डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -45)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

नैना ने देखा माया दी का फोन है।

” नैना! मां गुजर गईं, हिमांशु बिल्कुल चुप बैठा है “

नैना की पहली  प्रतिक्रिया यही हुई,

” हिमांशु का क्या होगा?  उसकी समर्थ मां उसके लिए कवच और  आधार थीं “

फिर उसने कपड़े बदले,  सेल्फ पर से पर्स उठाया और बाहर निकल पड़ी ।

मिसेज अरोड़ा ने उसके लिए एक टैक्सी मंगा कर उसका नम्बर नोट कर लिया।

नैना उस पर बैठ कर सिर पीछे की सीट पर टिका दिया।

हिमांशु ने उसे अपने बचपन की बातें कहता हुए एक बार कहा था ,

” मैंने बचपन से ही अपनी मां को परिस्थितियों से समझौता करते देखा है। जब पिता ने एक से बढ़कर एक गलीज लांक्षण लगा कर मां को तलाक नामा भेजा था।

तब सालों तक हर चुनौती का सामना करने वाली मेरी मां के भी हाथ – पैर ठंडे पड़ गये थे।

शायद उन्हें पहली बार लगा था  ,

” यह किसी पाप की सजा उन्हें मिल रही है “

वे हर चोट सह गई थीं पर चरित्र पर इतना बड़ा लांक्षण कैसे सहेगी ?

कैसे सुनेगी कोर्ट में इतने गंदे आरोप ?

उनकी चाल लड़खड़ा गई थी।

” मैं तब किशोर हो चला था “

मन ही मन सोचता,

” नहीं – नहीं मां पर ऐसे आरोप वह नहीं लगने देगा ” उसका चेहरा लाल पड़ गया था।

तलाक के लिए भेजे गए कागज पलटते हुए मेरी आंखों में खून उतर आया था।

” मैं जान ले लूंगा उसकी। मेरी मां को रखैल बोलते हैं, चोर कहते हैं, मैं खून कर दूंगा उनका “

वे जिंदा रहेंगे तो हम हमेशा दुखी और कष्ट में रहेंगे। बहन की शादी नहीं होगी , हम घुट- घुट कर मर जाएंगे  “

कह कर क्रोध के आवेग में घर से बाहर निकलने को तैयार था तब मां ने ही मुझे संभालते हुए मेरे आवेग थमने तक कमरे में बंद रखा था,

” मैं मां हूं बेटे , मुझमें सब सहने की हिम्मत है “

कहती हुई बाद के दिनों में ब्रह्मास्त्र  की तरह ढ़ाल बन कर  उन दो भाई बहनों की परवरिश और आगे बढ़ने में  मदद की थी।

करीब पौने घंटे बाद टैक्सी हिमांशु के घर के सामने लगी थी। रात के करीब बारह बज रहे थे।  लाजपत नगर का ७६  नम्बर का वह घर।

आस- पड़ोस वाले दुख प्रकट  करके चले गए थे। दो – चार नजदीकी पारिवारिक रिश्तेदार को छोड़ कर वहां मनहूस सा सन्नाटा पसरा हुआ है।

ड्राइंग रूम के फर्नीचर हटा कर फर्श पर एक ओर चादर और फूलों से ढंका हुआ मम्मी का शव रखा था।

हिमांशु निश्च्छल और भावहीन बैठा था। आंखें सूखी।

माया नैना को देख  हिलक कर रो पड़ी। उनसे गले लगते हुए नैना के भी आंसू निकल पड़े थे।

हिमांशु ने एक नजर उसकी ओर देख कर फिर मां की निश्च्छल पड़े देह की ओर देखने लगा ।

डरे हुए भाव से सहमे उसके चेहरे  को देख कर नैना को लगा मानों,

“कोई अबोध बच्चा मेले में अकेला छूट गया हो”

सामने निश्चछल पड़ी हुई मां का चेहरा शांत है। उनके चेहरे पर मलिनता का कोई  भाव नहीं।

आखिर मलिनता के भाव आते ही क्यों  ?

शहरी बैकग्राउंड की पली- बढ़ी मां ने अपने से कम  शिक्षित ग्रामीण परिवेश वाले पति के साथ,

उनकी मर्जी से रहते हुए फिर उनकी ही मर्जी से अलग हो कर अपनी शर्तों में जीवन यापन करते हुए बच्चों को बड़ा किया है।

माया दी उसके कंधे पर सिर रख कर सिसक उठी ,

” नैना हिमांशु को संभालना “

नैना ने मुड़कर उसकी तरफ देखा । वह सिगरेट ढ़ीली करके उसमें से  तंबाकू निकाल रहा है।

माया का सिर कंधे से हटा कर वह हिमांशु के पास चली आई ,

” हिमांशु , इस समय यह अच्छा लगेगा ? इस समय तो कम से कम  “

हिमांशु ठिठका अपनी खोई हुई आंखें उठा कर उसे देखा, आंखों में लाल डोरे थे।

” तुम अपने पांव  पर कुल्हाड़ी  मार  रहे हो  और मां के सपने को भी स्वाहा कर रहे हो “

” रहने दो , मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो”

हिमांशु ने गहरी सांस छोड़ी।

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