— हिमांशु …
ज़िंदगी में बहुत सी बातें बहुत साधारण होते हुए भी किसी के साथ जुड़ जाने के बाद असाधारण हो जाती है।
” जैसे कि यह मेरा ,
जज़्बाती हो कर नैना को अपने नाम की अंगूठी पहनाने का निर्णय ले लेना “
नैना मुझसे बहुत छोटी है।
बहुत… मतलब बहुत …पर मुझे उसका साथ शुरू से ही प्रिय लगा है। वह बेहद मासूम थी।
किशोरावस्था में उसने मेरी जिंदगी में प्यार के रंग भरे थे,
जबकि मैं उसे परेशान हालत में छोड़ कर रातों -रात भाग आया था।
मैं अक्सर सोचता …, दूसरे दिन स्कूल में जब उसने मुझे नहीं देखा होगा! तब उसकी क्या हालत हुई होगी ?
खैर …
न जाने क्यों मैं शुरु से ही ऐसा रहा हूं ?
मेरी मां और पिताजी का सम्बंध विच्छेद चाहे जिस भी परिस्थितियों में हुआ।
एक अजीब सी बात जो मुझे लगातार खलती रही है।
वो ये कि…
मेरे नानाजी जब तक जीवित रहे उनकी पूर्ण सहानुभूति मेरे पिताजी के साथ थी।
अपने मृत्यु के समय उन्होंने मुझसे कहा था,
” तुम्हारी पिता की कुंठा का कारण चाहे जो भी रहा हो ?
अन्ततः वो तुम्हारे पिता हैं और उनकी देखभाल करना तुम्हारा धर्म बनता है”
उनके इस कथन ने मेरे विकसित होते व्यक्तित्व की चूल हिला कर रख दी थी।
विभिन्न अन्तर्द्वन्द को लेकर चलना मुझ पर भारी पड़ने लगा।
जो बाद मेरी मानसिक परेशानियों का कारण बना रहा है।
मैं जब कभी कहीं भी बैठा रहता।
कानों में बचपन की सुनी हुई आवाज गूंजने लगती। कभी अपना पुश्तैनी घर जिसमें सब क्षत- विक्षत सा रहता में पिता की छवि, जिसमें वे किसी के इंतजार में दिखाई देते, कभी नाना के निर्देश याद आ जाते।
और फिर सब कुछ अंधेरे के विशाल समुद्र में डूब जाता।
आप समझ सकते हैं। एक दस- बारह साल के भावुक और संवेदनशील लड़के की व्यथा जिसे सब कुछ अधूरा ही मिला।
मां का प्यार हो चाहे पिता का वात्सल्य दोनों एक दूसरे के बिन अधूरे … थे।
और वह अधूरा पन जिससे लाख पीछा छुड़ाना चाहने पर भी छुड़ा नहीं पा रहा था।
दिल में सदा से हमेशा संपूर्णता की चाहत पलती रहती
बहरहाल जो भी हो,
उस दिन जब नैना हमारे घर आई तब उस सुनहरे एकांत रोमांचित हो गया था।
उसके साथ उन बेहद करीबी पलों ने मुझे जैसे दीवाना बना कर रख दिया।
अगला भाग
डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -54)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi