धड़कन – विनय कुमार मिश्रा

आज हाथों में शिमला की दो टिकटें लिए अपनी जिंदगी के गुजरे तमाशे याद आ रहें हैं..

“इससे पहले तो घर में नई शादी ही नहीं हुई, शिमला घूमने जाएंगे ये निर्लज्ज”

मन मसोसकर गाँव में ही रहना पड़ा था। क्यूंकि तब पैसों की तंगी भी थी। लव मैरिज तो नहीं हुई थी, मगर इनसे शादी के तुरंत बाद ही प्यार हो गया था। कम उम्र में ही हमारी शादी हो गई थी, तो प्यार क्या होता है इनके आने के बाद ही समझा।लगता था इनके लिए चाँद तारे तोड़ लाऊँ। वादा किया था कि, शिमला जरूर जाएंगे। यही सपना तब बहुत बड़ा लगता था। आज तो ख्वाबों के दायरे भी, बहुत बड़े हो गए हैं। बड़ी मुश्किल से शादी के कुछ सालों बाद, घर में एक टीवी आया, इनके साथ बैठ कर रंगोली और चित्रहार देखने का मन करता था, पर घर में बाकी बड़े भी ये प्रोग्राम एकसाथ देखते थे, तो ये कमरे से बाहर पर्दे के कोने को पकड़े, कभी गाने देखती और कभी मुझे, रोमांटिक गाने पर दोनों की धड़कनें तेज हो जाती थी, ये महसूस करते थे हम दोनों। इनसे प्यार करते करते कब अपनी गृहस्थी से प्यार हो गया पता ही नहीं चला। बच्चे बड़े होने लगे और ज़िम्मेदारी भी। शहर की ओर रुख किया। बच्चों को पढ़ाया लिखाया उनकी शादी की, पर दिल के किसी कोने में वो वादा अब भी जिंदा था शिमला वाला! बच्चे घूम कर हो आये हैं.. शिमला नहीं स्विट्जरलैंड! पर हमें क्या.. हमें तो शिमला जाना था। आज हम दोनों को फुरसत है, पैसा भी है, पर शरीर अब उतना साथ नहीं देता, इन्हें साँस लेने में तकलीफ होती है, और मेरी धड़कनों की रफ्तार धीमी हो रही है। पर मरने से पहले वो वादा पूरा करना चाहता हूँ इसलिए दो टिकटें ले आया हूँ। ये भी तैयार बैठी हैं। निकल पड़े हम शिमला के लिए हाथों में हाथ लिए, बस पर बैठते ही मैंने पूछ लिया

“दवा ले लिया है ना तुमने अपना?”

“आप हैं ना साथ..मेरी साँसे नहीं रुकेंगी”

इन्होंने अपना सर मेरे कंधे पर टिका लिया, और मेरी धड़कनें फिर से जवां होने लगीं।

बच्चे कहते हैं आपदोनो बूढ़े हो गए हैं, पर उन्हें क्या पता कि,

ख़्वाब कभी बूढ़े नहीं होते..!

विनय कुमार मिश्रा

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