गंवार की उपाधि दे दिया था ।जिस देवर को खुद भी कोई तौर तरीका नहीं आता था उसके लिए रानू गंवार हो गई ।पहले दिन ही खाना परोसती रानू ने सलाद में प्याज के गोल गोल लच्छे काट दिए थे और घर वालों की नजर में गंवार हो गई ।” इनको तो सलाद काटना भी नहीं आता है, क्या सिखाया माँ, बाप ने?” रो कर रह गई थी रानू।भला माँ बाप की बुराइयाँ कैसे सहती? फिर तो रोज रोज के ताने ” कुछ दिया भी नहीं मां, बाप ने?

हमारे गले मढ़ दिया ऐसी सुस्त लड़की को” थोड़ी सुस्त जरूर थी रानू,लेकिन कितनी सीधी सादी थी यह किसी ने नहीं देखा ।मायके आने की भी मनाही थी ।एक बार पापा और अम्मा ही जाकर मिल आए थे।दिन रात काम में जुटी रहती ।खाना बनाना, घर की सफाई, बर्तन धोना, सबके लिए परोसना सबकुछ उसके जिम्मे था ।और फिर यह भी रोज का सुनना कि” कहाँ से आ गई हमारे पल्ले, गंवार कहीँ की” यह सब सुनकर बहुत दुख होता मुझे ।पर मै क्या कर सकती थी ।समय बीतता गया ।बेटी के तकलीफ को जानकर छोटे पापा और छोटी माँ भी दुखी रहती ।

वे भी अब बुजुर्ग हो गये थे।मानसिक तकलीफ नहीं सह पाये और एक महीने के अन्तराल पर दुनिया से मुक्त हो गये।मेरी भी अम्मा शरीर से लाचार हो गई ।पिताजी बीमार रहने लगे।मै हरदम सोचती ,समय कितना बदल गया है ।क्या थे क्या हो गये।पिता जी की सरकारी नौकरी थी तो पेंशन अच्छी मिल जाती थी ।गांव से ही रघु काका उनकी देखभाल के लिए आ गए थे ।खाना भी बना देते थे।बहुत अच्छे थे रघु काका ।दादाजी के समय से ही उनका परिवार सब दिन साथ रहा।अम्मा से और दीदी से रानू का समाचार मिलता रहता था ।

फिर बेटे की नौकरी बाहर होने के कारण हमें भी उसके साथ रहना पड़ता था ।अतः रानू से मिलना मुश्किल हो गया था मेरे लिए ।शादी के बहुत दिन बीत जाने के बाद भी  रानू माँ नहीं बन पायी ।पता नही किसमें दोष था।पर घर वालों की नजर में मेरी गंवार बहन ही दोषी थी।कभी रानू ने पति से अपने लिए मुँह नहीं खोला ।न कपड़े के लिए, न जेवर के लिए ।जो मिल जाता उसी में खुश रही।हालांकि पति भी सरकारी नौकरी में थे।रिटायर करने के बाद अच्छी पेंशन मिल जाती थी उनको ।लेकिन उनका परिवार, भाई, भतीजे ही थे।

आज जब रानू के चले जाने की खबर मिली, दुख तो बहुत हुआ, लेकिन संतोष भी हुआ, चलो अच्छा हुआ, कम तकलीफ सहना पड़ा ।अपने बच्चे नहीं थे तो बुढ़ापा में कौन सेवा करता ।जो होता है अच्छे के लिए होता है ।मेरी गंवार बहन दुनिया से मुक्त हो गई ।उसके लिए आखों से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहा ।क्या करें? ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें ।यही मनाती हुई अपनी दिन चर्या में लगी रही ।”

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।

 

 

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