एक कदम – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : तमाम विरोधो के बावजूद नव्या और रोहन की शादी हो ही गई, दरवाजे पर माधवी ने बेमन से ही आरती उतार बहू का गृहप्रवेश कराया।नव्या भी सासू माँ के प्रति कुछ अच्छे विचार ले कर नहीं आई।

      नव्या और रोहन का प्रेम विवाह है, नव्या दिल्ली की आधुनिक ख्यालो वाले परिवार की बेटी, वही रोहन उत्तर प्रदेश के रूढ़िवादी परिवार का बेटा, नव्या के घर मांस -मछली के बिना खाना अधूरा है, जबकि रोहन के घर प्याज़ लहसुन भी नहीं पड़ता। माधवी ही नहीं, रोहन के पिता रत्नेश जी भी इस विवाह के पक्ष में नहीं थे,..खान -पान तो अलग था ही, विचार धारा भी अलग थी।

   नव्या के घरवाले भी इतने रूढ़िवादी परिवार में शादी नहीं करना चाहते थे, नव्या को समझाया “तू वहाँ, बहुत दुखी रहेगी, तेरी सास भी सुना है, बहुत कट्टर है…”

   पर नव्या भी रोहन की तरह जिद में थी, हार कर माता -पिता शादी के लिये तैयार हो गये। 

    इकलौते बेटे की जिद ने माता -पिता को उसकी पसंद अपनाने के लिये मजबूर होना पड़ा। रत्नेश जी ने माधवी को समझाया “रोहन तो दिल्ली में जॉब करता है, नव्या को कौन सब हमारे साथ रहना है, “ये सोच दोनों पति -पत्नी नव्या को बहू बनाने को तैयार हो गये।

     नव्या को उसके कमरे में पहुँचा, माधवी जी ने कहा,”नव्या तुम आराम कर लो, शाम को मुँह दिखाई की रस्म है।”

      माधवी के जाते ही नव्या कपड़े बदल बेड पर लेट गई,विवाह के रीति -रिवाजो से थकी नव्या कब नींद के आगोश में चली गई, उसे पता नहीं चला।

           शाम को दरवाजा खटखटाने की, और रोहन की आवाज के संग नव्या की नींद टूटी। दरवाजा खुलते ही, पाजामे और टी शर्ट में खड़ी बहू को देख कर माधवी जी सकपका गई, रिश्ते की चाची, बुआ ताई के होठों पर व्यंगात्मक मुस्कान देख नव्या भी घबरा गई,… “यही संस्कार ले कर आई है …”

       “सॉरी माँ,मैं इन्ही कपड़ों में कम्फर्टेबल हूँ “

    माधवी जी कुछ ना बोली बस तैयार होने का आदेश दे उलटे पैर लौट गई,नव्या रूहासी हो गई, थोड़ी देर बाद जब माधवी जी नव्या को लेने आई तो नव्या को देख उन्हें हँसी छूट गई, ढेर सारे मेकअप और उल्टी सीधी बँधी साड़ी, में नव्या बहुत मासूम लग रही थी,। उसकी भोली सूरत और आँखों में आँसू देख माधवी जी की ममता उमड़ आई, “तुम परेशान मत हो, “

    नव्या को अच्छे से साड़ी पहना कर, मेकअप ठीक कर वो मेहमानों के बीच ले आई, रिश्तेदारों की फुसफुसाहट नव्या के कानों में भी पड़ी, “लड़की अच्छे परिवार की नहीं है, सुना है वो लोग रोज मांस -मछली खाते है, माधवी ने संस्कारहीन घर से नाता जोड़ लिया है…., कपड़े भी देखो, छोटा सा टॉप और आधी टांग का पैजामा पहनी थी,…”

      नव्या कसमसा कर रह गई, उसे इस तरह के वातावरण की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, इंतजार में थी, अब माधवी जी भी बात पर तड़का लगायेगी… लेकिन…

           अभी तक चुप रही माधवी जी बोल पड़ी, “मेरी बहूअच्छे परिवार की है या नहीं, या वो पैजामा पहने या फ्रॉक, अब वो मेरी बहू है, उसका जो मन करेगा वो पहनेगी, क्योंकि आज से ये उसका घर है, उसे कोई बंदिश नहीं होगी जहाँ तक संस्कारहीन होने की बात है तो खान -पान या पहनावे से कोई संस्कारवान या संस्कारहीन कैसे हो सकता है…”

      माधवी की बात सुन चाची सास बोली, मेरी बहुओं को देखो, कितनी संस्कारवान है, क्या मजाल जो पल्लू सर से उतर जाये.., “

      “हाँ चाची मैंने भी देखा, आपकी बहू का पल्लू सर से नहीं उतरता, लेकिन जबान से तो आपकी खूब लानत मलानत करती है, ये तो सबको पता है…”माधवी की बात सुन चाची जी बुरा सा मुँह बना चुप हो गई, क्योंकि बात में सच्चाई थी।

      सबके जाने के बाद माधवी जी नव्या को उसके कमरे में ले गई, नव्या की आँखों में आँसू था, माधुरी जी जाने लगी तो लगा साड़ी का पल्लू कहीं अटका हुआ था, मुड़ कर देखा, नव्या उनका पल्लू कस कर पकड़ी थी,एक स्त्री ने दूसरी का मन पढ़ लिया।

    “माँ, मैं पूरी कोशिश करुँगी, घर के रीति -रिवाज़ अपनाने की, मुझसे कोई भूल हो जाये तो संभाल लीजियेगा…”

    सुबह की आई, लड़की ने माधवी जी के मन को छू लिया, बहू को पूरी छूट पहनावे में ही नहीं, खाने -पीने की भी थी, नव्या ने भी इस स्वतंत्रता का बेजा फायदा नहीं उठाया।

        धीरे -धीरे वो संस्कारहीन लड़की परिवार में ढल कर सबके लिये उदहारण बन गई, वही माधवी जी के,एक बढ़ते कदम ने घर को बिखरने से बचा लिये।

      सही कहा गया, एक कदम आप बढ़ाओगे तो सामने वाला दो कदम बढ़ाएगा।           

                      —संगीता त्रिपाठी

   #संस्कारहीन

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