डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -51)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

कुछ क्षण वो खिड़की से बाहर टुकुर -टुकुर देखती रही।

अपने आवेग को दबाने के प्रयत्न करती हुई नैना  ने शोभित की तरफ तृष्णा भरी निगाहों से देखा।

शोभित ने उसकी तरफ चाय का प्याला बढ़ाया।

नैना शोभित के थोड़ा करीब आ कर    ,

” आज मैं तुम्हारे साथ अपनी गहन बात बांटना चाहती हूं ” कहती हुई चाय के प्याले को बगल में पड़ी  तिपाई पर रख दी…

”  हिमांशु ,

से मेरी दोबारा मुलाकात  हुए कुछ दिन बीत गए। इस बीच उसकी मां गुजर गई हैं।

वो खुद को अकेला महसूस करता है।  साथ ही यह भी सच्चाई है।

मैं भी उसके बिन गुजारे दिनों की यातनाओं को भूल नहीं पाती हूं “

कुछ पल चुप्पी साध कर ,

”  मैं नहीं जानती हमारा यह संबंध आगे क्या मोड़ लेगा और  स्थिति हमारे अनुकूल हो पाएगी या नहीं ?  “

बहरहाल ,

” जो भी हो अभी तो मैं नाटकों से  मिले पैसों से एक घर और  अनुराधा के बेटे के भविष्य पर ध्यान देने कि सोच रही हूं  “

प्रिय पाठकों!

हर व्यक्ति के साथ कितना कुछ गोपनीय होता है ना ?

किसी के बारे में सब कुछ जानते हुए भी हम उसके भीतरी मन से कितने अंजान रहते हैं।

फ़िलहाल इस वक्त!

नैना अपने अन्तर्मन की व्यथा  शोभित के सामने रखती हुई  खुद को हल्की महसूस कर रही है।

” शोभित,  मेरा दिल ऐसी नाव है जिसकी पतवार  किसी और की हाथ में है” शोभित के कान गर्म हो गये । धमनियों में बहते खून का प्रभाव तेज हो गया।  वह मन ही मन  सोच रहा है,

”  इतनी मोहक युवती की  चिंता का कारण ? और कोई नहीं  उसके  खुद  का प्रेमी  भी  हो सकता है? “

” क्या हाल हैं उसके ?  “

उसे जबरन पूछना पड़ा।

” परेशान हैं  आजकल ,

मम्मी के गुजर जाने के बाद  नया  बिजनेस बैठाना चाहता है “

शोभित नैना को चुपचाप देखता रहा।

हिमांशु को लेकर वह नैना से स्पष्ट बात नही कर पाता है। वह जानता है कि उन दोनों के संबंध काफी पुराने हैं।

जिसके बारे में  संदेह जता कर वो  खुद को नैना की नजरों में गिराना नहीं चाहता है।

” बहुत रात हो गई है नैना,

तुम रिहर्सल में तो आओगी ना ? इस रविवार को रविन्द्र भवन में मिलेंगे ,

चलो अभी,  मैं तुम्हें छोड़ आता हूं  “

” चलो ” कह कर नैना उठ खड़ी हुई।

” पर खाना ?  खाना तो हमने खाया नहीं और  मुझे जोर से भूख लग रही है।

तुम भी इतनी देर से क्या बना पाओगी  “

पास के रेस्तरां में  चलते हैं ,

” हां, चलो “

घर वापसी के लिए ऑटो पर बैठती हुई नैना के चित पर पसरी उदासी छंट चुकी थी। मन प्रफुल्लित लग रहा था।

अगला भाग

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