डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -44)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

वो तीन दिन किस तरह कट गये पता ही नहीं चला।

इस बार घर से चलते हुए पिता के आदेश पर नैना को पापर, अचार और बड़ियां बांध कर मिले हैं।

स्टेशन पर छोड़ने आए पिता ,

” नैना , एक बात बोलूं ? “

नैना का मन का कैसा तो हो उठा।

” कहिए “

” तुम संतुष्ट तो हो न ? विनोद आने वाले दिनों में  बाहर शायद तुम्हारे पास जाना चाहे।

इस विषय में तुम्हारी राय क्या होगी ?

वह तुमसे  बात करने में कतराता है “

नैना सिवाए मुंडी हिलाने के और क्या कर सकती थी ?

पिता और दुर्बल हो गये हैं।  अवकाश प्राप्ति करने में अब कुछ दिन ही शेष बचे हैं।

भाई भी दायित्वों के बोझ तले दबे और बुझे से लगे थे।

उसने सोचा …

मध्यम वर्गीय जिंदगी भी कितनी सपाट और  तिल- तिल कर जलती है।

ट्रेन ने सीटी दे दी थी।

धीरे- धीरे भीड़-भाड़, स्टेशन के लाइटस,  पुराना शहर और पिता पीछे छूटते से लगे काफी देर जब तक वे दिखते रहे नैना हाथ हिलाती रही। फिर थक कर  अपनी सीट पर जा कर बैठ गई।

नजर के सामने एक- एक कर शुभ्रा, अनुराधा , अनुराधा के बेटे और विनोद भाई के साथ मां की कृशकाय छवि तैर गई।

इन सबके पीछे एक और चेहरा हिमांशु और शोभित का था। 

एक  में अतीत की प्यारी निर्मल छवि दिखाई देती है तो दूसरा  सुनहरे भविष्य की  चमकती तस्वीर है।

हर सुबह उजाले के साथ शुरू होकर रात होते- होते नैना के ख्याल उसकी जिंदगी से उलझने लगते हैं। दिन भर तो वह काम में खुद को उलझा कर उन ख्यालों से दूर रहने की जद्दोजहद में लगी रहती है। लेकिन रात का सूनापन और सन्नाटा उसे वापस उन्हीं सवालों के घेरे में घेर लेता है।

इस अंतर्द्वंद में विचरती हुई उसकी आंख कब लग गई पता नहीं चला।

सुबह नींद खुली गाड़ी दिल्ली स्टेशन पर लग चुकी थी। 

सामने शोभित खड़ा था।

हैलो … नैना!

पहले से दुबला लग रहा था। चेहरे पर असमंजस के भाव लिए शोभित आज नैना को थोड़ा अजनबी सा लगा।

फिर भी ,

तुम्हारी तबियत ठीक तो है ?

ठीक है , फिर कुछ पल सोच कर  ,

माफ करना नैना मैं तुमसे मिलना चाहता था।

तुम्हारे औफिस भी गया था पता चला तुम घर गयी हो कोई खास बात सब ठीक है‌ ना ?

” हां सब ठीक  है।

बोल कर ,

चलते-चलते ही खुद के घर जाने का कारण और वहां की ताज़ा स्थिति के बारे में शोभित को जानकारी  दे दी।

पल भर दोनों की दृष्टि मिली नैना हल्के से मुस्कुराई।

” नैना ! दरअसल पिछले दिनों हम जो नाटक खेलने वाले थे उस के सम्बंध में ही तुम्हारे पास गया था। ” 

” ओ सही है,  अगर आवश्यक होगा तो हम शाम में मिल सकते हैं “

” चलो घर पर काॅफी पी कर जाना “

” अभी नहीं नैना,

बाद में नहीं तो मैं रिहर्सल के लिए लेट हो जाउंगा और तुम औफिस के लिए , तुम मेरे औफर पर विचार करना अच्छे पैसे मिल जाएंगे”

कहते हुए शोभित  उसके हाथ को हल्के से थपथपा कर मुस्कुरा दिया।

नैना को उसकी बरसाती में छोड़ते हुए शोभित अपने घर के लिए निकल गया।

अपनी बरसाती में पहुंच कर नैना ने संतोष की सांस ली।  स्टेशन पर शोभित से  हुई छोटी सी मुलाकात से उसकी सारी थकान और उदासी मिट चुकी है।

वह झटपट तैयार हो उबले अंडे और टोस्ट का नाश्ता करके साथ में गर्म दूध के भरे गिलास में काॅफी डाल  पी कर तरोताजा महसूस करती औफिस के लिए निकल पड़ी

रात के ग्यारह बजे जब नैना थकी हारी सोने की कोशिश कर रही थी ।

जब उसका फ़ोन घनघना उठा था।

आगे …

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