हिमांशु की तीक्ष्ण दृष्टि का सामना नैना नहीं कर पाई , जिसमें तोलने वाले भाव भरे हैं। लगा जैसे यह क्षण फ्रीज हो गया है।
उसकी आंखें बरबस झुक गईं।
तो क्या हिमांशु ने उसके मन के भाव पढ़ लिए ?
तभी माया का सहलाता हुआ स्वर,
” तुम और हिमांशु बहुत पुराने दोस्त हो ना ? “
नैना , धीमें स्वर में,
” अगले हफ्ते से मेरे नाटकों का रिहर्सल शुरू होने वाला है दीदी “
” मैं और हिमांशु भी आएंगे उसे देखने “
” रात बहुत हो आई है अब मुझे घर जाना चाहिए ” यह सोच कर नैना उठ गई।
” चलो तुम्हें छोड़ आता हूं “
अगला पूरा एक हफ्ता आम दिनों जैसा ही कटा था। इसलिए शनिवार की सुबह जब शोभित का फोन आया तो नैना उमंग से भर उठी।
अगले ही पल इस अति उत्साह से खीज हो आई ,
” क्या सचमुच मेरी जिंदगी खाली हो गई है ?”
दुबारा फोन बज उठा था। उसने माथे पर छाए पसीने को पोंछते हुए फोन उठाया,
” हैलो ,
” क्या कर रही हो ?”
” कुछ नहीं …क्यों ? ” वह सकपकाई।
” अरे कुछ नहीं , बस ऐसे ही अभी निकली नहीं हो ?”
” बस निकल रही हूं “
पिछले कुछ समय से शोभित के कहने पर नैना हिंदी-अंग्रेजी पत्रिका पढ़ रही है। चूंकि नाटक सीरिया युद्ध पर आधारित है जिसमें उसे मुस्लिम औरत का रोल निभाना है। इसलिए रोजमर्रा के प्रचलन में आने वाले उर्दू शब्द और उनका उच्चारण ठीक से करने के लिए उसने उर्दू कविता की पुस्तकें पढ़ना शुरू कर दिया था।
नैना तैयार हो कर रविन्द्र भवन पहुंची थी।
जहां मन से रिहर्सल में भाग लेती हुई नैना ने काफी मेहनत की ।
जिसके परिणामस्वरूप पंद्रह दिनों बाद किए गए नाटक की प्रस्तुति काफी प्रभावी रही। नाटक के पूरे दो घंटे तक के मंचन में नैना ने पर्याप्त विस्तार एवं गहराई से अभिनय किया।
दिल्ली नाट्य जगत में उसके अभिनय के गंभीरता की तथा गरिमा की धाक जम गयी।
नाटक देखने माया भी आई थी।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -56)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi