दस्तूर – अरुण कुमार अविनाश

” रमेश बाबू और कितना समय लगेगा ?” – गोविंद जी असहाय भाव से बोले।

” बड़े बाबू आप खुद सिस्टम का हिस्सा रहें है – आपसे क्या छुपा है ! – सरकारी दफ्तर में आवेदन देना – खस्सी को वध स्थल पर पहुचानें जैसा काम है – खस्सी जाना नहीं चाहता और कसाई खींच-खींच कर ले जाना चाहता है। हर टेबल से गुजरते समय पुचकारना पड़ता है – नज़राना चढ़ाना पड़ता है।”

“तीन महीनें हो गये है मेरे रिटायरमेंट को – अभी तक पेंशन नहीं बनी है – इस तरह तो घर चलाना भी मुश्किल हो गया है – अब तो फंड का जमा पैसा भी , घर खर्च में खर्चना पड़ रहा है।”

“ऐसा ही है साहब ! क्या करें , ये सिस्टम आप ज़ैसे सिनियर लोगों का ही बनाया हुआ है – हर टेबल से गुजरे बिना – हर लिपिक के इंडोर्समेंट के बिना – दर्जनों रजिस्टर में एंट्री किये बिना – कोई फाइल तैयार ही नहीं होती – जब फाइल तैयार होती है ! तब कई अधिकारियों के हस्ताक्षर के लिये भेजी जाती है – वहाँ भी कई-कई दिनों तक साहब के दस्खत के इंतज़ार में फाइल – धूल फाँक रही होती है।”

गोविंद जी असहाय भाव से अपने भूतपूर्व कलिग की ओर देखें – सारा निज़ाम उनका देखा-भाला था – कोई लिहाज नहीं ,  ठीक वैसे ही ज़ैसे सबको मालूम है कि मौत सब पर लाज़िम है – एक दिन सबको मरना है – फिर भी, जब तक मौत सामने न हो परवाह कोई नहीं करता – रिटायर भी सबको होना है पर, जब तक गद्दीनशीन है ! हेकड़ी नहीं जाता – अपनी ताकत बताने से बाज़ नहीं आता।

” रमेश बाबू , कुछ करो – मेरे से रोज़-रोज़ आया नहीं जाता – टेंशन के कारण ब्लड प्रेशर और शुगर दोनों बढ़ जाता है – कभी चक्कर खा कर गिर पड़ा तो जान से जाऊँगा।”

” बड़े बाबू , अभी स्कूलों की छुट्टियां चल रही है – तकरीबन स्टाफ लम्बी छुट्टियों पर है – ऐसा कीजिए कि स्कूल खुलने के दस दिन बाद आइयें – कोशिश करूँगा कि आपका काम जल्दी हो जायें।”


“स्कूल खुलने में तो अभी बीस दिन बाकी है !” – गोविंद जी मरे हुए स्वर में बोलें ।

” क्या करें साहब ! स्टाफ की भी प्रॉब्लम कम नहीं है – कोविड के कारण , दो साल से कोई स्टाफ कहीं जा नहीं पाया था – शादी ब्याह का भी मुहर्त है – किसी को मन्नत पूरी करनी है – किसी ने माता-पिता को तीर्थाटन करवाना है – खुद दो दिन बाद मैं भी दस दिन के लिये वैष्णव देवी मंदिर दर्शन के लिये जा रहा हूँ  ।”

गोविंद जी अपने घुटने पर हाथों का दबाव डाल कर कठिनाई से उठें – कुर्सी पीछे सरकाई और जेब से एक लिफाफा निकाल कर ज़बरदस्ती रमेश बाबू की कमीज की जेब में ठुसते हुए बोलें–” रमेश बाबू मेहरबानी करना ।”

” क्या है ये !”– रमेश बाबू जेब से लिफाफा निकालते हुए बोलें।

” आपलोग चाय-पानी पी लेना – बच्चों के लिये मिठाई ले जाना ।”

” बड़े बाबू इसकी क्या ज़रूरत है ?”– रमेश बाबू लिफाफा वापस गोविंद जी को पकड़ाने की कोशिश करते हुए बोलें।

गोविंद बाबू ने हाथ जोड़ लियें – चेहरें पर पीड़ा झलकी फिर मुड़े और भारी कदमों से रमेश बाबू से दूर कार्यालय से बाहर जाने लगें।

गोविंद बाबू ने पूरी जिंदगी – रिश्वत ली थी – पहुचाई थी – रिश्वत के जलवे से वाकिफ थे – हर समस्या का निदान  लेंन-देंन में ढूंढते थे।

गोविंद बाबू के जातें ही चार-पाँच सहकर्मी रमेश बाबू के पास आ गये , और घेर कर पूछने लगें –”क्या हुआ –! क्या हुआ ! “

रमेश बाबू चुपचाप लिफाफा एक सहकर्मी को पकड़ा दियें ।

किसी ने लिफाफा खोल कर देखा – पाँच-पाँच सौ के दस नोट यानी पाँच हज़ार रुपये थे।


” बल्ले !”– किसी ने हर्षनाद किया – ” साला, शेर के मुँह से गोश्त छीनने का मुहावरा तो सुना था – पर, इसे कहते है कि शेर की देह से माँस नोच लेना – बुढ़ऊ जब तक नोकरी पर रहा – किसी को नहीं छोड़ा – न पब्लिक को , न स्टाफ को ,  न अधिकारियों को – हम लोगों से भी कुछ न कुछ , वसूलता ही रहता था – कभी ओवरटाइम का या कोई यात्रा भत्ता लगवाना हो – खुद की छुट्टियां बेचनी हो – छुट्टी लेनी हो तो – पहले भैरो बाबा जी को भोग लगवाना पड़ता था – दारू की बोतल या किसी रेस्टोरेंट में पार्टी देनी होती थी – कहीं बाहर जाओं तो वहाँ की प्रसिद्ध चीज़ ला कर नज़र करनी पड़ती थी।”

“ठीक है तुम लोग पार्टी कर लेना ।” – कह कर रमेश बाबू वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गयें।

” और तुम !”

” मुझें शेर का माँस हज़म नहीं होता ।”

” क्या मतलब !”

” हराम की कमाई !– दारू , जुआ , और दवाई।” – देख लो, गोविंद बाबू को – कोई वक़्त था जब रोज़ शाम इनकी दावत होती थी – खाना-पीना और अय्यासी – हर शाम – निःशुल्क – कभी एक सिगरेट भी अपने पैसे से नहीं पी – मुझें याद है , पिताजी की मृत्यु के बाद अनुकम्पा पर मेरी नियुक्ति हुई थी – तब इन्होंने मुझें बाप के मरने के फायदे गिनवाये थे – नोकरी मिलने की खुशी में पार्टी ली थी – मैं जो मेडिकल कॉलेज की एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रहा था – माँ और भाई-बहनों की ज़रूरत पूरी करने के लिये खुद और अपने पिता के सपने को पूरा करने के बजाय – क्लर्क की नोकरी करने के लिये मजबूर हो गया था – मुझें! एक दुखी आदमी को ! ज़बरदस्ती उसकी पसलियों में गुदगुदी करके हँसाया जा रहा था – उससे पार्टी ली जा रही थी – कितना अच्छा होता कि गोविंद बाबू खुद मर जातें और अपने बेरोज़गार लड़के को नोकरी दिलवा जातें – कितना अच्छा होता कि कोई सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त न होता – सेवानिवृत्ति से कुछ साल पहले मर कर अपने बच्चों को नोकरी दे जाता ।” – रमेश बाबू का गला भर आया।


गिरीश बाबू जो रमेश बाबू के अच्छे मित्र थे – पास आये और रमेश बाबू की पीठ पर हाथ रख कर संवेदना प्रकट करना चाहें।

पीठ पर आश्वासन भरा स्पर्श पा कर रमेश बाबू फफक-फफक कर रो पड़े – ” पापा ओ पापा – हमें छोड़ कर क्यों चले गए आप ? – क्या करूँगा ऐसी नोकरी का जिसकी कमाई से मैं आपको दो निवाला तक न खिला सका – सिर पर हाथ फेरने वाला पिता न रहा।”

वातावरण बोझिल था।

हर कोई खामोश था ।

जिसके हाथ में रुपये का लिफाफा था वह आहिस्ता से लिफाफा मेज़ पर रख दिया।

रमेश बाबू अठ्ठाईस वर्ष के अपर डिवीज़न क्लर्क थे – दस साल पहले जब वे लोवर डिवीज़न क्लर्क के पद पर – अनुकम्पा नियुक्ति के तहत – इसी कार्यालय में जॉइन किये थे तब , गोविंद बाबू नये-नये कार्यालय अधीक्षक बनें थे। अगले दस सालों में रमेश बाबू अपनी कॉलेज की पढ़ाई जारी रखते हुए – पहले स्नातक फिर स्नातकोत्तर की परीक्षा उतीर्ण किये और फिर एक विभागीय परीक्षा उतीर्ण कर लोवर डिवीज़न से अपर डिवीजन में आ गये थे – आखिरी दो साल नोकरी की शेष रहने पर गोविंद बाबू को पदोन्नति पर मुख्यालय स्थानांतरित किया गया था – जहाँ जाना उन्हें मंज़ूर न हुआ – कुछ परिवारिक समस्यायें थी – जिसके कारण वे किसी अन्यत्र स्थान पर जा नहीं सकतें थे। अंततः वे इसी कार्यालय से सेवानिवृत्त हुए थे। गोविंद बाबू ने काला-सफेद कर के बहुत पैसे कमायें थे – पर धन जैसे आता है वैसे ही जाता भी है – पूरा परिवार ऐश कर रहा था – पैसा उड़ा रहा था – गोविंद बाबू की खुद की आदतें बिगड़ी हुई थी – घर का खाना अच्छा नहीं लगता था – बाजारू परिया पत्नी से ज़्यादा अच्छी लगती थी – पसंदीदा ब्रांड की व्हिस्की जेब में छेद कर रही थी – अब कोई पीलाने वाला न था – खुद के जेब से पीनी पड़ी, तब पता चला कि ऐब करना भी कितना महंगा होता है ?– अब या तो ब्रांड बदलते या शराब की मात्रा कम करतें। अंततः होता ये कि रोजाना स्कॉच उड़ाने वाले को – देशी ठर्रे पर आना पड़ता और गोविंद बाबू को वो दिन करीब दीख रहा था।

” इसका क्या करना है ? – गिरीश बाबू रुपये के लिफाफे की ओर इशारा करते हुए बोले – ” इसे इस तरह मेज़ पर नहीं छोड़ा जा सकता – किसी अधिकारी की नजर पड़ सकती है – कोई एन्टी करप्शन डिपार्टमेंट से आ सकता है – कोई पब्लिक पर्सन ही सवालिया निशान लगा सकता है।”

” जो मर्ज़ी हो करों – मुझें इससे कोई मतलब नहीं – न मैंने पहले इस तरह के रुपये रखें है – न आगे रखने का इरादा है – जिसे चाह हो , वो रख सकता है।”


” लाओं मुझें दो ” – एक सहकर्मी लिफाफा लेता हुआ बोला – गोविंद बाबू ने बहुत निचोड़ा है मुझें – उनका धन खाने से कोई पाप नहीं लगने वाला – और हाँ , गोविंद बाबू वाला केस मुझें दे दो।”

” क्यों ?”

” बहुत खिलाया – पिलाया है बुड्ढे को – अब जरा वसूली करनी है ।”

” कैसे ?”

” देखना ! सब कुछ तुम्हारें सामनें ही होगा ।”

” कैसे ?”– रमेश बाबू ने सवाल दुहराया।

” सारे तौर-तरीके उन्हीं के सिखायें हुए है – अच्छे भले भरे हुए फॉर्म में कमी निकालना – नाम के हिज़्ज़े में – जन्म तारीख – रिटायरमेंट तारीख – प्रोविडेंट फण्ड या बैंक एकाउंट नम्बर – आधार नम्बर,  अगर सही भी भरा हो तो ! कलम फेर कर गलत कर देना – यही वो पैतरे बाज़ी थी , जिससे उनकी शाम रंगीन होती थी।”

” क्यों परेशान करना चाहतें हो उन्हें !” – रमेश बाबू बोलें।

” तुम भी तो परेशान कर रहें थे!”

” नहीं , मैं जान-बूझ कर परेशान नहीं कर रहा – वाकई, कुछ तकनीकी कारण है – जिसके कारण डिले हो रहा है – ये बात वे भी जानतें है ।”

” फिर , रुपये क्यों दे कर गयें?”

“वे चाहतें है कि जो कमियां है , मैं उन्हें ओवरलुक करके , इग्नोर करके फाइल आगे बढ़ा दूँ – मैं ऐसा नहीं कर सकता – भले ही मेरे मन में कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो – मैं कोई गलत काम नहीं कर सकता – कोई डॉक्यूमेंट बिगाड़ नहीं सकता और न ही , उनके लिये भाग दौड़ कर , कोई अनुचित प्रयास कर सकता हूँ।”


” ठीक है , दो दिन बाद छुट्टी जा रहें हो न !  बॉस से कहकर तेरे टेबल का चार्ज मैं लेता हूँ – फिर मैं जानूं या बुड्ढा जानें – और हाँ , मैं जो भी बुढ़ऊ के साथ करूँगा – ये वाले पांच हज़ार रुपये लौटाने के बाद करूँगा – ताकि, तेरे ऊपर कोई इल्ज़ाम न आयें – राज़ी?”

“तुम्हारी मर्ज़ी!” – रमेश बाबू ने लापरवाही से कंधे उचका दिये।

                                      अरुण कुमार अविनाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!